Kokil Rajpurohit   (©kokil Rajpurohit)
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लिखने की महज़ कोशिश 😊
Joined 1 September 2018


लिखने की महज़ कोशिश 😊
Joined 1 September 2018
22 FEB AT 16:50

शाम के वक्त
जब उजाला चल पड़ता हैं
पश्चिम की ओर
कुछ किरनें जब झांकती हैं क्षितिज से

उस वक्त घंटों बिताता हूं मैं ...
अपने घर की छत पर ।

लेकिन..मैं सूर्यास्त नहीं देखता ।

मैं निहारता हूं ....
घोंसले की ओर लौटती छोटी चिड़िया को ।

किसी को जाते देखने से
ज़्यादा सुकून देता हैं मुझे
किसी को लौट कर आते हुए देखना ।

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3 NOV 2023 AT 10:52

चांद , तारा, आसमान नहीं....
तुम किसी के लिए "धरती" बनना ।

( Read in caption )

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13 OCT 2023 AT 20:34

रात के स्याह अंधेरे में टिमटिमाते तारों सी
कुछ उम्मीदें चमकती हैं आंखों में मेरे....

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29 AUG 2023 AT 17:09

मगर याद रखना तुम सपनें मत देखना.....

(Read in caption)

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25 JUL 2023 AT 14:50

शहरों के सबसे पुराने इलाके
कभी "शहर" नहीं हो पाते...।

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23 APR 2023 AT 21:19

बूढ़ा होता बरगद चाहता हैं ...
शाखाओं से झूलते बच्चें..
कभी "बड़े" ना हो ।

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13 APR 2023 AT 19:46

इन पेड़ों ने जकड़े रखा हैं "ज़मीन "को ...
नहीं तो धरती कब की दूर चली गई होती ।

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22 MAR 2023 AT 19:56

युद्ध के बाद लोग भूल जाते हैं ढाल को...
वो सोचते हैं 'तलवारे' उन्होंने तन पर झेली थी

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18 MAR 2023 AT 16:25

पर्वत को कठोर बनाता है ....
नदियों के कभी लौट कर ना आने का गम ।

समंदर को खारा बनाता हैं ....
नदियों के कभी लौट कर ना जानें का गुरुर ।

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14 MAR 2023 AT 15:56

अब हवाओं के इशारों पर चले जा रहे हैं ....
वो "पत्ते" जिन्हें टहनियाँ बोझ लगती थी ।

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