तुम्हारे सिवा कुछ और सोचने का मन नहीं करता
भूली बिसरी यादों को दोबारा खोजने का मन नहीं करता,
बहुत दूर निकल गई हो ये दिल जानता हैं
किसी और की बाहों में तुम्हें जाने से टोकने का मन नहीं करता|
धागे जो हमने बांधे थे अपनी आत्मा,पीपल के पेड़ से
मन्नतों को उनसे खोलने का मन नहीं करता,
बहुत याद आती हैं तुम्हारी मैं किससे कहूं
पर किसी और से ये बोलने का मन नहीं करता|
शायद तुम होगी आज़ाद अपनी मन पसंद दुनियां में
मुझे अपने गमों को तौलने का मन नहीं करता,
बहुत भीड़,खुश हैं आज कल मेरे शहर के लोग
उनको देख मुझे खौलने का मन नहीं करता|
कभी हो तो बताना मुझे अपने प्रेम की परिभाषा
नग्न ज़ख्मों को अंदर सोखने का मन नहीं करता,
यूं तो जल चुके हैं सारे स्वपन तुम्हें अपने साथ लिए
कि अब मौत को लम्बे समय तक रोकने का मन नहीं करता|-
" तुझे पता हैं ना कि तेरा मेरा मिलना उतना ही नामुमकिन हैं,
जितना जमीन-आसमान का "
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श्री कृष्ण मित्र,नारायण मेरे
अपने पूर्वज को श्री राम क्यूं लिखता हूं
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हम जानते हैं,तुम कुंवारी रहोगी
उम्र बीत जाएगी भले ही,तुम हमारी रहोगी
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क़दम-क़दम पर ज़िन्दगी में अपनों को खोते आया हूं
रातें इतनी गहरी रहीं अंधेरों में रोते आया हूं
लोग सुनाते थे अपने-अपने गांव की कहानियां
उनके खेत-खलिहान,बगीचों की छांव में सोते आया हूं
ईश्वर,कंकड़,धरती,अम्बर,तारों में
अपने कर्मों की मन्नत बोते आया हूं
बहती नदियां पूछती सज़ा मेरी
मुझे छूती दूषित हवाओं को गंगा में धोते आया हूं
बेजुबान से रहें हैं सारे दर्द,ज़ख़्म मेरे
कर्ज़ के बोझ रक्त से ढोते आया हूं
ना कह पाया अपने आख़िरी शब्द मां से
८४ लाख़ योनियों में मिलों दूर ब्रह्माण्ड से होते आया हूं-