मृत्यु को टाला नहीं जा सकता ना ही जन्म को। बस बहस को टालना चाहिए। बातों को बिगड़ने से बचाना चाहिए।
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हम जिस वक्त जो कर रहे अगर उसके ध्यान में न रहे तो वो कोई और आकार ले लेगा।
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हाथ पंखा हल्का होता है तभी उसे झलने से हमें हवा मिलती है।
खुद को हल्का रखकर ही हम आराम से जी सकते हैं। जितना हो सके खुद को हल्का रखें, जीवन का मज़ा आप तभी ले सकते।-
मैं इस कमरे से उस कमरे की तरह
कभी-कभी
इस जन्म से उन अनेक जन्मों तक
घूमने लगती हूँ।
हर जन्म कुछ बिखरा छोड़ आई,
सब समेटते - समेटते अब थक गई हूँ।
इस बार सब अच्छे से समेटना है,
कुछ भी बिखेर कर नहीं जाऊँगी।
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दुनिया के तमाम भुलावों से
खुद को निकाल कर ले जाना है,
अपनी जिंदगीं के रंगों को
बदरंग होने से बचाना है।-
बहुत बार भूल जाते हो तुम खुद को
तब तो बहुत हल्का महसूस होता है।
फिर तुम खुद को ढ़ूढ़ते हो दूसरे में, तीसरे में
और फंसते चले जाते हो,
कहीं भी तुम जो नहीं मिलते
और फिर एक दिन फूट फूट कर रोते हो।
अब जब खुद को ही भूल चुके हो तो
किसी के घर किराए में रहते हो,
खुद का घर भूतों का डेरा हो जाता है
और एक दिन जब याद आता है अपना घर,
समय बीत जाता है,
अब फिर एक बार खुद के साथ ही बैठकर
खूब रोते हो और फिर खुद को ही पुचकारते हो।
तुमने पा लिया खुद को, अब तुम कभी नहीं भटकोगे।-
वो अच्छा तो बहुत है..
बस मैं दूध की जली हूँ,
मट्ठा भी फूंक कर पीती हूँ।-