ख़ुसरो लिखते हैं
"छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके"
ख़ुसरो इस पंक्ति से क्या कहना चाहते हैं ?-
कह दो उनसे वो जो
तलवारें ताने बैठे हैं
'हिंदी' है 'तिलक' वाले भी
और जो 'टोपी' लगाये बैठे हैं;
इसी माटी से बने है दोनों
इसी माटी की खाते हैं
बरसती है जब बदरा माटी पे
दोनों ख़ुशी में गाते हैं;
जितना चोटी का है
उतना दाढ़ी का भी
हिन्दुतान तेरा है
हिदुस्तान मेरा भी;
माना वो अहल-ए-सियासत हैं
सियासत करने बैठे हैं
हमने बेचा नहीं हिन्दुतान
वो बोली लगाने क्यों बैठे हैं;
बंटने ना दो इस 'ज़ागीर' को
यह तेरी-मेरी नहीं 'हमारी' है
गलती सियासतदानों की नहीं
यह तेरी, मेरी और 'हमारी' है
- साकेत गर्ग-
रंगों का बटवारा भी क्या खूब हो गया,
लाल हिन्दुओं का तो हरा मुसलमानों का हो गया।
और तो और तिलक और टोपी हिन्दू-मुस्लिम की पहचान हो गई।
भाषा को भी कहा छोड़ा है किसी ने,
हिंदी हिंदुओं की तो उर्दू मुसलमान की हो गई।
ऊपर वाला भी कहा बच पाया इन ठेकेदारों से,
भगवान हिन्दू तो अल्लाह मुस्लिम की शान हो गई।
मन्दिर मस्जिद में ही दिखती है थोड़ी इंसानियत
वरना बाहर तो हैवानियत इंसान की पहचान हो गई।
सूखे मेवा हो या फल वो भी बटे ऐसे की
नारियल हिन्दू का तो खजुर मुसलमान के हो गए।
ये तो परिंदे बचे है जो बच गए बटने से
वरना मोर हिन्दू और कबूतर भी मुसलमान हो जाता
और अपनी मर्ज़ी से पंख फैलाये कहा उड़ पाता!!-
माँ सीता थोड़ी छोटी है, उन्हें सूझा न तिलक कैसे लगाए..
उतारकर खड़ाऊ, झुकाकर माथा, थोड़ा इठलाए, राम मुस्काए।❤️-
तस्वीर कुछ ऐसी है मेरे हिंदुस्तान की
तिलक चढाये हिन्दू, टोपी मुसलमान की
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टोपी और तिलक में आज फिर छिड़ा घमासान है
इंसानियत की बलि चढ़ाता इनका ज़िद्दी ईमान है-