दोगले लोग
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साहब हम गुज्जर है छोटी छोटी
बातों पर हाथ नहीं जोड़ा करते
और फन कुचलने का हुनर भी रखते हैं
'साँपो' के डर से जंगल नई छोड़ा करते-
होंठों पर मुस्कान और दिल में जहर रखते हैं लोग!
हर वक़्त औरों की जिंदगी पर ,नजर रखते हैं लोग!
गिरगिट तो यूँ ही बदनाम है, हर बात पर रंग बदलते है लोग!
एक मासूम चेहरे पर हजार, चेहरे, लगा कर रखते है लोग!
गऱज पड़ने पर गधे को बाप बनाने की रीति का प्रचलन है यहाँ!
मौसम के बदलाव से ज्यादा, यहाँ फितरत बदलते है लोग!
आब-ए-आइने को हीरा समझने की गलती अक्सर करते है हम!
गले लगाते है मोहब्बत से, फिर पीठ में खंजर घोंपते है लोग!
माॅगते है सहारे जिनसे ,हम अपनी जिंदगी का मसीहा मानकर!
मित्र के लिबास में दुश्मनों से भी बदतर यहाँ होते हैं दोगले लोग!
- priya pandya
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ख़ुद की कही बातों से मुक़रना जिनका काम है,
बिन पेंदी के लोटे होते हैं, दोगला उनका नाम है।
थाली के बैंगन की तरह लुढ़क जाते हैं ऐसे लोग,
झूठी बातों से अपने मतलब को देते ये अंजाम हैं।
उसूल बदल जाते हैं इनके, हालात के हिसाब से,
दूसरों के जज़्बात से खेलना इनके लिए आम है।
फ़ायदे की ख़ातिर पाला बदल लेते हैं पल भर में,
ज़ुबाँ पे रखते मौक़ापरस्ती के हथकंडे तमाम हैं।
अहमियत मिलती नहीं ऐसे लोगों की बातों को,
सच के बाज़ार में दोगलों की इज़्ज़त नीलाम है।-
जब तक काँच हूँ, चुभती रहूँगी मैं ज़माने की नज़र में,
देखेगा सारा ज़माना, जिस दिन बन जाऊँगी आईना।
वापस पलटके आयेंगे यही दोगले लोग वक़्त आने पे,
झुकेगा ग़ुरूर, जिस दिन अन्दाज़ दिखाऊँगी शाहाना।
आज में समझता नहीं,कल वक़्त जाने क्या समझादे,
कहेगा धूल को वाह,जिस दिन निखर होऊँगी दुर्दाना।
एक-दो दिन रुला लो,फिर इससे ज़्यादा ख़ुश देखना,
जानेगा ज़िद मेरी, जिस दिन हँस सताऊँगी रोज़ाना।
आती नहीं ख़ुदगरज़ लोगों के बहकावे में कभी 'धुन',
जलेगा वो दूर से ही,जिस दिन सजाऊँगी दर-आईना।-
समझ नहीं आता
जो जैसा करे
उसके साथ वैसा ही करूं
समझ नहीं आता
सोचते नहीं लोग
बोलने से पहले
हम भी ना सोचें
समझ नहीं आता
इतना बुरा बोलने के बाद
कैसे नज़रे मिला लेते है लोग
समझ नहीं आता
ख़ुद को सही
दूसरे को हमेशा गलत
कैसे कह लेते है लोग
समझ नहीं आता-
मन में मैल मुहॅ॑ में चीनी सी मिठास
वक़्त के अनुसार शख़्सियत बदलती
गिरगिट भी शर्माए ऐसे रंग बदलते
ज़रूरत के अनुसार फितरत बदलती
इश्क़ भी करते शानो-शौकत वालों से
स्टेटस के अनुसार मोहब्बत बदलती
जिस शख़्स में छिपा हो दोगलापन
फिर कहाॅ॑ उसकी आदत बदलती
चेहरे पर ला देते कई चेहरे जो हमेशा
फिर कहाॅ॑ इनकी हिमाकत बदलती
Naini
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दोगले लोग,दोहरे मापदंड अपनाते हैं
दागी दामन को,पाक- साफ़ बताते हैं
बहू को बेटी कहते हैं, मानते नहीं हैं
इबादत के स्वांग से,रब को बेच खाते हैं
इंसानियत को बिसार कर, व्यापार करते हैं
सुधारक बनकर, इज्ज़त से खेलते हैं
जो माँ-बाप पर बड़ा- बड़ा व्याख्यान देते हैं
उनके माँ-बाप , वृद्धाश्रम में पाए जाते हैं
हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा चाहते हैं
ऐसे दोगले लोग,हर जगह पाए जाते हैं-
रखते झूठी शान और झूठाअभिमान --दोगलों की पहचान
न ख़ुद की इज्ज़त न दूजे का सम्मान-- दोगलों की पहचान
दिल दिमाग कडुवा और मीठी जुवान-- दोगलों की पहचान
सूरत से सज्जन और सीरत से शैतान-- दोगलों की पहचान
मतलब से मतलब, बेमतलब अंजान-- दोगलों की पहचान
मान चाहे न मान, पर मैं तेरा मेहमान -- दोगलों की पहचान
पीछे करें बुराई, सामने करें बखान-- दोगलों की पहचान
अपना उल्लू सीधा, भाड़ जाय जहान-- दोगलों की पहचान
बात-बात में उठायें ये गंगा और ईमान-- दोगलों की पहचान
ऊँची दुकान पर रखते फीका पकवान-- दोगलों की पहचान-