झूठ की बुनियाद पर,
डाली फरेब की नींव..
शक की थी रेत उसपे,
रखी ज़िल्लतों की ईंट..
अश्कों की ज़मीं पर,
खड़ी दर्द की दीवारें..
बेग़ैरती में मगरूर था,
जिस छत का ईमान..
जहां न सच के झरोखे,
न थी इश्क़ की हवा..
उस रिश्ते के मकां को,
तो बिखरना ही था..
- Anubha "Aashna"
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शहर में ही पंछियो को पकड़ना समझदारी है,
गाँवों में दाने उछालने आज भी जारी है ।।-
उसका मुझसे दूर होना
सिर्फ एक बहाना था
उसे तो कभी मुझसे मोहब्बत थी ही नहीं
मैंने तो सच्चे दिल से उसे माँगा था
मगर उसका मुझे चाहना
सिर्फ एक दिखावा था-
मुझसे की है मोहब्बत बे-मतलब की ऐसा तू दावा मत कर
जो चाहे गर तो ना हो मेरा मेरा होने का तू दिखावा मत कर-
आज जो चारों तरफ लोग दिखावा कर रहे,
हमारे साथ होने का दावा कर रहे।
फिर क्यों बुरे वक्त में सिर्फ देखते है सब तमाशा,
और देते हैं झूठी दिलासा,
सच तो ये है जब रहता हैं कोई बेहद परेशान,
तो सब रहते हैं उसके दर्द से अनजान ।
दर्द बांटना तो दूर लोग आपसे बात तक करना पसंद नहीं करते,
सब इतने मसरूफ़ है ख़ुद में की आपके आंसू को भी नजरंदाज करते।
बहुत कम लोग हैं जिनको आपकी परवाह हैं,
बहुत कम लोग हैं जिन्हें सच में आपकी खुशियों की चाह हैं।
समय रहते पहचान लेना क्योंकि बहुत मुश्किल ये जिंदगी की राह हैं।
जब आपके वजह से किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट आएगी,
जिंदगी सही मायने में सफल कहलाएगी ।-
आजकल दिखावे का दौर चल रहा है
इसीलिए लोग खुश रहेने की बजाय
अपनी खुशी भी दिखाने मेे लगे है।-
बनावटी दुनिया में इंसानियत का तमाशा देखा,
आज हाथ उठे भी मदद को तो दिखावे के लिए !-
दिखावे के इस दौर में, दो चेहरे हैं इंसान के,
अंदर से हैं खोखले और दावे हैं ईमान के!!
गिराने की एक दूजे को कोशिशे बेहिसाब हैं
और मानते हैं ज्ञाता हैं, गीता और क़ुरान के!!
ढहते देख मकाँ दुसरे का,आज वो हैं हँस रहा,
उस बोसीदा मकाँ पर ,अपने महल खडे कर रहा!!
दूसरो पर छिंटाकशी और अपना दामन साफ हैं,
दूसरो की गलती महापाप, और अपने अपराध माफ हैं!!
तस्क़ीन-ए-अना की खातिर, आज इन्सानो मे बैर हैं,
जो साधे हित वो हैं अपना, और बाकी सब गैर हैं !!
-Sameri...✍
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मिरे इश्क़ को इक तमाशा न कर तू
मोहब्बत नहीं ये ख़ुलासा न कर तू
चुराया नहीं कुछ मोहब्बत में मैंने
इकट्ठा अभी फिर ज़माना न कर तू
चला जा बहुत दूर बेशक़ तू मुझसे
मोहब्बत है फिर ये दिखावा न कर तू
नहीं चाहिए अब कोई राज़ दिल में
ख़ुदा के लिए बे-सहारा न कर तू
दिलों की मोहब्बत न 'आरिफ़' ही समझा
समझ ही नहीं है इशारा न कर तू-