ख़्वाबों की अंजुमन में
खो जाता है मन,
जब भी तुझे याद करके
मचल जाता है तन।
बनाता है..उजाड़ता है
मोहब्बत के आशियाने,
ख़ुद ही फूँक मार..उडाता है
तेरी ज़ुल्फ़ों के शामियाने।
छोड़ देता है..तेरे दर पर
अपनी यादों के कारिन्दे,
दुआ मांगने बैठ जाता है..
'उसके' दर पर..
जिसके हैं हम बन्दे।
एक ही शमा अब रोशन है
जिसमें तेरी आस की तपन है,
तू ही मेरा मौला..
तू ही तो मेरा अहल-ए-वतन है।
- साकेत गर्ग
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