ऋषिकेश अग्रवानी   (✍️ऋषि (भारतर्षि)🔱)
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Joined 21 February 2020


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Joined 21 February 2020

✍️"The SINE curve of life gives opportunities to learn, grow, and earn!"✍️
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ज़िन्दगी की इस दौड़ती पटरी पर, मुसीबतें दस्तक दें मगर हमें कभी हारना नहीं है।
ये डर डर कर भी क्या जीना, घुट घुट कर भी क्या जीना है, खुद को मारना नहीं है।
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जीवन है जब तक, तब तक बहुत कुछ हो सकता है, ज़िन्दगी को संवारना यहीं है।
ग़र भटक गया मन तो उस मन को सही दिशा में आने के लिए भी पुकारना यहीं है।
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सीखने के मौके भी बहुत आते हैं औरों से; उनकी अच्छाईयों को देखकर भी यहां।
भगवान, सज्जन, महापुरुष के संग और भी जीव या निर्जीव, यहां वहां, जहां तहां।
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हां, समझने के मौके भी बहुत आते हैं कभी कभी इर्द-गिर्द का आकलन करने पर।
नज़र भी जमी रहती है उन पर और सीख भी निरन्तर गुजरती रहती सिर के ऊपर।
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तो कभी कभी औरों को परखने के मौके भी आते हैं जब हक़ीक़त सामने आती है।
आडंबर फिर आडंबर नहीं रह जाता उस वक्त ये पर्दा उठाकर सत्य सामने लाती है।
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और कभी कभी फैसले लेने के मौके भी आते हैं; जब मन, ज़ेहन भी व्यस्त रहते हैं।
पता है हारने वाले बढ़ते नहीं हैं, जो आगे बढ़ते हैं निरन्तर आगे वो मदमस्त रहते हैं।

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✍️It's good to write & craft our story with our own hands before we die!✍️
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देखे तो मैंने भी हैं कुछ औरों, कई औरों के जैसे ज़िंदगी के अनेक रंग बचपन से ही।
पर कभी कभी ज़िन्दगी का वो दास्तां भी कैसे आगे लिखा जाएगा, ये सोचता हूं मैं।
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मन भी कहता है कहने को बहुत कुछ; मस्तिष्क भी पुरानी बातें सोचता मुसलसल।
हर घड़ी, हर पल आजकल, आज नहीं तो कल परसों, बस निरन्तर ये सोचता हूं मैं।
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सबके अपने तराने, अपनी कहानियां, अपने किस्से हैं, बड़े यादगार और रूचिकर।
जीवन के मुख़्तलिफ़ हिस्से के किस्से हैं, ये आगे कैसे लिखें जाएंगे ये सोचता हूं मैं।
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जीवन के महत्वपूर्ण एवं यादगार पलों को लिखने वाले भी बेशक खुशनसीब होंगे।
भागीदारी देख ही तभी किस स्याही, किन कलमों से लिखे जाएंगे, ये सोचता हूं मैं।
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खुद की कहानी खुद ही लिखने में भरोसे रखता हूं मैं, औरों से गलती हो सकती है।
अगर कोई और भी लिखे तो क्या सच, किन भावों से लिखे जाएंगे, ये सोचता हूं मैं।
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किसी की छोटी तो किसी की लम्बी है ये ज़िन्दगी, बहुतों के किस्से बाद में आते हैं।
तभी मैं कभी बाद आने वाले किस्से कितनी शिद्दत से लिखे जाएंगे, ये सोचता हूं मैं।

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✍️"चाय के प्रति मेरे सहकर्मी और कॉलेज के दोस्त की खास दीवानगी है।"✍️
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चाहे बादल गरजे, बिजली कड़के या दोपहर की तपती धूप हो या बारिश की साया।
उसे फ़र्क ज़रा भी न पड़ता! वह निकल जाता ये कहकर कि "ठीक अभी मैं आया"।
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कुछ दिनों पहले की बात और थी, जब वह पॉलिथीन का चहेता चाय लेकर आता।
आजकल ऐसा था, जाते वक्त वह भूलता नहीं था; अक्सर वह बैग ही लेकर जाता।
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भले ही मैं चाय नहीं पीता था मगर कभी कभी संग चलकर उसके संग मैं जाता था।
यह अच्छा था तो इसी बहाने घूमकर कुछ देर ही सही, बाहर से मैं भी हो आता था।
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जाते वक्त बैग लेकर जाता था और वो क्या लाएगा, ये बिल्कुल भी नहीं बताता था।
जब भी वह अकेले बाहर जाता तो चाय के संग बिस्किट, नमकीन लेकर आता था।
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नौकरी के लिए लंबे अरसे के बाद छत्तीसगढ़ से बैंगलुरू उसकी अच्छी रवानगी है।
देखकर, देखने वाले उसे "चाय का मजनूं" ही कह दें, कुछ ऐसी उसकी दीवानगी है।
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तो कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी संध्या को चाय से उसकी यूं मुलाक़ात होती।
दफ़्तर के दिनों में अक्सर दुकान पर और छुट्टी वाले दिनों में कमरे में ही बात होती।

