मैं चाहूँगी जब तुम मिलो तब सबकुछ सामान्य हो, सहज हो। ना तुम जानो और ना मैं कि अगले पल हम हमारा भाग्य साथ लिख रहे हैं। और ये दुनियाँ उस दिन और सुन्दर होगी। हम दोनों एक-दूसरे के स्वाभिमान और दुःख और उदासी का उतना ही सम्मान करें जितना हमने धन और सुख का किया है। शायद हम दोनों एक-दूसरे की खुशियों का वायदा नहीं करते लेकिन ये तय है, मैं तुम्हारी वो दोस्त ज़रूर बनूँगी जिसे तुम अपने हृदय-मन की पीड़ा बता सको। और कह सको कि तुम ठीक नहीं हो। जहाँ तुम, तुम रह सको। तुम्हारा व्यक्तित्व और अस्तित्व रह सके।
मेरे दोस्त! एक वक्त के बाद शायद हम एक-दूसरे से ऊब जाएँ लेकिन मुझे और तुम्हें यह विश्वास रहेगा कि दोस्ती तोड़ी नहीं जाती और दोस्त छोड़े नहीं जाते।
मुलाक़ात होगी ।
इन्तज़ार रहेगा ...
/ तुम्हारी दोस्त
१५ सितम्बर २०२४
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