तन्हाइयाॅं बेचैनियाॅं कमज़ोरियाॅं,
मजबूर हैं इस हिज़्र की मजबूरियाॅं,
मेरे सनम, जल्दी मिटेंगी दूरियाॅं।-
मेरी मुंतशिर सी हसरतों को थामा इस-क़दर,
राह-ए-ज़िन्दगी का बन गया है अब वो हमसफ़र।-
काली रात मुस्कुराती है ॲंधेरे में,
हर ग़म पलता है इसके घेरे में।
वक़्त हर शय का बदलता है,
ॲंधेरे को जाना ही है सवेरे में।-
जब भी देखा तूने तो देखी है मेरी आवारगी,
वैसे तेरा ही दर ढूॅंढा करती है मेरी आवारगी।-
सोहबत-ए-शब में मकान-ओ-ला-मकाँ है,
बस शिकस्त-ए-ख़्वाब, याद-ए-रफ़्तगाँ है।
ख़्वाब-ए-राहत पहले भी आते नहीं थे,
एहसास-ए-दिल मेरा आँसू-ज़बाँ है।
हुक़्मरानी है अँधेरों की सहर तक,
ज़ुल्मत-ए-ग़म इसलिए दामन-कशाँ है।
दर्द-मंदी है उजालों से मुझे अब,
हर शुआ में देखा, दर्द-ए-दिल निहाँ है।
गो सुकूत-ए-शब की तन्हाई है हर-सू,
यूँ चराग़-ए-दिल मेरा महव-ए-फ़ुग़ाँ है।-
चाहने लगा हो काफ़िर कोई ख़ुदा को जब,
उस तरह फ़िदा हूॅं तुझपे सनम दिल-ओ-जाॅं से।-
इक सफ़र में मुझे हम-रहाँ मिल गया,
इश्क में एक सनम मेहरबाँ मिल गया।
अब तलक शहर-ए-दिल में थी वीरानियाँ,
अब फिज़ाओं को मेरा निशाँ मिल गया।
तुम जो आए तो महकी मेरी ज़िन्दगी,
बाग़-ए-दिल को मेरे बाग़बाँ मिल गया।
तुम मुझे मन्नतों से मिले हो सनम,
तुमको पाया तो सारा जहाँ मिल गया।
मुझको जीना सिखाया है तुमने सनम,
हसरतों का मुझे कारवाँ मिल गया।
हमनवा हो मेरे तुम ही हो हम-नफ़स,
मेरे रब्बा मुझे जान-ए-जाँ मिल गया।
तुम मेरे हो, मेरे बन के रहना सनम,
ज़िन्दगी को मेरी पासबाँ मिल गया।-
दिल-ए-बेचैन को और बेताब कर देती हैं तेरी रानाईयाॅं,
हसीं सुर्ख लबों को चूम कर मिटा लेता हूॅं कुछ बेचैनियाॅं।-
ख़्वाहिशें दम तोड़ देती हैं अज़ीमत के बग़ैर,
कोशिशें क़ामिल नहीं होती हैं मेहनत के बग़ैर।
यूँ तो हर इंसान के हाथों में है उसका नसीब,
रंग ये लाता नहीं जोश-ओ-मशक़्क़त के बग़ैर।
क़ामयाबी तो रहा करती है सच्चाई के साथ,
राह-ए-सच्चाई नहीं मिलती बसीरत के बग़ैर।
दिल के गोशे में दिया उम्मीदों का जलता रहे,
बंदगी होती नहीं दिल से, इरादत के बग़ैर।
यूँ भी हिम्मतवालों का ही साथ देता है ख़ुदा,
फ़त्ह भी मिलती नहीं उसकी इनायत के बग़ैर।
कहते हैं तक़दीर से ज़्यादा कभी मिलता नहीं,
मंज़िलें मिलती नहीं, आबाद क़िस्मत के बग़ैर।-