एक अधूरी किताब है नारी, जिसमे शब्दो की उलझन है सारी, जो दुनिया के सामने हमेशा है हारी, उसके मन को समझने की नही है किसी की तैयारी, फिर भी हर परिस्थिति में उसने रखी है समझदारी।
जानती है कि घर, परिवार और समाज में संतुलन बनाकर रखे । गलती हो जाए तो कोई समझाता नही है बल्कि चर्चा करता है हर कोई।रूठना हो तो कोई मनाता भी नही है।फिर भी नारी सबका ख्याल रखती है कभी जीजाबाई, मेरीकॉम बनकर या कभी अपने घर की झांसी की रानी बन जाती है। ❤️Happy Womans day ❤️