बुला लेंगे तुझे आवाज़ दे कर,
नहीं तौहीन इसमें कुछ हमारी।
न हो पाएगा पर ये रोज़ हमसे,
है तेरी भी तो थोड़ी ज़िम्मेदारी।
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अंजलि राज
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A teacher by profession👩🏫
A poet by passion✍️
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I dislike critic... read more
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Joined 22 May 2017
17 MAY 2024 AT 17:56
14 MAY 2024 AT 20:57
इन ख़्वाबों और ख़यालों में बस फ़र्क़ इसी इक बात का है।
इक जगती आँखों का सूरज , इक चन्दा सोती रात का है।
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13 MAY 2024 AT 20:01
जितना भी लिक्खूं तुझको कुछ कम सा रहता है।
अहसासों का चेहरा रंग बदलता रहता है।
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12 MAY 2024 AT 21:33
प्रश्नों का ज्वर जब जब माथा दहकाये।
पूर्ण समर्पण का जल ठंडक पहुंचाये।
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8 MAY 2024 AT 21:54
ये ज़ख्म इसलिए हरे हैं ताकि याद रहे,
कि तुझसे फ़ासला मेरे लिए ज़रूरी है।
मैं रोज़ इनको तेरी याद दिला देती हूँ,
इन्हें कुरेदना मेरे लिए ज़रूरी है।
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18 JAN 2024 AT 21:52
तुम्हारे नाम को बस इक बशर वो याद रखेगा,
जिसे तुमने दिए धोखे, मगर कुछ कर न वो पाया।
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14 JAN 2024 AT 9:54
समझ मत ख़ास ख़ुद को गर
तुझे है चाहता कोई।
ये बारिश प्यार की कब देखती
मिट्टी की किस्मों को?
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29 DEC 2023 AT 11:31
न कोई गुफ़्तगू चाहे न हस्ब-ए-आरज़ू मांगे।
बहुत ख़ामोश सा रहने लगा है प्यार अब अपना।
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