ऋषिकेश अग्रवानी   (✍️ऋषि (भारतर्षि)🔱)
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Joined 21 February 2020


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Joined 21 February 2020

✍️"Being away from family means juggling numerous tasks on your own!"
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अविवाहित ज़िंदगी और ऐसे में घर से कोशों दूर हैं हममें से कई तो!
खाना सब्जी बनाने की बारी भी आए तो कभी कभी यह भी बड़ा काम लगता है।
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मुख़्तलिफ़ कामकाज और मसरूफ़ियत, और फिर जल्दबाज़ी भी!
ऐसे में अगर टमाटर भी हो तो इसे सलाद के लिए काटना भी बड़ा काम लगता है।
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पर कई हैं जो कार्यालय और घर दोनों के ही काम ठीक कर लेते हैं।
फिर भी कई ऐसे भी हैं जिन्हें तज़ुर्बा ही नहीं, उन्हें तो काम भी बड़ा काम लगता है।
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पूछा जाता है ये तब तब, घरवालों से फोन पर बात हो जब जब कि
खाना हुआ भी नहीं, पर बताना होता है सही, पर ये बताना भी बड़ा काम लगता है।
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एक ही देश के विभिन्न राज्यों में भोजन के प्रकारों में भी बड़ा फर्क!
चिंता न हो सोचकर, घरवालों को भोजन में ये फर्क बताना भी बड़ा काम लगता है।
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बोलचाल, भाषा, वेशभूषा, खानपान, रहन सहन में एक बड़ा फर्क!
मगर जिम्मेदारियाँ जो होती हैं कन्धों पर कि ये सब जताना भी बड़ा काम लगता है।

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✍️"A long-overdue meetup b/w 2 friends at a tea shop!"✍️
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#oldage #unforgettable #friends #meetup #teashop
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उम्र की इस दहलीज़ पर वे दो मिले थे अभी...!
अचानक ही उनके बेटों की नौकरी में तब्दीली के चलते।
पोते पोतियों के साथ समय बिताना ही आगे काम रह गया था।
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लंबा अरसा बीत चुका था एक दूसरे से मिले...!
अचानक मुलाक़ात जो हुई चाय दुकान पर शाम ढ़लते।
बातें खत्म नहीं हुई जो बताना अब किस्सा तमाम रह गया था।
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मित्र जो थे किसी ज़माने में वो यादें साथ थीं...!
रात्रि होने को था बातों में, अरसों के बाद यूं बातें करते।
घर भी बुलाते मगर, बाकी तो अभी सारा इंतज़ाम रह गया था।
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फिर पूर्व तैयारियों को नज़रन्दाज़ किया और...!
दे दी दावत एक दूसरे को, घर आने की, पता भी संग में।
दावत जैसे लक्ष्य, आगे अब करना हासिल मुकाम रह गया था।
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मेहमाननवाजी के लिए तत्पर दोनों में बहस...!
कि करे भी तो करे कौन पहले, और अन्ततः ये भी हुआ।
हो गया फैसला व दिन साहूकार साहब के ही नाम रह गया था।
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नौकरी नहीं थी पर दूसरे सज्जन भी ठीक थे...!
किसान थे, आज भी खेतीबाड़ी ऐसी थी कि सब कुछ था।
अब तो देखना इन दावतों व मुलाकातों का अंज़ाम रह गया था।
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और आगे दावतें हुईं व मेजबानी भी खूब थी...!
मेहमाननवाजी में कोई कसर न छोड़ी दोनों ने ये खूब थी।
अन्य मित्रों को इसे बताने, अब करना बस सरेआम रह गया था।

