हर वो उदास आँखे जो रोना भूल गयी।
प्रकृति ने नियम बदल दिया उदास लोगों के लिए,
सहरा में बारिश कर दी...।।-
क्या तुम कर सकते हो प्रतीक्षा?
नहीं... !
तुम्हें केवल रिक्त स्थान की पूर्ति करना आया है।-
दीवारें ढ़ह गयी सारी,ज़मीन धस गयी
जाले हट गये सारे रात, रात हो गयी।
फूलों पर भंवरे नहीं बैठते
तितलियाँ एक ही रंग की नज़र आती है सारी
पंखे को अब घंटों घूरना छोड़ दिया
खिड़की से किसी का इंतज़ार नहीं किया
हाथों से बर्तन नहीं छूटते
अकेले में ख़ुद से बाते करना ज़्यादा हो गया।
बहुत कुछ है जो बदल गया
बस आँखें वही है मेरी ।-
बार-बार जो औक़ात की बात करते हैं।
कोई बताओ उनको....,
हम अकेले में भी शहज़ादों की तरह रहते हैं।।-
हमारे हिस्से तो पत्थर दिल वाले ही आएंगे।
हम भी पत्थरों से आग जलाना सीख गये।।-
तेरे सिवाय और किस पर ऐतबार हो मुझको।
देर-सवेर ही सही तेरे दर पर लौटना पड़ा मुझको।।-
छोड़ता तो वो भी नहीं किसी को
पाई-पाई का हिसाब चुकता करता है।
ज़रूरत पड़ी अगर तो ...
पलकों से नमक भी उठवा सकता है।।-
जब अच्छा नहीं कर सकते तो क्यों करें किसी का बुरा
मैंने देखा हैं अच्छे लोगों की बद्दुआ ज़ल्दी लग जाती है।।-