सुबह की पहली किरण तुम्हारे गालों से हटाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना
नर्म गर्म उँगलियो से गुदगुदाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना ,
यूँ तो हर वक्त रहती हैं आँगन में खामोशी
कान पकड़ खुशियो कोे घर ले आऊँ,तो तुम सुन्दर कहना|
छत पर जाते तुम्हारें पैरों की पायलिया पे कोई गीत गाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना
खुले असमान में दीवानो से उड़ते परिन्दो कोे नचाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना ,
कोई हैं नहीं तुमसे सुन्दर इस संसार में
अप्साराओ से मिलाने तुम्हें स्वर्ग ले जाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना|
लुका-छुपी का खेल,पल में खोना,पल में तुम्हें पाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना
लाखों शैतानीयों के बाद भी अगर तुम्हें भाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना,
आवारगी सारी हदें पार करेंगी हमारी
बचते-बचाते बिन आवाज़,डब्बों से पेड़े-बर्फीयाँ निकाल खाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना|
चंन्द्रमा की शीतलता,तुम्हारी सादगी पर शर्माऊँ,तो तुम सुन्दर कहना
तुम्हारें सारे राज़ तुम्हें कानों में सुनाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना,
दुःख-दर्द,सारी पीड़ाएं ढूंढेगी अपना रास्ता तुम तक
बन ढाल,तुम्हारें ऊपर वृक्ष सा छाऊँ,तो तुम सुन्दर कहना |-
मैं रात-दिन उसको लिखते-लिखते शायर सहानी बनूँगा...
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तुम्हारे सिवा कुछ और सोचने का मन नहीं करता
भूली बिसरी यादों को दोबारा खोजने का मन नहीं करता,
बहुत दूर निकल गई हो ये दिल जानता हैं
किसी और की बाहों में तुम्हें जाने से टोकने का मन नहीं करता|
धागे जो हमने बांधे थे अपनी आत्मा,पीपल के पेड़ से
मन्नतों को उनसे खोलने का मन नहीं करता,
बहुत याद आती हैं तुम्हारी मैं किससे कहूं
पर किसी और से ये बोलने का मन नहीं करता|
शायद तुम होगी आज़ाद अपनी मन पसंद दुनियां में
मुझे अपने गमों को तौलने का मन नहीं करता,
बहुत भीड़,खुश हैं आज कल मेरे शहर के लोग
उनको देख मुझे खौलने का मन नहीं करता|
कभी हो तो बताना मुझे अपने प्रेम की परिभाषा
नग्न ज़ख्मों को अंदर सोखने का मन नहीं करता,
यूं तो जल चुके हैं सारे स्वपन तुम्हें अपने साथ लिए
कि अब मौत को लम्बे समय तक रोकने का मन नहीं करता|-
" तुझे पता हैं ना कि तेरा मेरा मिलना उतना ही नामुमकिन हैं,
जितना जमीन-आसमान का "
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श्री कृष्ण मित्र,नारायण मेरे
अपने पूर्वज को श्री राम क्यूं लिखता हूं
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हम जानते हैं,तुम कुंवारी रहोगी
उम्र बीत जाएगी भले ही,तुम हमारी रहोगी
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