वो ज़िस्म का भुखा मोहब्बत के लिबास में मिला था
पहचानती कैसे उसे चेहरे पर चेहरा लगा कर मिला था
❤💕(💕Read full in Caption💕)💕❤
...............वो आखरी वार मुझे बिस्तर पर मिला था-
दिन की रौशनी में
हँसते मुस्कुराते चहरे
रात के आँचल में लिपटते ही
क्यूँ बन जाते हैं
दीवारों पर रेंगते
जिस्म पिपासु साए...
घात लगाए
दबोच लेने को आतुर
नोंचने पर आमादा
हर वह जिस्म
जिसमें हो हरारत
कच्चा, पक्का, जीवित, मृत...
इन निशाचरों की बदबू में
क्यों घुली मिली सी होती है
किसी अपने की महक
अक्सर...-
बेचती हूँ अपने जिस्म को महज रोटी के लिए।
सोती हूँ सैकड़ो के साथ घर चलाने के लिए।
न जाने क्यों ये दुनिया मुझे तवायफ़ बोलती है,
कभी कुछ भी तो नही किया हवस मिटाने के लिए।
ख़ुद की भूख मिटाने के लिए ज़माने को सुख दिया मैंने,
कभी नकाब नही पहना अपना सच छुपाने के लिए।
तुम क्या जानोगे मेरा दर्द, खून के आँसू रोती हूँ मैं भी,
कोई भी तो नही आता मुझे कभी चुप कराने के लिए।-
रूह से मुहब्बत करने वाले,बात जिस्म की नहीं करते,
गर हो चाहत जिस्म की,तो इसे 'इश्क' नहीं कहते..!!-
ख़्वाहिश ऐसी कि तेरी खामोशी में भी आह हो
मेरी आग बुझाने की तुझमें भी चाह हो
©कुँवर की क़लम से....✍️
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अर्ज किया है....
हो सके तो ना तोड़ना ये भरोसा..
जिस्म नही जो बाजारों में मिल जाएगा।।।-
ले गया जिस्म, लग गया दाग,
तोड़ गया चूड़ियां, मर गया हर नारी का ख्वाब !-
आंखों की बातें , दिल ही जाने |
जिस्म तो लगा रहता हैं हर वक़्त , रूह को मनाने |-