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✍️"Beautiful roses waiting for someone in the garden!"✍️
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नज़रें जमीं थीं उन पर व मैंने देखा...!
जंगल किनारे, बागों में खिले हुए थे गुलाब के फूल।
देखकर उन्हें लगता था जैसे वो वर्षों से किसी के इंतज़ार में थे।
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उन्हें भी लगता था और भ्रम होता...!
बहुत कम ही लोग आते हैं उन्हें देखने और तोड़ने।
उन्हें भी पता था,सूना था इर्दगिर्द मगर वो भी इसी संसार में थे।
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लाल, पीले व गुलाबी रंगों के गुलाब...!
माता शबरी की तरह किसी के लिए प्रतीक्षारत थे।
जैसे भगवान राम आने वाले हैं, यही सोचकर खड़े कतार में थे।
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मगर इस कलियुग में ये सम्भव कहाँ...!
उन्हें मालूम था उनका चहेता तो एक इंसान ही है।
उन्हें पता था मेरे आने का दिन, इसलिए वो किसी विचार में थे।
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शायद इस्तक़बाल की तैयारी थी जारी...!
उनकी ओर से मानो मुसलसल तैयारी की हो बारी।
ये प्यारे गुलाब फुलवारी के; मेरे चुनिन्दा पसन्दीदा हजार में थे।
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भौंरों को डराया इन्होंने, तितलियों को भगाया...।
उनसे कहा, कहीं और जाकर रस तलाशें, ताकि रस
उनसे महफूज़ रहें, इसलिए शायद भौंरे कहीं और शिकार में थे।
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बागों में जैसे आना दिनों के बाद हुआ हो...!
लंबे इन्तज़ार के बाद, यह देखना, इन गुलाबों का
मेरा इस तरह से इस्तक़बाल हुए शामिल अच्छे पुरूस्कार में थे।
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तितलियों ने भी माना...!
ये प्रेम है इससे सामना नहीं।
इसलिए वे अब अपने दरबार में थे।

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✍️"Some Bonds Are Meant to Stay in Our Hearts Forever!"✍️
Some bonds make the past unforgettable, connections become eternal memory.
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ईश्वर के पनाह में रहते हुए कदम बढ़ाते हुए बस थोड़ा ही तो परवाह करने लगा था।
नहीं मालूम था हाल-ए-दिल, पर यादों के जरिये ही मैं जीवननिर्वाह करने लगा था।
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महसूस होता, कभी कभी लगता था, जगह-ए-दिल में जब से पनाह बनने लगा था।
कुछ गलत है ये लगने लगा था, मुझे क्या पता था, मैं भी कोई गुनाह करने लगा था।
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खत्म करके गुफ़्तगू तभी ऐसे लगता था; जैसे मीलों का सफर अभी खत्म हुआ हो।
शब्दों ने, बातों ने, हाथों ने नहीं बल्कि अहसासों, लम्हों, यादों ने दिल को छुआ हो।
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अपनेपन की भावनाओं का असर था, जगह-ए-दिल में स्नेह अथाह बनने लगा था।
गुनाहगार मैं खुद की ही गलतियों के सबूतों को समेटकर अब गवाह बनने लगा था।
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भुलाकर पुरानी गलतियों को हर नज़रिए से, मैं साफ सुथरा पाता था पूरा आचरण।
दूरी फासले तो बस ऐसे ही थे, फर्क नहीं पड़ता था, रूहों का मिलन था निराकरण।
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याद न आए सोचकर इन्हें रोकने, आने वाली यादों को भी, मैं तबाह करने लगा था।
कुछ गड़बड़ है लगने लगा, पर मुझे क्या पता था, मैं भी कोई गुनाह करने लगा था।

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✍️"Golden Shower flowers blooming in April-May"✍️

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इस गर्मी में...
अमलतास के फूल खिलने लगे हैं अब तो
पहाड़ों में भी मैंने देखा है, बहार आने लगी है आजकल।
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जो देखो तो...
पीले रंग के खूबसूरत फूल दिखते हैं खूब!
जंगलों में भी मैंने देखा है, बहार आने लगी है आजकल।
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हाँ, सही है...
हर वर्ष अप्रैल मई में ही खिलते हैं ये फूल!
गाँवों में भी प्रायः देखा है, बहार आने लगी है आजकल।
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तो, यही है...
महुआ के फूलों के संग आम भी गिरते हैं।
पशुओं को भी मजा हैं, वो भी जायका लेते हैं आजकल।
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मजबूर हैं...
कुछ लोग भी इन्हें बार बार देखने के लिए।
सारे इतने खूबसूरत हैं कि लोग देखते बहुत हैं आजकल।
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बढ़िया है...
कि प्रकृति के हसीन नज़ारों ने ध्यान खींचा।
इसलिए भी ये पहाड़, वन, पर्वत बहुत भाते हैं आजकल।
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अच्छा है ये...
जो अमलतास के फूलों से नज़ारे रंगीन हैं।
पीले पीले फूलों ने खींचा है तो जायजा लेते हैं आजकल।

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✍️"Tetora: The best leader of the frogs!"✍️

I have observed, after the summer has passed;
The frogs have started to keep crying again!
After a long time, in the ponds, encompassed!
It seemed like, they were waiting for the rain.

The summer brought down the water level.
It had made frogs worried about the future.
So they had started planning for their travel.
Tetora, the leader of the Frogs gave a lecture!

