ये आज फिजा खामोश है क्यों,
हर जरें को आखिर होश है क्यों?
या तुम ही किसी के हो न सके,
या कोई तुम्हारा हो न सका।'
'मौजें भी हमारी हो न सकीं,
तूफाँ भी हमारा हो न सका!"
उपन्यास (गुनाहों के देवता) से-
कभी-कभी ज़िंदगी इतनी शांत लगती है, जैसे सब कुछ रुक सा गया हो... पर अंदर एक हलचल सी होती है, जिसे ना कोई देख पाता है, ना समझ पाता है। हम हंसते हैं... क्योंकि रोने का वक़्त नहीं मिलता।
हम चलते हैं... क्योंकि रुकने से डर लगता है।
हर दिन एक बोझ की तरह गुजरता है, ना खुशी का एहसास, ना किसी अपने की आवाज़।
बस एक खालीपन है, जो हर रोज़ थोड़ा और बड़ा होता जा रहा है।
और हम... उसी खालीपन में खुद को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे कोई कहानी अधूरी रह गई हो...
और किरदार उसे बिना समझे निभा रहा हो।
महादेव ❣️-
क्या सहेजे ? क्या समेटे ? सब प्यारी चीज़े खो चुकी है, जिन-जिन बातों का डर था अब वो सारी बातें हो चुकी है ।।
महादेव ❣️-
सुना है कि आज मित्रता दिवस हैं
परन्तु
मेरी सबसे अजिज महिला मित्र ही
हम से खफा हैं.......
वैसे
Happy friendship day 🤞🤝💞-
कितनी सफाई दूं,
कितनी गवाही दूं,
जब गलत हूं ही मैं...
तो सही होने की कैसे दुहाई दूं...?
ठीक हैं जैसा समझना हैं
वैसा समझ लो चुप हूं मैं...
बेगुनाही की अब
और क्या सफाई दूं..!!❤️🩹
महादेव ❣️-
लोग रूठ जाते हैं मुझसे
और मुझे मनाना नहीं आता..
मैं चाहता हूँ क्या
मुझे जताना नहीं आता..
आंसुओं को पीना पुरानी आदत है
मुझे आंसू बहाना नहीं आता..
लोग कहते हैं मेरा दिल है
पत्थर का इसलिए इसको पिघलना नहीं आता..
अब क्या कहूं मैं
क्या आता है, क्या नहीं आता..!!
महादेव ❣️-
मैं चाहकर भी खुश नहीं रह पा रहा हूं,
पता नहीं ये जिंदगी मुझसे चाहतीं क्या है !!-
उतने बैचेन इतने बेकरार क्यूं हैं,
लोग जरूरत से ज्यादा होशियार क्यूं हैं,
सबको सबकी हर खबर चाहिए,
सब चलते फिरते अखबार क्यूं है...?❓-