जलाकर अपनी शाखें मोम सा पिघला दिया ख़ुद को,
तेरी खातिर ज़माने भर में फिर रुसवा किया ख़ुद को।-
Khayal-e-sheenam
तेरी यादों की वो तितली मुझे छूकर है बहलाती,
भले ही ग़म हो कितने भी इक मुस्कान है लाती।-
जो महका रहे थे सांसों को उलझा के सांसों से तुम,
वो सांसों की ख़ुशबू रात की सारी कहानी कह रही है।-
कोई दिलकश मेरी ग़ज़ल हो तुम,
खूब सूरत कोई कमल हो तुम।
भूल बैठी में फिर ये दुनिया भी
तुम ही आख़िर मेरी पहल हो तुम।
संग-ए-मरमर की कोई मूरत हो,
प्यार का मेरे एक महल हो तुम।
दिल का मौसम उदास था बरसो,
मेरे खातिर चहल-पहल हो तुम।
नाम आता है वो जहां शीनम,
बस वही हासिल-ए-ग़ज़ल हो तुम।-
तूने आवाज़ दी चली आई,
शाम मिलने तुझे ढली आई।
ख़्वाब तेरे मुझे यूं खुशबू दे,
बाग़ महके मैं बन कली आई।
रात रौशन तेरे वजूद से हो,
चांदनी अब मेरी गली आई।
तू चिंगारी छू कर करे शोला,
ओस की बूंद भी जली आई।
उसकी आवाज़ रस भरे प्याले,
जैसे मिस्री की घुल डली आई।
हाथ रख कर वजूद को शीनम
तू उसे कर के संदली आई।-
उसकी मोहब्बत में फ़य्याज़ दिली ने मेरी मुझे तबाह कर दिया,
उसने रौशनी मांगी मैं ने ख़ुद को जला कर सियाह कर दिया।-
तू मेरी हथेली थाम के यूं पुर-सुकून सोया रहा रात भर,
मैं तेरी धड़कनों पे अपना नाम सुन खोई रही रात भर।-
सूखी बेरंग थी मेरी ज़िन्दगी, उसकी मोहब्बत मुझपे कुछ यूं बरसी,
कि धनक के सारे रंग मेरी ज़िन्दगी में आ कर मुझे रंगीन कर गये।-
ज़ुबान खामोश रही और आंखों ने खुलासा कर दिया,
महफ़िल में कर के इशारा इश्क़ और आसाँ कर दिया।-
यूं उसने अपनी मुहब्बत में आम सी लड़की को ख़ास किया,
चेहरा उसका चांद के सामने रखके एलान-ए-महताब किया।-