ज़िन्दगी कोई इतना क्या ख़राब करता है
मत भूल, खुदा सबका हिसाब करता है
तू जो अंगुरों को गला देता है शराब में
देख ले, फिर वही काम शराब करता है-
मुझे मेरे लिए, रातों को जब तुम छोड़ जाओगे
मैं ख़्वाबों के सिरहाने में, तुम पर नज़्म लिखूँगा-
इस मधुयामिनी रात में
आओ खो दें होश हम
पी लें एक दूजे को यूँ
कि हो जाएँ मदहोश हम
तेरे गन्धवाही केश में, रात भर उलझा रहूँ
चंदन बदन के इंगितों, से लिपट सुलझा रहूँ
देह के शीतल तपन में, आज सध जाने दो
यौवन की तेरी आग में, आज भीग जाने दो
-'अमलतास' ©SHREEH
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खुद में तुझको सारा भरकर
खुद को तुझमें खाली कर दूँ
अपनी अधरों के चिर प्यास
तेरे सुर्ख़ होठों पर भर दूँ
ऊँगलियों से तेरे पीठ पर, छंद लिख जाऊँ
फिर साँसों के सुरों में, उस छंद को गाऊँ
रात भर यूँ ही गुनगुनाने, के मुझे बहाने दो
यौवन की तेरी आग में, आज भीग जाने दो-
ऐ खुदा! यूँ कर खुदाई, आँँखें उसकी कुरआन कर दे
बनूँ मैं पाँच वक्त का नमाज़ी, बातें उसकी अज़ान कर दे
अपने चाँद-ए-दीदार को , हर वक्त मैं सज़दा करूँ
हर शाम वक्त-ए-इफ्तारी, हर दिन मेरा रमज़ान कर दे-
दिल की बातें गिरवी रखकर
मन की बातों को समझाऊँ
या फिर दोनों ही बातों को, एक-एक करके दुहराऊँ
अब बोलो मैं क्या सुनाऊँ
ग़म की गहराई से निकलूँ
याकि उसमें डूब ही जाऊँ
या ग़म की कश्ती में बैठ, खुशियों के उस पार हो जाऊँ
अब बोलो मैं क्या सुनाऊँ
हालात पे अपने खुश हो जाऊँ
याकि मैं रोऊँ, चिल्लाऊँ
पास कोई गर आ जाए, तो गले लगाऊँ या ठुकराऊँ
अब बोलो मैं क्या सुनाऊँ-
क्या वहम है, ताउम्र तुझमें वही बात हो
इक दौर है अब, तू जाते-जाते चला गया-
ग़नीमत है, ग़नीमत होते हैं
लड़कों के भी मुसीबत होते हैं
बाज़ार देखकर पता चलता है
लोग कितने हक़ीक़त होते हैं-
शहर-शहर भटक रहे इश्क़ बदहवास कर
देखते हैं क्या मिलेगा इस शहर में खासकर-
इतनी ख़ामोशी थी कि ख़्वाब जल रहे थे
और लोग कहते हैं बंदा सिगरेट पीता है-