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✍️"भाभी जी! आप रहस्य जानकर भी उजागर नहीं करतीं व ये लगता है!"✍️
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आपकी बातों से, मुझको लगता है!
आजकल बातों से, मुझको लगता है।
धीरे धीरे मुझसे पूछकर मुझे पहचान गई हैं।
पूछ पूछकर, आप मेरे सभी राज ही जान गई हैं।
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ओ मेरी भाभी जी, मेरे भैया से;
मत कहना पर, मुझको लगता है।
आप मुझे दूर से ही पूरा पहचान गई हैं।
दूर रहकर, मेरे पूरे राज भी जान गई हैं।
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भले ही मुकरूं मैं, भले हां कह दूं मैं;
भले ही हंस लूं मैं, भले न कह दूं मैं;
मेरी बातों में तब भी झूठ झलकती है।
और सच की खुशबू भी संग महकती है।
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जैसे आपके मन में तरंग व कभी लहर उठती है।
मुझे लगता है, आपको सच की खबर लगती है।
ये मुझे लगता है, हां हां मुझे यही लगता है।
मन की गलियों में जैसे सच की रथ निकलती है।
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जैसे बिल्कुल अनभिज्ञ हों ऐसे आप लेकर सवाल!
जो भी हो भैया से राज जानकर, अपने दिल का हाल;
कैसे राज जानने की ख़्वाहिश लिए आप पुछती हैं।
मुझे मालूम है, अनेक जिम्मेदारियों से आप जुझती हैं।

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खबर पढ़ पढ़कर ऐसा है कि
लोगों की मुझे अच्छी खबर रहती है।

पर लोग समझते हैं उल्टा इसे!
वो कहते हैं, उन पर मेरी नज़र रहती है।

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✍️"जीवन में अगर सबेरा है तो कहीं अंधेरा भी मौजूद है।"✍️
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ख़्याल भी ख़्यालों में गुम हों जैसे!
मेरा तो वैसे यह ख़्याल भी जैसे कुछ पाने लगा है आजकल।
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लगता है कि सपने भी मशरूफ़ हैं।
मेरे इन सपनों को भी शायद सपना आने लगा है आजकल।
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और मन भी स्थिर है काफी दिनों से
लगता है मन भी फ़ुर्सत में ज़रा ध्यान लगाने लगा है आजकल।
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तन भी सक्रिय है, मुख़्तलिफ़ काम हैं।
उसे भी ख़ुद की मसरूफ़ियत नज़र आने लगा है आजकल।
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जीवन के दो रूप देख देखकर लोग जीते हैं।
खुशी के लिए ज़माना, ये सोच आज़माने लगा है आजकल।
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ईश्वर की उपस्थिति भी हर वक्त साहस देती।
पैसों की किल्लत भी तभी घर में खुशी लाने लगा है आजकल।
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जीवन का हर पल खुशियों से भरा कहां होता है!
दिक्कतें भी आती रहती है, जीवन ये समझाने लगा है आजकल।
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पर समझने में देर लगता है, सबके अपने मसले।
और मन अब जानता है, तभी ये बात मुझे बताने लगा है आजकल।

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✍️"रहो रहो ये कहो कहो ये भारत वतन हमारा है।"✍️
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खुला खुला सा मौसम है व कितना हसीन नज़ारा है।
मन से कहो, हृदय से कहो, यह भारत देश हमारा है।
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नील गगन में, देखो तो देखो, सूरज कितना प्यारा है।
गर्व करो और दिल से कहो, यह भारत देश हमारा है।
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बदले मौसम महीनों में, परिवर्तन का यही इशारा है।
दिल से कहो, श्रद्धा से कहो, यह भारतवर्ष हमारा है।
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और रात हुई तो नभ में देखो, चंदा और सितारा है।
फक्र करो और मन से कहो, यह भारतवर्ष हमारा है।
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हैं अनुयायी खूब खूब, कहें तो देश जहां में सारा है।
सब देशों का विश्वगुरू है, यह भारत वतन हमारा है।
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हम इंसानों के संग में रब ने पशु-पक्षी, पेड़ उतारा है।
यहां उतरकर खुश हैं हम, यह भारत वतन हमारा है।
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रब के हाथों में जादू है, दुनिया को क्या खूब संवारा है।
उनमें से एक है अपना वतन, वो भारत वतन हमारा है।
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है ये धरोहर धरा का इसमें चहुंओर बहुत उजियारा है।
जहां गांव, शहर, गलियारा है वो भारत वतन हमारा है।

