भ्रम कहां तक पाला जाए
अपमान कहां तक टाला जाए।
चल उठ राणा के वंशज अब
फिर से भाला ढाला जाए।
कुरु कारगिल प्रेरक पथ तेरे
क्यों बारूदी प्रेम संभाला जाए।
तू दहाड़ जरा हुंकार तो भर
दुष्टों को नरक में डाला जाए।
मूक, बधिर, दृष्टिहीन हो
बंदर ऐसा ना पाला जाए।
मेवाड़ मराठा झांसी जैसे
शोलों को रण में तारा जाए।
चल उठ राणा के वंशज अब
फिर से भाला ढाला जाए।
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