समेट रहा हूंँ दर्द को अपने
छुपा रहा हूंँ मर्ज़ को अपने
मांँग मांँग के ख़ुदा से सांँसें
चुका रहा हूंँ क़र्ज़ को अपने
कौन पता लिख चिट्ठी भेजूं
मिटा रहा हर हर्फ़ को अपने
कहीं ज़माना हंसे न तुम पर
निभा रहा हूंँ फ़र्ज़ को अपने
बीते दिन न बीते दर्द 'आनंद'
ला रहा ठिकाने दर्प को अपने-
D O B. 1july
मुझे पढ़ें फिर Fallow करें , और बदले मे अपेक्षा भी न... read more
मैं क़दम क़दम पे हारा इस दुनिया में
होगा कितना और ख़सारा.... इस दुनिया में
सबको दुःख तो आये आके चले गए
मैं न किस- किस का मारा.... इस दुनिया में
कहते प्यार पे हक सबका ही होता है
एक मैं न किसी का प्यारा.... इस दुनिया में
न माथे हाथ लकीर न तदबीर कोई है
सबका मुँह तकता बेचारा.... इस दुनिया में
रो रोकर तो लोग जी गये सदियों तक
'आनंद' हंँसना गुनाह हमारा..इस दुनिया में
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पिता आख़िर पिता हुआ
बे- शक न पढ़ा लिखा हुआ
बच्चे के भविष्य के लिए
दिन-रात ही रहता डटा हुआ
सभी गमों से लड़े अकेले
सर जब भी देखा तो उठा हुआ
कभी सपने टूटे अपने रूठे
पर उन्हें न देखा थका हुआ
मैं यही सीख बच्चों को दूंँगा
'आनंद' कि जब भी पिता हुआ-
कुछ भी नया नहीं है सिवा आदमी के
कुछ भी गुज़रा गया नहीं है सिवा आदमी के
वही हवा की ठंडक वही पानी की तासीर
यहांँ कुछ भी बदला नहीं है सिवा आदमी के
धरा की सहनशक्ति न आसमांँ की छांव
कहीं कुछ भी घटा नहीं है सिवा आदमी के
कर के पानी का दोहन भूमि का विनाश
और कोई ख़फ़ा नहीं है सिवा आदमी के
'आनंद' चल रहे वही सब ख़ुदा के निज़ाम
किसी को कोई गिला नहीं है सिवा आदमी के-
हर मुश्किल का हल होता है
आज नहीं तो कल होता है
कुछ भी न भाग्य समय से पहले
सब्र का मीठा फल होता है
हाथ पर हाथ रखे न कुछ हो
किया कर्म सफल होता है
समस्या से पहले समाधान है
जो न ढूंँढे निर्वल होता है
कर्मठों पे मुश्किलें आईं और गईं
नाकारों का भारी पल होता है
Teacher H.Anand
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हम समझे कि होशियार थे हम
वो साथ तो आंँखें चार थे हम
उन्हें दवा ही जाने जीवन भर की
ऐसी बीमारी से बिमार थे हम
इसे लत समझिए या नशा कोई
यूंँ समझो कि तलबगार थे हम
शायद उनका यह दांव आख़िरी हो
सोच तैयार हुए हरबार थे हम
'आनंद' न था उन्हें प्यार-ब्यार कुछ
ग़लतफ़हमियों के शिकार थे हम-
उनका दिया हर तोहफ़ा कुबूल कर लिया
विश्वास और क्या धोखा उसूल कर लिया
यूंँ कीमत न गिरने दी निज़ाम-ए-इश्क़ की
ख़ुद ही अपने आपको फ़िज़ूल कर लिया
दर्द-ए-दिल, आह, तड़प अब कचोटते नहीं
हमनें! नाम अब इन्हीं का फ़ूल कर लिया
मिल रहा है सुकूं अब इसी में आजकल
बाकी मिलते सलामों को धूल कर लिया
'आनंद' इबादतें उन की हिदायतों के साथ
उन्हें रसूल ख़ुद को मशगूल कर लिया या-
मैं प्रेम की उस हद से भी गुज़रा हूंँ
मेरे सपने में थे वो गैर की बाहों में
और इंतिहा यह भी देखिए 'आनंद'
ये जुर्म न अब तक गिना गुनाहों में-
आचरण और व्यवहार ही तो धन पक्का है
तन का क्या तन तो हांँडी सा कच्चा है
मानव तन मिला जो सभी प्राणियों श्रेष्ठ है
स्वांकलन कर सभी जीवों में अच्छा है
क्या लाया, क्या ले जायेगा अस्बाव बटोर
बाद में तेरा मेरा किसका क्या रक्खा है
सभी इन्द्रियांँ वश में कर,दे जीवन आयाम
थाम ले मन को मन तो चंचल बच्चा है
सब कुछ मिथ्या झूठ ही साबित आख़िर में
तेरा आचरण और व्यवहार ही सच्चा है-