गर काट सकता ज़िन्दगी, तो काट मैं लेता
चीज़ें कई मेरे भी घर में.............. धार वाली हैं
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खड़ा हूँ जरुर पर बहुत हार कर आया हूँ,
खुश हूँ की बड़ी मुसीबत पार कर आया हूँ,
इंतिहान कहीं काट ना दे मेरी उम्मीदों को
इसलिए खुद को और धार कर आया हूँ।-
क्या कहूँ दीदा-ए-तर ये तो मेरा चेहरा है
संग कट जाते हैं बारिश की जहाँ धार गिरे-
बचपन की मस्ती
बचपन की उधम-धाड़
वो कागज़ की कश्ती
बारिशों की फ़ुहार
वो गन्ने के रस की धार
घंटी बजा के भागना बार-बार
वो साइकिल....वो झूले
वो बगीचों की बहार
छत पर भाग कर चढ़ना
टीवी एन्टीना ऐंठना बारम्बार
स्कूल था मक्का-मदीना
स्कूल ही था कारागार
नकली ही सही पर खूब दौड़ती थी
अपनी भी बड़ी कार
साथ बैठकर खाता था
जब सारा परिवार
रूठता न था कोई
सभी थे मेरे संबंधी मेरे प्यारे यार
जाने कहाँ रह गया...वो बचपन
वो बचपन का भोला प्यार
- साकेत गर्ग-
सागरी तळमळलेला सावरकरांचा प्राण आहे तिरंगा
भगतसिंगच्या इन्किलाबमधला तो राष्ट्राभिमान आहे तिरंगा
गांधीजींच्या साध्या चरख्यात वसलेला स्वाभिमान आहे तिरंगा
बंकिमजींच्या आनंदमठातील गौरवशाली गुणगान आहे तिरंगा
राणी लक्ष्मीच्या तलवारीची तळपणारी धार आहे तिरंगा
कारगिलमध्ये दुश्मनाच्या छाताडावर केलेला जयजयकार आहे तिरंगा
लाल बाल पालची जहाल क्रांती आहे तिरंगा
सविनयची अहिंसक उत्क्रांती आहे तिरंगा
श्वासांच्या खेळात, हृदयाच्या स्पंदनांत,धमन्यांच्या गरम रक्तात आहे तिरंगा
फुलांपेक्षा सुंदर असेल तिरंगी आरास कारण आमुची अस्मिता आहे तिरंगा-
तीर तलवार की ज़रूरत नहीं वो अल्फ़ाज़ से ही शिकार करते हैं
हर लफ्ज़ पर क़ुर्बान कई रिश्ते जनाब ज़बान पर भी धार रखते हैं-
तूफ़ां से लड़कर आते हैं
आँसू से धार बनाते हैं
चीर देते है वक्ष दुश्मनों का
हम चैन से सोयें , वो अपना लहू बहाते हैं-
रात जैसे इक नदी है, नींद उसकी धार है
ख़्वाब के चप्पू चलें जब दिन उतरता पार है
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तलवार की धार पे चलकर
उसने अपना मुकाम लिख दीया।
जिससे न थी किसी को उम्मीद
उसी ने सबके सर पे ताज रख दीया।।-