✍️बहुतों ने माना है ये मन ही अच्छे और बुरे, दोनों ही ख़यालों का ठिकाना है।✍️
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ऐसा है कि बैठे बैठे दिन में भी कभी ऐसे भी ख़याल मन में सहसा ही दस्तक देते हैं।
उन्हें क्या पता इधर क्या चल रहा है, इसलिए तो सोचकर इम्तिहान जमकर लेते हैं।
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ये तो निर्भर करता है कि कौन क्या सोचते हैं एवं ख्यालों का आना भी वैसे आम है।
कभी घर का ख़्याल, कभी भविष्य का ख़्याल, मन मस्तिष्क में अच्छा इन्तज़ाम है।
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आंखें बंद कर सोचूं व देखूं तो ख्यालों की दुनिया अदृश्य होकर भी बेहद विशाल है।
अच्छे एवं बुरे दोनों ही तरह के ख्यालों की जन्मभूमि ये अपना मन भी बेमिसाल है।
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अपना मन ही है इन ख्यालों का घर और जन्मभूमि, कर्मभूमि और यही ठिकाना है।
जन्म लेना ही है ख्यालों को मन में, और न जाने और कितने कर्म करके दिखाना है।
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आने वाले ख्याल ग़र अच्छे हों तो इनके कुछ मुख़्तलिफ़ ठीक प्रभाव भी दिखते हैं।
उभरते रहते हैं जन्म ले लेकर मन में ये अज़ीम ख़याल अपनी कहानियां लिखते हैं।
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उत्पन्न होने वाले बुरे ख्यालों का क्या! हां, कभी कभी इनका भी प्रादुर्भाव होता है।
मनोदशा तय करती है कौन जन्म ले, कौन न ले; ख्यालों से सबको लगाव होता है।-
My full name is Rishikesh Agrawani.
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✍️"Love can be felt majorly and seen minorly."✍️
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जो देवताओं से,
बड़ा प्रेम करते हैं।
उन प्रेमी हृदयों पे,
देवता भी मरते हैं।
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जो धन से निर्धन हैं,
पर मन से सज्जन हैं।
इंसान हैं वो धरा पर,
उन्हें चाहते जन जन हैं।
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जो मन से निर्मल हैं।
जो वचन से निर्मल हैं।
उनके कर्म भी होंगे निर्मल!
तन, ज़ेहन भी होंगे निर्मल।
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जो दिखते सच्चे हैं।
जो दिल से अच्छे हैं।
उन्हें ये धरा भी धरे रहेंगी।
'गौरवान्वित हूं', यही कहेंगी।
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जो धरा के जीवों से, बड़ा प्रेम करते हैं।
हो चाहे वो एक जानवर, सभी से प्रेम करते हैं।
भगवान भी कहते हैं कि वो इंसान के जैसे हैं।
भले ही कोई खूंखार हैं, कोई नादान के जैसे हैं।
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चाहे भी जैसा है, यह धरा ही ऐसा है।
कर्म प्रधान है और रहेगा, फल भी वैसा है।
कहीं हरियाली, कहीं वीरानी, दृश्य भी कैसा है।
कहीं खुशी, कहीं गम है तो कहीं पैसा ही पैसा है।
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फिर विविधताओं को लिए जीना जारी है।
कहीं आंगन, कहीं द्वार है, कहीं फूलवारी है।
इंसान, पशु-पक्षी, पेड़ पौधे व निर्जीव, हां, इन सबकी बारी है।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गणेश चतुर्थी की अच्छी तैयारी है।-
✍️I have started exploring my dreams in search of links to my past life!✍️
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क्या ज्यादातर मेरे सपनों में, कहीं न कहीं, यूं उनका प्रायः शामिल होना ज़रूरी था!