He croaked very loudly to ask all the frogs to gather!
He assembled the frogs, even fishes were also there.
Fishes weren't invited, but they wanted get together!
And a happiness was there in the pond, everywhere.

The Meeting was running for a long!
A long discussion to leave the pond!
Little tension, little happiness strong.
Tetora wanted to still keep the bond.

Since the long relationship was there
with the pond, and today it was dried!
Rain was not responding fast, frogs cried!
Even though, the leader Tetora also tried!

Finally, the discussion completed!
Decision was to look for another pond.
Once again, Terora repeated;
we'll come again, we'll keep the bond.

Terora's baby was sad!
But ok with his father.
He said, Dad dad!
You're my best father.

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✍️"King Roara: The don of the forest!"✍️
...
In the early morning, in front of home.
Little crowdy trees, near the forest zone.
Little slowly, with his strongest tone.
The Lion was roaring in the forest alone.

Not sure about other animals' breed!
Not sure, if he had punished everyone!
But in the end, he realised the need!
Not sure if he was serious or making fun!

Somewhere something was there!
Every morning he used to do the same!
Intention was completely unclear.
Not sure, if it was a part of Roara's game.











In simple words, with little clarity!
King Roara, the don of the forest!
Had planned something in reality.
He was serious, brave and honest!

Later, he revealed the secret,
while he was talking to himself.
He knew that media is great!
He didn't stop while talking to himself.

Roara was also very happy, he was clear.
Now the world knew the secrets spoken.
Still he was missing his family and dear.
He was anxious, even though nothing was broken.

Actually, Roara didn't do anything wrong!
He had sent everyone for the trip.
He thought, he is still very strong.
He will take care of forest, he won't sleep.

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✍️"I don't call or talk to my mother very often, but I miss her every day!"✍️
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💯🎊✳️🔱🌾❄❇️🍁🌿
गुज़रा हूँ कभी कभी मैं बैंगलोर शहर की गलियों से तो देखा है,गायें दूध पिलाती हैं।
राहों के बीच में या राह किनारे खड़ी होकर, ये देखकर रह रह कर माँ याद आती हैं।
🌿💯🎊✳️🔱🌾❄❇️🍁
अप्रैल की इस प्रचंड गर्मी में, बैंगलोर में हरे-भरे पेड़ों की ठण्डी छाया खूब भाती है।
इससे मिलने वाला सुकून जो महसूस होता है वो माँ के आंचल की याद दिलाती है।
🍁🌿💯🎊✳️🔱🌾❄❇️
राह चलती महिलाओं को भी देखा है अपने छोटे बच्चों के साथ, कदम मिलाते हुए।
ये देखकर मुझे जब उनमें मेरे बचपन की झलक दिखती है तो माँ की याद आती है।
❇️🍁🌿💯🎊✳️🔱🌾❄
और भी देखे हैं राह किनारे बच्चों के संग बैठकर और राहगीरों से मदद मांगती हुई।
और अपने बच्चों की खातिर, धूप में बैठी गुहार लगाती माँ, परेशानियाँ लांघती हुई।
❄❇️🍁🌿💯🎊✳️🔱🌾
जीवन के कर्तव्यों का भलीभाँति निर्वहन करते हुए, जब जब भी वो आगे जाती हैं।
मुश्किलातों से अकेली ही भिड़ने की क्षमता रखती हैं, ये क्षमता वो हमें दिखाती हैं।
🌾❄❇️🍁🌿💯🎊✳️🔱
गर्मी के दिन में संध्याकाल के बाद चंद्रमा की ठंडी प्रकाश, राहत महसूस कराती है।
इसीलिए भी शायद, आंचल से ढ़कने वाली, मुझे रह रह कर, मेरी माँ याद आती हैं।

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✍️"पूर्णिमा का चाँद"✍️




सूर्योदय से सूर्यास्त और फिर संध्या के बाद;
पूर्णिमा के दिनों में, पूर्व दिशा में बेहतरीन चंद्रोदय हसीन लगता है।

मैं देख रहा होता हूँ घर की खिड़की से उसे!
नवीन लगने वाला चाँद भी पूर्णिमा की रातों का शौकीन लगता है।

































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✍️"राह किनारे के खूबसूरत पेड़"✍️
















गर्मी में छाँव देकर और आँखों का सुकून बनकर ये पेड़!
उनमें सुन्दर फूलों के खिलने से, गर्व महसूस करते होंगे।

राहगीरों का ध्यान खिंचने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं ये पेड़!
लोगों को खुश देखकर, भूलकर भी दिल तोड़ने से डरते होंगे।




















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