Saurabh Tripathi  
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Joined 2 June 2018


Joined 2 June 2018
28 JAN AT 13:53

सरकारी नौकरी और महाकुंभ पर एक अद्भुत काव्यपाठ।।

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13 JAN AT 12:24

मन ने भी साथ दिया और मर्जी तक ही रखा था
मैंने भी अपना रिश्ता इक लड़की तक ही रखा था

वक्त बहुत था ट्रेन को लेकिन चढ़ने को तैयार न थी
उसने भी खुद को समझो खिड़की तक ही रखा था।

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10 JAN AT 21:59

हाथ में आए रिश्ते नाते नही निकालता
फजूल में लड़ने को बातें नहीं निकालता

करीब आने का वो सिलसिला नहीं रहा
अब बारिशों में वो छाते नही निकालता

मैं बच्चों की जैसे उसकी गलतियों पर
माओं की तरह आंखें नहीं निकालता

मुसलसल ढुंढता हुं वजह सुलह की
सोकर कभी भी रातें नहीं निकालता

रोज सफर में कितने हद तक गिरता हुं
क्या तेरे पांव के मैं कांटे नहीं निकालता।

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18 OCT 2024 AT 21:08

उस परिंदे को मेरी छत भी प्यारी नही,
और एक मुझी से वो दाना भी चाहता है

नींद भी आती मेरे महबूब को इन बाहों में
फिर मुझे ही छोड़कर जाना भी चाहता है,

बात बस मेरे से करेगा और इस दरमियान
कइयों की बात करके जलाना‌ भी चाहता है।

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7 OCT 2024 AT 11:15

मशरुफ रहे मेरे हाथ फूल छिपाने मे ,
शिकायत ये की मैंने हाथ नहीं मिलाया।

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4 OCT 2024 AT 22:57

मिलो तो फिर कोई बात रहे
खामोशी नहीं कोई जज़्बात रहे,

हाथ छूटे तो भी उंगली फंसी रहे,
रहे तो फिर ऐसे कोई साथ रहे।

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27 JUN 2024 AT 14:17

उन दिनों रहे इश्क के चर्चे हमारे भी,
कबूतरों ने गिरा दिए पर्चे हमारे भी,

उधर घरवालों ने उसको सजा सुनाई
इस तरफ मां बाप गरजे हमारे भी,

इश्क में गुलाब गए हिज़्र में शराब आई
जिंदगी भर होते रहे ख़र्चे हमारे भी

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29 DEC 2022 AT 19:43

हर बरस की तरह ये बरस भी गया
फिर से तेरे दीदार को तरस ही गया

कल देखते हुए आईने में यकायक
आखिर वो खुद पर बरस ही गया

हाथ और लकीरों पे था जो भरोसा
एक शख्स गया दस्तरस भी गया

अपनाया फजूल से भरा इक रास्ता
उसने मरना था फिर चरस पी गया।

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23 DEC 2022 AT 20:11

हर ग़लती पूरी भुलाई नहीं जाती
थोड़ा तो सब अफसोस में रहते हैं

वो जिंदगी नहीं कोई पागलपन था
अब देखिए की हम होश में रहते हैं।

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11 DEC 2022 AT 21:09

अभी वजूद नहीं बस पत्थर की मूरत लगुंगा मैं
एक रोज तुम्हारे जिंदगी की जरूरत बनुंगा मैं

इन आंखों से यही ख्वाब देखा हूं सोते जागते
हकीकत में भी तुम्हारे साथ खुबसूरत लगुंंगा मै

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