चाँद सा मुखौटा डाल, वो छत पर जो आती है
हाय, क्या अदाकारी से वो हमसे नज़रें चुराती है
चाँद भी दागों के चंगुल में फँसा नज़र आता है
मोहतरमा तो यहाँ चाँद को भी मात दे जाती है-
कैसा?
जब सिकायतें खुद से ही हो!
इल्ज़ाम दूसरो पर कैसा।
जवाब खुद को ही पता ना हो !
किसी और से सवाल कैसा।
कमियाँ खुद मे ही हो!
दूसरो पर दाग कैसा।
विश्वास खुद से ही हट जाय!
किसी और पर भरोसा कैसा।
-
उजला सा ज़िस्म..
इश्क़ के वो सुर्ख़ निशां,
सच से मिल दाग बन गए है !!-
कोई जन्मा है मेरे अन्दर
पर मुझसे जुदा हैं, वो
जो रूठा है मुझसे
या मेरी खुशियों से,
( अनुशीर्षक में पढें)-
चरित्र पे जब किसी शख्स के कोई सवाल उठता है,
वो इंसान कहता तो नही पर बिखर जाता।।-
दाग...अच्छे हैं 😊
काश!
'उसने'... कहा होता दाग अच्छे हैं,
'इसने'... कहा होता दाग अच्छे हैं,
'किसी ने'...कहा होता दाग अच्छे हैं,
काश! 'माँ' ने ही कहा होता... दाग अच्छे हैं
फिर सचमुच
शायद अच्छे होते... दाग
और...जब दाग अच्छे होते
ये दुनिया... कितनी हसीन होती
काश...!!
सचमुच
दाग.. अच्छे होते..!
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)
-
जो तुम औरत के जिस्म को नोचकर दाग लगाते हो ,
खून के आंसुओं से जिंदगी भर भी नहीं मिटते हैं वो।-
हमें तुम कुछ भी कहते गर तो हम चुपचाप सह लेते,
लगा कर दाग़ तुमने इश्क़ पर अच्छा नहीं किया ।।
होश नहीं थे तब हमारे जब हम थे तुमसे मिले,
लगा गले किया जुदा ये तुमने अच्छा नहीं किया ।।
तुम्हारी हर बात मानी मैंने काश एक तुम भी मान लेते,
यू तन्हा छोड़ कर मुझे तुमने अच्छा नहीं किया ।।
था प्यार इतना तुमसे कि कम पड़ जाते सात जन्म,
करके बेवफ़ाई इसी जनम में तुमने अच्छा नहीं किया।।
ये एक ही जिन्दगी तो थी ख़ुशी से जी रहे थे हम,
तबाह कर इश्क़ में मुझे तुमने अच्छा नहीं किया ।।
जो तुमपे किया भरोसा था उसे जीते जी मार दिया,
जो बिन गलती सज़ा दी मुझे वो तुमने अच्छा नहीं किया ।।-
'चांद रोशन रहे'
एकमात्र चाहत है
'चांदनी' की
बावजूद इसके
चांदनी को
कारण होना पड़ा
चांद के 'धब्बों' का-