तेरा तो शहर भी तेरे ही जैसा निकला
बदलती है रंग तू यह भी वैसा ही निकला
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वक्त बे-वक्त बस यूँ ही लिख दिया करते हैं हम
तबाह है इश्क़ में, फिर भी इश्क़ लिख दिया करते हैं हम
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क्यों रूठी हो किसने जुर्रत की तुमसे तकरार की
क्या कोई जागीर थी जो छीन ली किसी ने सरकार की
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रहने दो मुझे दर्द ए इश्क़ में यारों
ये सुकून ए जिंदगी आशिकों को रास नहीं आती
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गिरा कर लिबास अपना क्यों मेरे करीब आ रहे हो
तबाह होने का इरादा है या फिर तबाह करने आ रहे हो
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हां तेरी रुखसत के बाद..
तन्हा होकर भी तन्हा नहीं रहता हूँ मैं
तेरी यादों में मदहोश, हर वक्त खुश रहता हूँ मैं
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हमारी सादगी ने बहुत बर्बाद किया हमें
लूटा भी उन्होंने जो अपना कहते थे हमें
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ये आखिरी रात इश्क़ की तुझ पे यूं वारेंगे
तुझे जीतने की जंग में हम तुझी से हारेंगे
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