ऐसा तो नहीं था पर लगता भी यही था, जैसे मन का उन्हें सोचना कोई मजबूरी था।
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तो था भी ऐसे कि रूक रूककर, बीच बीच में जब जब भी सपना आया करता था।
और भी होते थे मगर ज़िंदगी के अच्छे लम्हों को उन्हें भी संग में दिखाया करता था।
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जो सोचने को बाध्य करता था मुझे न चाहकर भी ये सोच के कि ऐसा होता क्यों है।
तन्दुरूस्त मन, सपनों में जो न घटे हों, उन अकल्पनीय लम्हों के बीज बोता क्यों है।
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नींद से जागकर मुझे जब उन देखे गये सपने का कोई हिस्सा याद आता है जब भी।
लगता है जैसे किसी जन्म का रिश्ता है अब भी अब के इंसानों के संग मुझे तब भी।
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क्यूंकि सपनों में किसी विशेष इंसान का बार बार आना भी कोई आम बात नहीं है।
सबके अपने-अपने होते हैं सपने, कोई ईश्वर के सपने देखें, कोई आम बात नहीं है।
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जीवन में इस जन्म और पूर्वजन्म के बातों से संबंधित सपने, बहुत कुछ कह देते हैं।
क्या जानें हम पर ये सच भी तो है ये अपने सपने हक़ीक़त में बहुत कुछ कह देते हैं।-
✍️"The caged parrot is waiting for its moment to sing like the cuckoos!"✍️
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जब तोते ने कहा, रोते रोते फिर हंसते हंसते कि मुझे भी कोयलों के संग में गाना है।
'मिट्ठू मिट्ठू' कहकर मैं थक चुका हूं, क्या बताऊं अब तो मुझे भी गाना गुनगुनाना है।
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अपना ही नाम लेकर थक चुका हूं गांव शहरों में मुझे कभी 'राम राम' भी सिखाओ।
कभी 'राधे राधे', कभी 'कृष्ण कृष्ण' भी सिखाओ, मुझे भी भक्ति की राह दिखाओ।
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मैं भी सीख सकता हूं मनुष्यों के समान बोलियां बोलना;ये इतना अच्छा ज़माना है।
'मिट्ठू मिट्ठू' कहकर मैं थक चुका हूं, क्या बताऊं अब तो मुझे भी गाना गुनगुनाना है।
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मैं भी स्वतंत्र जीवन चाहता हूं पर लोगों के प्यार में कैद, मुझे तो यहीं रूक जाना है।
कहीं गांव तो कहीं शहरों में मेरा परिवार बसता है, जीना है और यहीं मिट जाना है।
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कभी जंगल का वासी था मैं अपने बचपन में, अब तो पिंजरा ही मेरा आशियाना है।
'मिट्ठू मिट्ठू' कहकर मैं थक चुका हूं, क्या बताऊं अब तो मुझे भी गाना गुनगुनाना है।
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सबके वार्तालाप देखकर बोलने की चाहत जागृत होती है, यही सभी को बताना है।
'मिट्ठू मिट्ठू' कहकर मैं थक चुका हूं, क्या बताऊं अब तो मुझे भी गाना गुनगुनाना है।-
✍️"Happy Rakshabandhan to all: A bond of trust, protection, and love!"✍️
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हर मानव की तरह एक मानव है, यह ऋषिकेश भी ठीक ही है व धर्मपथगामी है ये।
पुरानी से पुरानी राखियां भी जिनमें सलामत रहती हैं उन कलाईयों का स्वामी है ये।
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एक बार बंधी राखियों को कलाईयों पर, लम्बे अरसे तक रखे रहना जिसे पसन्द है।
राखियां तो अपने आप में अनमोल हैं यह मानता है जो; जिसे उतारना नापसन्द है।
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परवरदिगार के बनाए इस दीर्घ कायनात में आज के समय में मौजूद एक अंश है ये।
अन्य मानवों की तरह एक मानव व एक सूक्ष्म जीव सा प्रतीत होने वाला अंश है ये।
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जो ठीक समझते हैं, ठीक उनकी ही तरह जिसे राखियों की कीमत का अन्दाज़ा है।
लोगों के प्रति स्नेह प्रविष्ट करने के बाद जो बन्द हो, जिसके दिल में वो दरवाज़ा है।
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जो राखियों को धागा नहीं बल्कि कुछ और समझता है जो रिश्तों की कद्र करता है।
हां, जैसे कि और भी करते हैं ठीक वैसे ही, जो अदृश्य रूप में ही पर कद्र करता है।
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वो जो राखियों को सलामत रखना, हाथों का बोझ नहीं वरन् शोभा ही समझता है।
जो लंबे अरसे तक उन्हें रखना, उन्हें उनकी खुशियों का देना, शोभा ही समझता है।-
✍️"The SINE curve of life gives opportunities to learn, grow, and earn!"✍️
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ज़िन्दगी की इस दौड़ती पटरी पर, मुसीबतें दस्तक दें मगर हमें कभी हारना नहीं है।
ये डर डर कर भी क्या जीना, घुट घुट कर भी क्या जीना है, खुद को मारना नहीं है।
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जीवन है जब तक, तब तक बहुत कुछ हो सकता है, ज़िन्दगी को संवारना यहीं है।
ग़र भटक गया मन तो उस मन को सही दिशा में आने के लिए भी पुकारना यहीं है।
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सीखने के मौके भी बहुत आते हैं औरों से; उनकी अच्छाईयों को देखकर भी यहां।
भगवान, सज्जन, महापुरुष के संग और भी जीव या निर्जीव, यहां वहां, जहां तहां।
