शाम
मिलतें हैं कुछ लोग शाम में,
खुश खामोश पास से गुज़र जातें है।
कुछ इतनें खुशमिज़ाज जो खयालों से जगाते है,
कुछ प्यारे इतनें, उनसे प्यार हो जाय ,
हर शाम मिलतें मिलतें इकरार हो जाय।
उनसे मिलनें की आदत सी हो जाती है,
हर शाम मिलतें ही,राहत सी मिल जाती हैं।
मिलतें मिलतें खाश बन जाते है,
यही तो शाम की बात है,
शाम मे भी राज़ बन जाते है ।
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