हम गस्थ कर रहे हैं सुनहरी याद का,
जिसमे एहसास है उनकी सांस का,
थम जा ए हवा साथ दे तू रात का,
पल कुछ जमा कर लु उसके साथ का।-
भँवरा इस फूल से उस फूल
गश्त लगाता रहता है
अमृत का प्यासा वह
हर फूल को सताता है-
"Muh" se nikle hue
"shabdon ki chuban" se,
Aksar "Dora" Dil Tak pahunch jata hai-
✨नौकरी एवं संदेहास्पद दौरा✨
दिनकर का भव्य दर्शन
और अति सुनहरा सबेरा।✨
एक अद्भुत सी साजिश
और संदेहास्पद दौरा मेरा।✨ ......(१)
मटमैली सड़क, कीचड़,
कड़कड़ाती धूप, पतझड़।✨
बारिश गर्मी संग संग,
एक हैरानी और गड़बड़।✨ ........(२)
लंबी दूरी, अधूरा सफर,
मंजिल की इच्छा, डर।✨
झपकती पलकें, गहरी नींद,
थका शरीर तब लौटा घर।✨ ......(३)
ये चंचल नौकरी, ये मेरे दौरे
लटकती निगाहें, गिरती उम्र।✨
परिवार की चिंता, भोजन,
इंतजाम का इंतकाम ताउम्र।✨ ....(४)
बच्चे एवं उनका भविष्य,
पत्नी, माँ, सबकी फिक्र।✨
उठना एवं उठाना है उन्हें,
शब्दहीन मुख तो कैसे जिक्र।✨ ....(५)-
दौरा
यूँ तो दौरा करना किसी भी विभाग के अधिकारियों के लिए एक अनिवार्य कार्य है परंतु साहब को इसका चस्का था. दौरे से ही वे यह ज्ञान हासिल कर पाए थे कि किस शहर का गुलाबजामुन स्वादिष्ट है तो किस शहर का पेठा. इन दौरों की वजह से ससुराल में उनकी काफी इज़्ज़त थी. उनकी ससुराल में किसी ने भी अपनी नौकरी में दौरा नहीं किया था. इसलिए वे समझते थे कि जरूर ही उनके दामाद बहुत ऊँचे ओहदे वाले हैं.
भारत में अरेंज मैरिज में लड़के वालों के घर चक्कर लगाने में आम आदमी के जूते घिस जाते हैं. पर दौरे की वजह से उन्हें कोई खास समस्या नहीं हुई.
महीने में एक-दो बार घर के सामने सफेद अम्बेसडर रुकने से लड़के वाले पर अच्छा-खासा प्रभाव पड़ा और उनकी कन्या की शादी तय हो गई.
दौरे का चस्का लगने में उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता. उन्हें अच्छी तरह याद है कि पहला दौरा उन्हें उनके बॉस के व्यक्तिगत कार्य करने के लिए करना पड़ा था.
आखिर वो दिन आ ही गया जब वे रिटायर हो गए. एक दिन उनकी साली का फोन आया. गृह प्रवेश पर उन्हें सपरिवार आने का निमंत्रण दिया. कहने को तो उन्होंने हामी भर दी, पर आने-जाने का खर्चा जोड़ने लगे. अपने रिटायर हो जाने पर उन्हें काफी खीझ हुई. आज सेवा में रहते तो दिल्ली जाना कितना आसान होता. अब उन्हें अपने खर्च पर जाना होगा.
पर वे जा न सके.
उन्हें दौरा तो मिला परंतु इस बार दिल का दौरा था.-
वो हमेशा कहते रहे, तुम्हारे पास दिल नहीं,,
दिल का दौरा क्या पड़ा, ये दाग भी धूल गया..।।-
वो बन संवर कर निकले हैं आज कयामत ढाने को,
माहताब रोज़ गश्त करता है जिनका रूप चुराने को !!
وہ بن سنور کر نکلے ہیں آج کیامت ڈھانے کو،
مہتاب روز گشت کرتا ہے جن کا روپ چرانے کو !!-
और क्या होगा हमारा और क्या हो जाएँगे।
मंजिलें पा जाएँगे या रास्ता हो जाएँगे।
गश्त कर लेंगे अगर हम साथ दिल से जिस्म तक,
आने वाली पीढ़ियों के रहनुमा हो जाएँगे।
दीप उल्फ़त का जलाके आँधियों के सामने,
हम हवाओं के लिए इक आइना हो जाएँगे।
रो रहा हूँ आज तो सब दोस्त मेरे पास है,
जो अगर मैं हँस पड़ूँ सब लापता हो जाएँगे।
छोड़ने का जब इरादा हो तुम्हारा बेझिझक,
बोल देना तुम हमें हम बेवफा हो जाएँगे।
आदतें इक दूसरे से है जुदा अपनी तो क्या,
आपके सँग सँग रहेगें आप सा हो जाएँगे।
जो भी कहना रू-ब-रू मुँह फेरकर मत बोलना,
तुमको सुनने वाले यारा बे-सदा हो जाएँगे।
यूँ तको ना आसमाँ तुम सुरमई सी रात में,
चाँद तारें नौजवां है बे-हया हो जाएंगे।
गर भटक भी हम गए इस दश्त-ए-सहरा में "राज"
राहगीरों के लिए तो रास्ता हो जाएँगे।
-Ramraj prajapati
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इश्क़ करता हूँ मैं तुमसे इसलिए गश्त करता रहता हूँ
एक बार भी तुम समझें होते तो यह हाल न हुआ होता-