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✍️"Not much, but improving ourselves in certain activities, habits, thinking, etc. can go a long way in improving our overall performance."✍️
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ज़्यादा न सही पर हो सके भले थोड़ा ही सही, उस work में भी तुम quality रखना।
Gender से भी आजकल comparison होने लगी हैं, ठीक से रहना, equality रखना।
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Discipline भी बहुत important है जीवन में और इसका पालन भी बहुत जरूरी है।
नियम धर्म तो बहुत हैं यहां पर, ज्यादा न रख सको पर कुछ तो personality रखना।
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वैसे work तो हर वर्ग करता है कुछ न कुछ, वो सभी सोते सिंह सिंहासन के नहीं हैं।
सोने के अवसर छुट्टियों या weekend में आते हैं, पर तुम जगना, Formality रखना।
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नीन्द भी जरूरी है life में मगर "अति सर्वत्र वर्जयेत्" तो जरूरत के मुताबिक़ सोना।
आएगी बहुत नींद दोबारा सोने को उकसाने मगर बचना हमेशा व morality रखना।
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Fake चीजों के बलबूते fake मत बनना, सदैव बरकरार अपनी originality रखना।
गलतियां होती हैं इसलिए अपनी हरकतों व करतूतों पर सदा observability रखना।
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Future में Foreigns भी जाओ तो मातृभूमि, मातृभाषा एवं संस्कार को भूलना मत।
हो सकता है परदेश खूब पसंद आए! बेशक वहां भी रहना पर Nationality रखना।

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✍️"Things can be learned from everyone, whether it is animals, stones, trees or human beings like children or adults!"✍️
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सीखो सीखो सबसे सीखो; संत, मुनि व रब से सीखो; जन्म लिए हो तब से सीखो।
औरों से अच्छी आदत सीखो; पेड़, तरू, पादप से सीखो; पश्चिम व पूरब से सीखो।
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पेड़ों के पत्तों से सीखो; मधुमक्खी के छत्तों से सीखो; सच्चे मन व अक़्ल से सीखो।
सेब, संतरे के फल से सीखो; भूत, आज व कल से सीखो; पीछे व बगल से सीखो।
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अपने अच्छे यारों से सीखो; नन्हे प्यारे बच्चों से सीखो; बड़े बुज़ुर्ग, लोगों से सीखो।
न्यारों और प्यारों से सीखो; चाकू, हथियारों से सीखों; ठठेरा व औजारों से सीखो।
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गाँव, गली, शहरों से सीखो; कुओं, तालाबों से सीखो; झील, नदी, नहरों से सीखो।
तन से सीखो मन से सीखो, वन उपवन से सीखो सीखो, सागर की लहरों से सीखो।
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झट से सीखो, पट से सीखो, झटपट व जल्दी से सीखो; मिर्च और हल्दी से सीखो।
खूब न करना गलती, सीखो; जलती दीए के लौ से सीखो; एक नहीं, सौ से सीखो।
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पंखे, बल्ब, इस्त्री से सीखो; कंघी, तेल, साबुन से सीखो; दांतों से, दातुन से सीखो।
जानवरों, शैलों से सीखो; जंगल, मैदान एवं खेतों से सीखो; भूतों से प्रेतों से सीखो।

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✍️"Happy Jagannath Yatra, everyone! May Lord Jagannath, along with his brother & sister, see us through his big eyes & bless us with his divine grace!"
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तो जाना होगा कभी न कभी इस वर्ष नहीं तो भविष्य में ही सही करने मनोरथ पूरी।
इसे देखने के ख़्वाब बहुतों के होंगे ठीक मेरी ही तरह, जो अब भी रह गई है अधूरी।
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भारतवर्ष के चार पवित्र धामों में से एक धाम जिसका नाम है पुरी,देखना है जरूरी।
कलियुग में भगवान कृष्ण जी का ये निवासस्थान, आज कहलाता है जगन्नाथ पुरी।
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यह स्थान, हमारे वतन भारतवर्ष की शान एवं सम्मान के प्रतीक के रूप में है आज।
ये शुरू से, लाखों करोड़ों अरबों खरबों के दिलों पर करता है, करते आ रहा है राज।
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एक जगह जो देश विदेश के लोगों को अपनी ओर खींचता है, अद्भुत आकर्षण से।
जहां धड़कता है भगवान का दिल व रथ भी चलते हैं लोगों के स्नेह एवं समर्पण से।
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यह जगह कोई जगह ही नहीं बल्कि धरती का बैकुंठ धाम है, जहां श्री हरि रहते हैं।
जहां तैरकर आया था द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण जी का दिल, कथा ये कहते हैं।
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बहुत सी अविश्वसनीय परंतु सत्य बातें हैं पुरी की जिसे देखने की चाहत मुझे भी है।
बेशक आज रथयात्रा के पवित्र अवसर पर महसूस हो रही दिल में राहत मुझे भी है।

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