Shreeraj Menon   (Raj)
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Joined 7 November 2020


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Joined 7 November 2020
17 APR AT 16:08

I had been lonely and life was like comedy
That symphony had a very sweet melody
Where I met with people who were greedy
And whose love feels like a social malady

Life in solitude is a blessing which I had
And am lucky to get life that is not bad
I often felt the people's disires are so sad
And I could only meditate till I get mad

So ethreal is the life which is my glee
Where I don't feel like I should always flee
Where love is a hell like a rush hour melee
And attracts it's prey showing the gelee

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16 APR AT 16:59

तारों भरी गर्दिश से इक था टुटा हुआ तारा
वो तो, मेरे यार, था अपने किस्मत का मारा

पीस गया वो बेचारा उस दुनिया की उसूलों में
और बन गया वो भोला भी इक ऐसा आवारा

क्या पता था ये दुनिया झूठों की रियासत है
बस चाहत था मोहब्बत का पर रह गया कुंवारा

ढूंढता रह गया वो भी उस शब की अंधेरों में
पर मिला नहीं उल्फ़त और वहाँ कोई सहारा

बस बहता गया वो इश्क़ की समुन्दर में राजू
न मिला उसे वो मंज़िल और न कोई किनारा

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16 APR AT 16:23

Beneath the blanket of blue, I reside
Where a carpet of green spreads wide
Glittering river flows a mountain side
And wind runs to and fro with a pride

With the trees, mountains and rivers
I am there where calmness shower
When people's disrespects creates blunder
I send hailstorms, floods and thunder

Do not cut the trees but plant again
Mountains guards as long as they remain
Rivers gives water to survive and sustain
And land allows cultivation of food grain

So ethreal and serene is the scene
And I live here like a celestial being seen
Don't tamper the harmony that's been
I am nature and protect to keep it clean

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15 APR AT 17:40

Trapped in the tapestry of life and death
I began my journey without knowing length
Where people were running after wealth
I strived to live without caring my health

On a voyage not knowing what is my worth
I had nothing in hand except my strength
Who knows what turns to be greatest scath
I travelled along and not loosing my breadth

There the only thing which I had is my faith
I won't be left alone like what is called greith
The sail went forward on and on until zenith
With lot of hailstorms that was left beneath

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15 APR AT 13:03

इस रंगों की महफ़िल में बता तेरा मुक्काम क्या है
रंगों से ज़्यादा रंग लोगों के है मगर अंजाम क्या है

बड़ी मशक़्क़त से मिली है मोहब्बत भी यहाँ पर
बस तेरे बिना इस कायनात में मेरा लगाम क्या है

बिन पिए ही मेरे इस दिल में इक़ नशा छाया गया
तेरी उस उल्फ़त के आगे ये प्याले का जाम क्या है

न समझा इशारा भी उन नशीली आँखों का यारा
ज़रा बता तो सही उस आदह का ये पैगाम क्या है

जन्नत-ए-जहां में बस यूँही तन्हा रह गया हूँ राजू
देख तेरी इश्क़ में मुझें मिल गया ये इनाम क्या है

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15 APR AT 10:19

दुनिया-ए-जन्नत में वो नफ़रत किस काम का
न हो उल्फ़त अगर तो कसरत किस काम का

यूँ देखा है मैंने दोस्तों में छुपी दुश्मनी भी यारा
ना दिखा सके कभी वो सूरत किस काम का

इबादत की है मैंने मोहब्बत को पाने के लिए
साथ न मिले तेरी तो वो हसरत किस काम का

बसाया था मैंने उसे अपनी मन के ईशागृह में
मन्नत न क़बूला जाए वो मूरत किस काम का

यूँही टूट कर रह गया ख़्वाब भी मेरा अब राजू
ज़नाज़ा जब निकले तो शोहरत किस काम का

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13 APR AT 9:56

जिसे देखकर मेरे दिल में इक हँसीन गाना आया
उसी से उस महफ़िल में मोहब्बत फ़रमाना आया

क्या कहे दोस्तों वो नज़नीन थी ही कुछ इस तरह
जिसके दिल में इश्क़ की चिंगारी भड़काना आया

फ़िर न जाने उसके उस दिल में क्या हलचल हुई
शब-ए-वस्ल में उल्फ़त के नाम से इतराना आया

सितारों भरी रात में इक महताब सी लगती थी वो
न जाने कैसी दरार थी जो देखकर सिराना आया

राजू, तेरे तकदीर में न साथ लिखा है किसी का
ये सोचकर मेरी जान हँसने से पहले रोना आया

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11 APR AT 1:37

मोहब्बत से मिलते तो मिलने में मज़ा है
नहीं तो यारा वो वस्ल भी बनते सजा है

महफ़िल-ए-इश्क़ में चाहत का मेला है
तेरी उस अदह पर दिल भी मेरा रज़ा है

शब की अंधेरों में रोशनी की तलाश कर
यूँ ठीक पाना रिश्ता खुदा का मोजज़ा है

नफ़रत की समुन्दर में साहिल को पाना
उल्फ़त भरा दिल भी शायद इक वज़ा है

इश्क़ को पाना भी बड़ी मशक़्क़त है राजू
हर पल रहता ज़हन में ख़ौफ़-ओ-रजा है

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10 APR AT 12:31

चहरे पर मुस्कुराहट और आँखों में नमी
कैसा यह नक़ाब जिसमे तो है कई कमी

यहाँ बस बहते आँसू कहते कुछ है यारा
करता सब है चाहत के नाम पर गुलामी

यूँ महफ़िल सजती है मोहब्बत की मगर
मिलता क्या मयखाने में सिवा बदनामी

चारों और लगा है नफ़रत की आग यारा
पर इस दिल में उठता उल्फ़त की सुनामी

यहाँ इश्क़ के बिना जीना मुश्किल है राजू
क्या करें जब तकदीर में लिखा है गुमनामी

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8 APR AT 16:04

साथ किसी का पाकर बस यूँही छूट जाता है 
कभी मुस्तक़बिल भी मेरी जान रूट जाता है 

न जाने कितने कस्मे खाए इश्क़ को पाने में 
वादों का भरोसा न कर वो तो बस टूट जाता है 

रिश्ता जो बानी है बुनियाद-ए-मोहब्बत पर 
मेरी जान वो ज़िन्दगी बस यूँही लूट जाता है

ख़्वाब-ए-उल्फ़त को खूब सजाया था यारा
उस देखा हुआ ख़्वाब भी कभी फुट जाता है 

खो गया सच्चे दिलवाले उस बाज़ार में राजू 
अब तो किसी अक्स से भी दम घुट जाता है

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