sheenam parveen   (Sheenam parveen)
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Joined 3 April 2019


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20 AUG AT 21:43

कोई भी बेवफ़ाई का इल्ज़ाम ना दे चलो इक साथ बिछड़ते हैं,
मिला है इश्क़ में अश्कों का ख़ज़ाना आंखों से मोती झड़ते हैं।

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18 AUG AT 21:33

एक हसरत नहीं होती पूरी कि दूसरी तमन्ना जग जाती है,
कितनी ख़्वाहिश मारी है अपनी दिल में कब्र बन जाती है।

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17 AUG AT 23:06

तुम मुझ में खो जाओ मैं तुम में खो जाऊं
तुम्हारी गोद में रखकर सर मैं ऐसे सो जाऊं

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14 AUG AT 22:24

तू नहीं तेरी याद सही हर शब चली आती है,
जैसे तन्हाई के पौधे में कोई कली आती है।

तुम्हें ख्वाबों में लाने के वास्ते नींद बुलाते हैं,
रात से मिलने को जैसे शाम ढली आती है।

खोल कर दरिचे रखती हूं पैग़ाम कोई तो दे,
तेरी ख़बर ले कर चाॅंदनी मेरी गली आती है।

धुंआ धुंआ है वजूद, तेरे एहसास जलाते हैं,
शोले दहकते है मुझ में सांसें जली आती है।

अपनी दुआ में ज़िक्र तेरा 'शीनम' करती है,
लबों पे मिठास घोले मिस्री की डली आती है।

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13 AUG AT 21:38

समझाते हैं ख़ुद को बहुत मुक़द्दर है ये कोई धोखेबाजी नहीं,
मैंने तो मोहब्बत की थी उस से और इस में सौदेबाजी नहीं।

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12 AUG AT 22:06

राब्ता था तो गिले-शिकवे भी होते रहे,
लड़कर भी उसकी आग़ोश में सोते रहे।

ज़र्रा ज़र्रा करके उसे खुद में उतारा था,
रूह मैं वो था ख़ुद का वजूद खोते रहे।

लगाए थे मोहब्बत में उस ने अपने रंग,
फिर इश्क़ के दाग़ अश्कों से धोते रहे।

वो अपने ख़्वाब को हकीकत कर गया,
हम किर्चिया ख़्वाबों की ताउम्र ढोते रहे।

हर दुआ में उसकी बस हमने खैर मांगी,
और तस्बीह में सब्र के मोती पिरोते रहे।

नाकाम इश्क़ में हासिल शीनम ये हुआ,
भूल जाने की दुआ की सजदे में रोते रहे।

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11 AUG AT 22:33


उसकी आंखों से एक ख़्वाब चुराना है,
ख़्वाब में उसके इतना क़रीब जाना है।

अब कोई ताबीर बताए मुझको इसकी,
जिसपे सर रखा था वो उसका शाना है।

उस की अदा पे बदलता है रुख़ मौसम,
वो ज़ुल्फ खोलदे बादल बरस जाना है।

वो हंसे तो सुनहरी सुबह, रूठे तो रात,
बदले मिज़ाज रात से दिन हो जाना है।

सिर्फ धन दौलत को समझे है ख़ज़ाना,
अफ़सोस कितना जाहिल ये ज़माना है।

क़िस्मत पे नाज़ होने लगा शीनम अपनी,
वो हमसफ़र हो तो हर सफ़र सुहाना है।

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10 AUG AT 21:21

कितना मुश्किल था पहले तुम से ख़ुद को दूर करना,
आख़िर अंजाम होता है इश्क़ में ख़ुद को चूर करना।

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9 AUG AT 21:36

आंखों से आंखों की गुफ़्तगू हुई लब ख़ामोश थे बात ना होने पाई,
चांद चुराकर उसने मेरे माथे रखा लम्हा थम गया रात ना होने पाई।

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8 AUG AT 22:33

सावन की भीगी रात में अक्सर यादें बरसती हैं,
तुम बिन अब महफ़िल में भी तन्हाई डसती है।

लबों पे लब रखकर करते थे मयकशी शब भर,
ना कोई ऐसा साक़ी था ना अब वैसी मस्ती है।

कब तक सब्र करूं मैं यूं कब तक अश्क बहाऊं,
तेरे दीदार को हर पल ये मेरी आंखें तरसती हैं।

तेरे इश्क़ में फ़ना होकर तुझपे ही जान लुटाई,
तू ही मेरा सरमाया है, तुझ से ही मेरी हस्ती है।

तेरी इक मुस्कान पे वार दे शीनम खुशियां सारी,
मेरी जान तेरी ख़ातिर,ये मेरी जान भी सस्ती है।

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