Vandana Jangir   (वन्दना)
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घर लौटना सुकून है।✨️
आप डायरी खरीद सकते हैं।👇
Joined 6 February 2020


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22 SEP 2024 AT 0:23

दु:ख में छुपा
है एक रहस्य।
और वही दुःख,
सुख पाने के मार्ग खोजता है।
आत्मा को पवित्र...
केवल दु:ख करता है।
और दुःख में ही हम जान पाते हैं...
जीवन का रहस्य
और ईश्वर से संबंध।

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22 SEP 2024 AT 0:07

मैंने जीवन से
इससे अधिक कुछ नहीं चाहा
एक फ़ूलों से सजा घर,
प्रेम और शब्दों की दुनियाँ में मेरा अस्तित्व।

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21 SEP 2024 AT 23:56

दीवारों ने देखी हैं उदासी और सुनी है ख़ामोश चीख़
अब दरारें आ गयी हैं...दीवारें बोलना चाहती है।

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21 SEP 2024 AT 21:17

मियाँ मिट्ठू

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20 SEP 2024 AT 22:50

मानसिक रूप से कुछ चीज़ों को हम बहुत पहले खो चुके हैं...लेकिन उनका अनुभव बहुत समय बाद होता है। इन सबके हम इतने आदी हो चुके होते हैं कि एक समय के बाद हमें फ़र्क पड़ना बंद हो जाता है।

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20 SEP 2024 AT 22:35

कोई गलती होने पर माफ़ी मिलें
और अपराध होने पर सज़ा
पर किसी का दिल दुखाने पर
मुझे मिलें ईश्वर की क्षमा
और आँसुओं का पश्चाताप।

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15 SEP 2024 AT 12:13

मैं चाहूँगी जब तुम मिलो तब सबकुछ सामान्य हो, सहज हो। ना तुम जानो और ना मैं कि अगले पल हम हमारा भाग्य साथ लिख रहे हैं। और ये दुनियाँ उस दिन और सुन्दर होगी। हम दोनों एक-दूसरे के स्वाभिमान और दुःख और उदासी का उतना ही सम्मान करें जितना हमने धन और सुख का किया है। शायद हम दोनों एक-दूसरे की खुशियों का वायदा नहीं करते लेकिन ये तय है, मैं तुम्हारी वो दोस्त ज़रूर बनूँगी जिसे तुम अपने हृदय-मन की पीड़ा बता सको। और कह सको कि तुम ठीक नहीं हो। जहाँ तुम, तुम रह सको। तुम्हारा व्यक्तित्व और अस्तित्व रह सके।
मेरे दोस्त! एक वक्त के बाद शायद हम एक-दूसरे से ऊब जाएँ लेकिन मुझे और तुम्हें यह विश्वास रहेगा कि दोस्ती तोड़ी नहीं जाती और दोस्त छोड़े नहीं जाते।

मुलाक़ात होगी ।
इन्तज़ार रहेगा ...
/ तुम्हारी दोस्त
१५ सितम्बर २०२४

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3 SEP 2024 AT 19:29

मुझे अब ज़ल्दी ही थकान होने लगती है। मैं ऊबने लग जाती हूँ। शरीर साथ नहीं देता। मानों दिल और दिमाग आपस में लड़ रहे हैं। बहुत गहरी नींद आती है। ऐसे लगता है इतने साल बस खुली आँखों से सोयी थी। मुझे अच्छा लगने लगा था उदासी में रहना। उदासी भरे गाने सुनना। दीवारे खाने को दौड़ती थी। भरी भीड़ में ख़ुद को तन्हा पाती थी। और अब जी मितलाता है और ऐसे लगता है जैसे मेरी आत्मा-देह से झाँककर कोई कह रहा हो मुझमें अब इतनी ही सहनशक्ति है, इसके आगे तुम ख़ुद को खो दोगी। ख़ुद को तो कब का ही खो दिया था अब तो पाया है ख़ुद को फ़िर से इसी बैंचेनी में इसी ज़िन्दगी में दुनियाँ की नज़र से।

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28 JUL 2024 AT 22:02

दीदी आप एक दिन की छुट्टी क्यों नहीं लेती हमारे साथ खेलने के लिए ?
मैंने हँसते हुए कहा, घर के काम की भला कोई छुट्टी होती है।

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24 JUL 2024 AT 21:22

मैं कभी कह नहीं पायी किसी से
कि मुझे नफ़रत है ।
क्योंकि मैं यह समझती हूँ ...
प्रेम करना तुम्हारे वश में नहीं
लेकिन किसी से घृणा करना
तुम्हारे हाथों में है।

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