है शिकायत उन्हें की उनकी पायल
ज़ोर से छन-छन छन-छन करती रहती है
नहीं ख़बर उन्हें, उनकी पायल तो केवल
मेरा हाल-ए-दिल उनसे कहती रहती है
हैं परेशां वो अपनी ज़ुल्फ़ों से भी कुछ
कि हर कभी बिखरी-बिखरी सी रहती हैं
नहीं ख़बर उन्हें, उनकी ज़ुल्फें तो केवल
उनमें फँसे मेरे दिल को आज़ाद करती रहती हैं
हैं ख़फ़ा कुछ अपनी नज़रों से भी वो
कि मुझे देखते ही हया से झुकती रहती हैं
नहीं ख़बर उन्हें, उनकी नज़र तो केवल
मुझे पागल होने से बचाने को पर्दा करती रहती हैं
है चिढ़ने लगी अब अपनी मुस्कान से भी वो
जो मेरे दीदार पर बेशर्म सी खिलती रहती है
नहीं ख़बर उन्हें, उनकी मुस्कान तो केवल
मुर्दे को ज़िन्दा होने का अहसास देती रहती है
है दिक्कत में कुछ अपनी जिल्द से भी वो
जो मेरे लम्स से चमकती रहती है
नहीं ख़बर उन्हें, उनकी जिल्द तो केवल
सियाह अंधेरे में महताब का काम करती रहती है
है दिक्कत में कुछ अपनी रूह से भी वो
जो अब हर घड़ी मेरा ही नाम जपती रहती है
नहीं ख़बर उन्हें, उनकी रूह तो केवल
उस जाप से मेरी साँसों की माला पिरोती रहती है
- साकेत गर्ग 'सागा'
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