@महेश 'काव्यप्रेमी'   (@महेश 'काव्यप्रेमी')
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Joined 17 October 2018


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Joined 17 October 2018

रहती दुनिया में मानवीय संबंधों में मेरे लिए सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि किसी इंसान को ग़लत/बुरा/अभद्र कार्य-व्यवहार करने बाद भी उसे आत्मग्लानि/पश्चात्ताप नहीं होता...! बल्कि उसके द्वारा झूठ/मनघड़ंत बातें बनाकर अपने आप को उचित/सही साबित करने में लगे रहना।

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मजाक उससे ही करो, जो मजाक को मजाक समझता हो,
मजाक उतनी ही करो, जितनी खुद भी सहन कर सको।

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बैर-बंधुता के लिए कारण बानी होए ।
ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो ज्ञानी होए ।

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फर्ज़ इस तरह अदा करना दोस्त,
हो सके तो वफ़ा करना दोस्त।

दुनिया हंँसे अपने रिश़्ते पर कभी,
ना ऐसा फ़लसफ़ा करना दोस्त।

ग़म-खुशी की राज़दारी में है दोस्ती
तुम भी कहा सुना करना दोस्त।

हजार मुश्किलें आएं मगर फिर भी
नेकी के रास्ते चला करना दोस्त।।

नफरतें छोड़ इतना करना 'महेश'
दुआओं के बदले दुआ करना दोस्त।

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ख़यालात -ए- समंदर उतरना अक्सर,
कि मेरा अपने आप से उलझना अक्सर।

उन्हें न शिकवा न गिला न कोई राब्ता जहां से
सीख लिया जिन्होंने बात बदलना अक्सर।

सर्द रातों में एक सिहरन सी कौंध जाती है,
मेरी यादों से यूं आपका गुजरना अक्सर।

प्यार, एतबार से ही चलता है जहान सारा
अपनों से मगर फिर भी संभलना अक्सर।

सिखाएंगी हमको ये नित नए फलसफें,
यूं कदम कदम पे ठोकरें लगना अक्सर।

कभी अपने आप से मिलों तो ये कहना 'महेश'
नेकियों के रास्ते ही चलना अक्सर।

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किताबी ज्ञान संग व्यवहार भी अपनाना आज के बच्चों !
कभी जीत पर तो कभी हार पर भी मुस्कुराना आज के बच्चों !

अपनी मेहनत, अपने हौंसलौं पर रखकर भरोसा तुम,
अपने गांव, परिवार, देश को रोशन कर जाना आज के बच्चों !

प्यार, मुहब्बत, इश्क़ के इन सिने फितुरी दौर में तुम,
देश व मां-बाप के लिए अपने फर्ज़ भी निभाना आज के बच्चों !

छोटी छोटी बातों, झगड़ों में छिपी मुहब्बत को समझना,
है हर घर, हर परिवार की ये कहानी और फ़साना आज के बच्चों !

जल्दबाजी में या कि गुस्से में न लेना कोई फैसला कभी,
कि आपको ही या परिजनों को पड़े पछताना आज के बच्चों !

दौर मुश्किल है, कड़ी प्रतियोगिता का जमाना है,
इस कठिन सफ़र में भी तुम जीकर दिखाना आज के बच्चों !

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ज़ुल्म उतना ही कीजिए जितना खुद सह सको
मिला करती हर बार किसी से माफियां नहीं।
लिहाज रखना रिश्तों में बतियाने का भी जरा,
गलतियां माफ़ हो सकती है, चालाकियां नहीं।

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इंसानियत को जहां में लजाने वाले लोग।
लगाकर आग, फिर छुप जाने वाले लोग।

गिराने में तुमको तुम्हारे अपने ही होंगे,
रिश्तों में खास जाने पहचाने वाले लोग।

जो दे रहे हो, लौटकर भी आएगा वही।
दोस्त बनकर दुश्मनी निभाने वाले लोग।

न सच्चाई को समझा,न जाना न स्वीकारा
झूठ को हथियार अपना बनाने वाले लोग।

कर पाएंगे क्या वो आखिर हासिल इस तरह
इंसान को इंसान से भरमाने वाले लोग।

झूठी शान औ' अकड़ के इस जहां में है
रूठे दिल को फिर फिर मनाने वाले लोग।

नींद - चैन को तरसते रहेंगे वो 'बुनकर'
बेगुनाहों को अक्सर सताने वाले लोग।

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लगा सको तो बाग लगाओ,
आग लगाना मत सीखों।
बोल सको तो मीठा बोलो,
कटु बोलना मत सीखों।
जला सको तो दीप जलाओ,
हृदय जलाना मत सीखों।
कमा सको तो पुण्य कमाओं
पाप कमाना मत सीखों।

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स्पष्टवादी बनिए, शकुनि चाल न चलिए।
अपना अभिमान उम्रभर का पछतावा न हो जाए, संभलिए।
झूठी अकड़ में जीने से हासिल कुछ भी नहीं,
झुकना जिंदादिली और अकड़ना मुर्दापन है, याद रखिए।

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