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हां, समझने के मौके भी बहुत आते हैं कभी कभी इर्द-गिर्द का आकलन करने पर।
नज़र भी जमी रहती है उन पर और सीख भी निरन्तर गुजरती रहती सिर के ऊपर।
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तो कभी कभी औरों को परखने के मौके भी आते हैं जब हक़ीक़त सामने आती है।
आडंबर फिर आडंबर नहीं रह जाता उस वक्त ये पर्दा उठाकर सत्य सामने लाती है।
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और कभी कभी फैसले लेने के मौके भी आते हैं; जब मन, ज़ेहन भी व्यस्त रहते हैं।
पता है हारने वाले बढ़ते नहीं हैं, जो आगे बढ़ते हैं निरन्तर आगे वो मदमस्त रहते हैं।-
✍️It's good to write & craft our story with our own hands before we die!✍️
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देखे तो मैंने भी हैं कुछ औरों, कई औरों के जैसे ज़िंदगी के अनेक रंग बचपन से ही।
पर कभी कभी ज़िन्दगी का वो दास्तां भी कैसे आगे लिखा जाएगा, ये सोचता हूं मैं।
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मन भी कहता है कहने को बहुत कुछ; मस्तिष्क भी पुरानी बातें सोचता मुसलसल।
हर घड़ी, हर पल आजकल, आज नहीं तो कल परसों, बस निरन्तर ये सोचता हूं मैं।
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सबके अपने तराने, अपनी कहानियां, अपने किस्से हैं, बड़े यादगार और रूचिकर।
जीवन के मुख़्तलिफ़ हिस्से के किस्से हैं, ये आगे कैसे लिखें जाएंगे ये सोचता हूं मैं।
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जीवन के महत्वपूर्ण एवं यादगार पलों को लिखने वाले भी बेशक खुशनसीब होंगे।
भागीदारी देख ही तभी किस स्याही, किन कलमों से लिखे जाएंगे, ये सोचता हूं मैं।
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खुद की कहानी खुद ही लिखने में भरोसे रखता हूं मैं, औरों से गलती हो सकती है।
अगर कोई और भी लिखे तो क्या सच, किन भावों से लिखे जाएंगे, ये सोचता हूं मैं।
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किसी की छोटी तो किसी की लम्बी है ये ज़िन्दगी, बहुतों के किस्से बाद में आते हैं।
तभी मैं कभी बाद आने वाले किस्से कितनी शिद्दत से लिखे जाएंगे, ये सोचता हूं मैं।-
✍️"चाय के प्रति मेरे सहकर्मी और कॉलेज के दोस्त की खास दीवानगी है।"✍️
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चाहे बादल गरजे, बिजली कड़के या दोपहर की तपती धूप हो या बारिश की साया।
उसे फ़र्क ज़रा भी न पड़ता! वह निकल जाता ये कहकर कि "ठीक अभी मैं आया"।
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कुछ दिनों पहले की बात और थी, जब वह पॉलिथीन का चहेता चाय लेकर आता।
आजकल ऐसा था, जाते वक्त वह भूलता नहीं था; अक्सर वह बैग ही लेकर जाता।
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भले ही मैं चाय नहीं पीता था मगर कभी कभी संग चलकर उसके संग मैं जाता था।
यह अच्छा था तो इसी बहाने घूमकर कुछ देर ही सही, बाहर से मैं भी हो आता था।
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जाते वक्त बैग लेकर जाता था और वो क्या लाएगा, ये बिल्कुल भी नहीं बताता था।
जब भी वह अकेले बाहर जाता तो चाय के संग बिस्किट, नमकीन लेकर आता था।
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नौकरी के लिए लंबे अरसे के बाद छत्तीसगढ़ से बैंगलुरू उसकी अच्छी रवानगी है।
देखकर, देखने वाले उसे "चाय का मजनूं" ही कह दें, कुछ ऐसी उसकी दीवानगी है।
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तो कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी संध्या को चाय से उसकी यूं मुलाक़ात होती।
दफ़्तर के दिनों में अक्सर दुकान पर और छुट्टी वाले दिनों में कमरे में ही बात होती।-
✍️"भाभी जी! आप रहस्य जानकर भी उजागर नहीं करतीं व ये लगता है!"✍️
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आपकी बातों से, मुझको लगता है!
आजकल बातों से, मुझको लगता है।
धीरे धीरे मुझसे पूछकर मुझे पहचान गई हैं।
पूछ पूछकर, आप मेरे सभी राज ही जान गई हैं।
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ओ मेरी भाभी जी, मेरे भैया से;
मत कहना पर, मुझको लगता है।
आप मुझे दूर से ही पूरा पहचान गई हैं।
दूर रहकर, मेरे पूरे राज भी जान गई हैं।
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भले ही मुकरूं मैं, भले हां कह दूं मैं;
भले ही हंस लूं मैं, भले न कह दूं मैं;
मेरी बातों में तब भी झूठ झलकती है।
और सच की खुशबू भी संग महकती है।
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जैसे आपके मन में तरंग व कभी लहर उठती है।
मुझे लगता है, आपको सच की खबर लगती है।
ये मुझे लगता है, हां हां मुझे यही लगता है।
मन की गलियों में जैसे सच की रथ निकलती है।
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जैसे बिल्कुल अनभिज्ञ हों ऐसे आप लेकर सवाल!
जो भी हो भैया से राज जानकर, अपने दिल का हाल;
कैसे राज जानने की ख़्वाहिश लिए आप पुछती हैं।
मुझे मालूम है, अनेक जिम्मेदारियों से आप जुझती हैं।-
खबर पढ़ पढ़कर ऐसा है कि
लोगों की मुझे अच्छी खबर रहती है।
पर लोग समझते हैं उल्टा इसे!
वो कहते हैं, उन पर मेरी नज़र रहती है।
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