महज उनके आनंद के क्षणों में
तुम स्वत: स्थापित हो गये थे ।
तुम्हें लाने के लिए
कोई विशेष प्रयत्न कभी नहीं किए गये हैं ।
तुम्हें जो बने बस बन गए
हां, जंगली सा कोई पौधा समझ कर तुम्हें
कांटा- छांटा भरपूर गया होगा ।
और
कभी - कभी उर्वरक के नाम पर
कुछ ताने और कुछ फ़ब्तियां भी कसी गयीं होंगी ।
मां - बाप हैं , होने का वो एहसान ,
जिससे तुम रोज दबे जा रहे हो ,
दर'असल ऐसा कोई एहसान
मुझे महसूस नहीं होता ।
मैंने देखा है
कीट , पतंगे , छिपकली सब ही
निषेचन कर प्रजनन करते हैं ।
यह बिल्कुल प्राकृतिक है प्रकृति में ।
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drsimple
(SaDaGiSe)
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कब से मैं... खुद की खोज में थी ,
आखिर तुम मुझे मेरे अंदर ही मिले ।
यात्रा तो जाने कब से... read more
आखिर तुम मुझे मेरे अंदर ही मिले ।
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Joined 17 March 2019
9 DEC 2024 AT 10:34
7 DEC 2024 AT 14:55
भटकती रही है वो , यहां से वहां तक, जाने कब से ही ,
जानकर ठहरी रही अंत तक , अबकि आखिरी जनम था ।
पूरी रचना अनुशीर्षक में....-
5 DEC 2024 AT 13:31
Where you can
meet your higher self ,
merge into them
And
can change your
outer reality
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9 NOV 2024 AT 14:35
सहजता, सरलता और सादेपन से ,
जीती और जीतती आयी वो स्त्री ,
जानकर हैरान है अब, कि उसकी हर
'जंग की जड़' ही उसकी सहजता है ।
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27 JUL 2024 AT 22:14
आदत लगाकर खुद की , उसने मुझे अकेला कर दिया ,
ढूंढती रही उसे मैं बेखबर ,उसने मुझे मेरा खुदा कर दिया ।
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15 JUL 2024 AT 18:32
काश, कि उसे कुछ समझ नहीं आता ,
नाराज़गी होती, खुद पर यूं तरस नहीं आता ।
काश, हुनर ना होता सचमुच उसमें कोई भी ,
आता-जाता शख़्स उसकी कमी नहीं गाता ।
आगे के विचार अनुशीर्षक में....
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