साईं! आपकी कृपा पर हमें पूरा विश्वास है,
श्रद्धा-सबुरी रखने से मिलता ये एहसास है।
आपके नाम से दूर हो जाती सारी मुश्किलें,
आपकी भक्ति से मन होता नहीं निराश है।
हर हालात में दिखाते हैं आप ही तो रास्ता,
आपके चरणों की अब आजीवन आस है।
जीवन भर चलते हैं आप ही थाम के हाथ,
आपकी रहमत ही हमेशा हमारी तलाश है।
साईं-भक्ति में लीन हो कटे ये जीवन 'धुन',
साईं नाम ही उम्मीद-हौसले का प्रयास है।-
साईं! आपकी मर्ज़ी से वक़्त चलता-ठहरता है,
आपकी कृपा से हर मुश्किल लम्हा बदलता है।
आपके वचन देते हैं हमें जीवन जीने की शक्ति,
आपके चरणों में आकर यह जीवन सँवरता है।
आप ही बसते हैं बाबा दुनिया के कण-कण में,
आपकी भक्ति में मन, मंदिर जैसा महकता है।
साईं-साईं नाम जाप करने से मिलता है सुकून,
आपके नाम से हर एक ख़ुशी-गुल खिलता है।
साईं माँ की ममता-छाँव में गुज़रे ज़िंदगी 'धुन',
साईं कृपा में हर दुःख, सुख-पल में ढलता है।-
साईं! इत्र की ख़ुशबू जैसी आपकी मुस्कान,
श्रद्धा-सबुरी रखने से फैलती जाती पहचान।
आपके चरणों में आकर सुधरते जाते जनम,
आपकी कृपा ही है यहाँ हर प्राणी की जान।
आपके सुमिरन में बसते हैं सुख और शांति,
साईं नाम गुणगान से नहीं कोई भी अनजान।
स्वार्थ में भूल गए साईं वचन और इंसानियत,
आपसे ही है इंसान और ये दीवाली-रमज़ान।
साईं नाम में डूबके मोह-माया से दूर हो 'धुन',
साईं भक्ति ही रहे हमेशा-हमेशा का अरमान।-
साईं! इंसान समझता रद्दी आप देते उम्मीद,
आपके चरणों में रहने से मिलती हमें जीत।
आपके सुमिरन से मिलता है सुख व साहस,
श्रद्धा-सबुरी रखने से मिल जाती साईं-प्रीत।
आपके वचनों में पाते हम मुश्किलों का हल,
साईं!आपकी भक्ति ही अब ज़माने की रीत।
बद्दुआ देने से होता ना हमें कुछ भी हासिल,
ये दुआएँ ही हैं अब हम सबके मन की मीत।
साईं सुमिरन में बीते जीवन के ये पल 'धुन',
साईं कृपा के ही गाए अब यह धड़कन गीत।-
साईं! क्या अच्छा-बुरा सब आप ही जानते हैं,
हर भक्त के मन की बात, आप ही समझते हैं।
सब आपकी मर्ज़ी से होता जो भी घटता यहाँ,
हर बला, हर मुश्किल से बचाते, यह मानते हैं।
आपसे ज़्यादा सही-ग़लत की पहचान है नहीं,
आप दिखायेंगे राह हम यही मान के चलते हैं।
आज के बुरे हालात, कल अच्छे ज़रूर लगेंगे,
आपके वचन झूठे नहीं जीना उनसे सीखते हैं।
राम-श्याम शिव-शक्ति सब उन्हीं के रूप 'धुन',
साईं-चरणों में हम जीवन का उद्धार देखते हैं।-
मर्ज़ भी मैं हूँ और उसकी दवा भी मैं हूँ,
बद्दुआ भी मैं और अपनी दुआ भी मैं हूँ।
किसी के कहने से फर्क़ भी पड़ता नहीं,
घुटन भी मैं और आज़ाद हवा भी मैं हूँ।
मेरे सिवा कोई और क्यों सोचे मेरे लिए,
रिहाई भी मैं और अपनी सज़ा भी मैं हूँ।
मैंने ही थमाई है ज़माने के हाथों में डोर,
कुछ होने में मैं ही न और रज़ा भी मैं हूँ।
मैं चाहूँ तो बोलूँ, नहीं चाहूँ तो नहीं 'धुन',
अपना क़ुसूर भी मैं और क्षमा भी मैं हूँ।-