Jaya Singh  
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Joined 27 May 2018


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Joined 27 May 2018
30 JUL AT 22:12



क्या खूब खेल खेलती है ज़िन्दगी
और हम उसके भुलावे में उलझे रहते हैं
सोचते है वो मौके दे रही है इसलिए
उसकी देनदारियों पर शुक्रिया कहते हैं
पर हर बार वो हमें अपनी शर्तों पर
चलाती है हम चलने को मजबूर होते हैं
कोई अनचाहा लम्हा जिसके बारे में
सोचना भी मुश्किल उसे जी कर सहते हैं
~ जया सिंह ~

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29 JUL AT 12:46


क्या समेटें और क्या सहेजें, बहुत कुछ प्यारा खो गया
जिन बातों के होने का डर था ऐसा बहुत कुछ हो गया
ज़िन्दगी कतरा - कतरा बिखर रही है हर घड़ी हल पल
अब क्या ही वापस आएगा वो, खुशियां लेकर जो गया
भरोसा तो साँसों का ही नहीं जिसके भरोसे ज़िन्दगी है
फ़िर हम लोगों से भरोसे की उम्मीद करते ही क्यों है...? 
तभी तो शायद अधूरा सा रहा हमारी जिंदगी का सफ़र
ग़लत रस्तों कभी गलत लोगों का संग किस्मत डुबो गया
सिर्फ़ बोलना ही तो बोलने का हिस्सा नहीं हुआ करता
अबोला भी तो उसी का एक अंश है.....जो देता दर्द है
एक बार कोई परायापन महसूस करा दे तो फिर लाख
चिकनी चुपड़ी बातें कर ले वो मन से पराया ही हो गया
मन में चलने वाले जानलेवा युद्ध के बीच... कोई हम में
ठहरे भी तो कैसे, हम कोई चक्रव्यूह नहीं खुले दरवाजे हैं
लोग आते रहे जाते रहे, रुकने की किसी को फ़ुर्सत नहीं
बस जो भी आया गया वो अवहेलना का दंश चुभो गया
    ~ जया सिंह ~

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26 JUL AT 23:56


जिंदगी अक्सर पूछती रहती है हमसे
कुछ और चाहिए तो बता....
हम ने कहा...जो था बस वही लौटा दे
न संघर्ष खत्म हो रहा न ही शिकायतें
जो खत्म हो रही वो उम्र है....
चाहत यही है कि इसे बेहतरी में उलटा दे
गलत रस्ते, ग़लत लोग, गलत निर्णय
जताते हैं क्या सही क्या नहीं है
बस दुरुस्तगी के वास्ते इन्हें भी पलटा दे
बेशक़ सब्र के बाद सब सम्भल जाता है
लेकिन सब्र करने और आ जाने तक
बिखरे हुए इंसान को करीने से सिमटा दे
~ जया सिंह ~

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26 JUL AT 23:43

खुद को गले लगाने की आदत
रखा करो कभी कभार
जरूरी नहीं की अपनापन
दूसरों से ही मिल जाये हरबार
कुछ जख्मों की उम्र नहीं होती 
ताउम्र चलते है खाक होने तक
फिर काहे उम्मीद लगाकर
उसके भरने का कर रहे इंतज़ार
हमारी बुराइयों को मशहूर
करने वालों जरा बाहर आओ
पर्दे के पीछे रहकर खुदाई 
बखानने की कोशिश है बेकार
लोगों के बदल जाने का दुख नहीं
हम तो अपने भरोसे पर शर्मिंदा हैं
बेवजह ही ख़ुद को समझते रहे
उनकी मेहरबानियों का कर्जदार
~ जया सिंह ~




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28 MAR AT 8:10

जरूरी तो नहीं है कि कोई बात ही चुभे
कभी कभी बात ना होना भी चुभती है
जब कुछ साझा न होके चुप्पी बन जाए
तब ये कही अनकही बहुत खटकती है
मन की मन में रहती है अबोला होकर
अंतस में कहीं कहने की पीड़ा रहती है
उम्मीद रहती है कि कुछ बात होगी पर
सूनी आंखों में अव्यक्तता की सख़्ती है
चुप्पियों का दंश बेहद ही गहरा होता है
वह चोट साझेदारी के मरहम से भरती है
क्यों प्रेम के उजाले अंधेरों में बदल गए हैं
क्यों आत्मीयता... उम्र की तरह घटती है
जरूरी तो नहीं है कि कोई बात ही चुभे
कभी कभी बात ना होना भी चुभती है
~ जया सिंह ~

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10 MAR AT 19:04

स्त्री की व्याख्या,दो पंक्तियों में
ये कैसे संभव है.... ? ?
•••••••••••••••••••••••
जननी हूँ और जीवन भी ,
अक्स हूँ उसका दर्पण भी
कभी भावों से विरक्त हूँ,
कभी प्रेमभरा आलम्बन भी
कभी विशालता की हद हूँ,
कभी लाजभरा संकुचन भी
कोमलता की मिसाल हूँ मैं,
कभी शक्ति का सम्बोधन भी
~ जया सिंह ~





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12 FEB AT 17:49

तेरे अहसास का हर पल शुक्रिया है
इर्दगिर्द तेरी बाहों का घेरा है
तूने बिन छुए मुझे आगोश में लिया है
मैं अकेली कहाँ..तू जो साथ है
हर पल तेरी मौजूदगी में जिया है
एक यही वजह जिंदगी है
वर्ना मुश्किलों ने किस
कदर तोड़ दिया है....
समक्ष हो ना हो पर साथ हो
ये खुदाई रहमत का दरिया है
~ जया सिंह ~

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26 JAN AT 11:17



सुनसान से रस्ते जाने कहाँ
तक जाते हैं ? ?
मेरी मंजिल का पता ये क्यों
नहीं बताते हैं
चल जो दिए हम उनकी राय पर
अकेले अकेले
कहीं किसी मोड़ पर उसको साथ
क्यों नहीं लाते हैं
~ जया सिंह ~

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24 JAN AT 18:51



मख़मली से घावों को भी
अक्सर मरहम पट्टी की दरकार होती है
जो ऊपर से अच्छे दिख रहे
उनमें भी अंदर दर्द की चीत्कार होती है
सौंदर्य हमेशा सुखी नहीं होता
अमूमन खूबसूरती ही शिकार होती है
~ जया सिंह ~

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14 JAN AT 11:21

तुमसे कुछ कहना है
मन में जो भी छुपा है
वो ज़ाहिर करके
तुमको अपना करना है
तुम्हारा थोड़ा वक्त और
थोड़ी चाहत से
मेरे दिल का हर खाली
कोना लबालब भरना है
~ जया सिंह ~


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