QUOTES ON #जनमानस

#जनमानस quotes

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जहाँ असहमतियों का विस्तार होने लगे
एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगने लगे

इंसान स्वंय का विवेक और स्वंय को खो बैठे
भक्ति भाव के बावजूद संयम, मधुरता ना बरत सके

अपने भूत को भूल वर्तमान पर प्रहार करने लगे
स्वंय का हित साधते हुए अपने भविष्य में खोने लगे

स्त्री जाति का सम्मान और उपकार भूलने लगे
व्यवहारिक रूप में कटुता, तिरस्कार और घृणा से ग्रसित होने लगे

तो समझ लेना इंसान मार्ग से भटक चुका है
उसे स्वंय में स्वंय को और प्रभु में प्रेम को ढूंढने की आवश्यकता है!
❣️❣️❣️
प्रियतम





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19 OCT 2019 AT 8:05

एक रोज़ यह सत्य सभी को सिखलाया जायेगा।
सत्ता रथ आरुण कभी ना जनमानस को अपनाएगा।
चार दिवस चलेंगे यहां खेल चुनावी सबके।
जनता के सपनों को बीच नगर में बेचा जायेगा।
उठकर आयेंगे कुछ भूखे, अनपढ़, क्रांतिकारी।
रोज़गार के नाम पर जिनसे दंगा कराया जायेगा।
हर कोई बेरोज़गार जो होगा यूं घूमेगा,
मासूमों की जान लेकर अपनी रोटी कामाएगा।
क्रांति को बदनाम कर रहे हैं यह सब खादी वाले,
सारा शहर बहते लहू से लाल लाल हो जायेगा।

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29 JAN 2019 AT 11:17

देश की दशा किस दिशा में अग्रसर है।
यह देश की मनोदशा ही जाने !☺️☺️

जब जनमानस का विश्वास प्रशासन और
व्यवस्थित न्यायपालिका से उठते जा रहा है।

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7 JUN 2017 AT 19:19

....

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11 DEC 2022 AT 5:03

#12-12-2022 # गुड मार्निंग # काव्य कुसुम #
# काम # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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काम करने वालों का तो काम ख़ुद-बख़ुद बोलता है।

काम नहीं करने वाला अपने को प्रचार से तौलता है।

काम करने वाले जनमानस में अपना नाम लिखाते हैं-

काम नहीं करने वालों को देखकर खून खौलता है।
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14 SEP 2020 AT 9:08

प्रकृति भी श्रृंगार करती है
पर किसके लिए
पुराने टहनियों में नये पत्ते लेकर
हर वर्ष मीठा फल लेकर
हवा की कोप से सरसराहट लेकर
मानो कुछ दिल की बात कहती हो
बादलों का यूँ गरजना,
बिजलियों का यूँ चमकना
मिट्टी को सिंचित करने का ही मन नहीं होता
वो परस्पर संवेदना है एक दूसरे का साथ होने का
एक दूसरे के जीवन में उल्लास भरने का
मौज मस्ती करने का
हाँ प्रकृति भी श्रृंगार करती है
हम मानवों को सूचित करने को
कि मुझमें भी जीव है,
मैं भी इस सृष्टि का उद्धारक हूँ
मुझे खुद पर गर्व है
मैं ...प्रकृति खुद श्रृंगार करती हूँ।

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1 SEP 2019 AT 14:42

गलियों में इन दिनों, दोस्तो, गर्म हवाएं चलती हैं।

सपनों उम्मीदों की बातें जन-मानस को छलती हैं।

रोज़ तमाशे नये नये होते हैं मन बहलाने को,

तस्वीरें रंगीन निरंतर रहतीं रंग बदलती हैं।

(दिनेश दधीचि)

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6 DEC 2020 AT 12:26

जीवन भंवर में डूब के उभरा
कर्मों की पतवार बनाकर

आगे बढ़ता रहा जनमानस
छोटे छोटे लक्ष्य बनाकर

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31 JUL 2022 AT 17:23

रोने के लिए हम एकांत ढूँढते हैं,
हँसने के लिए अनेकांत ।
-प्रेमचंद

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13 APR 2019 AT 15:04

जनमानस के आदर्श बदल गये,
गुरु के भी अर्थ क्यों बदल गये,
जो संस्कृति भाषा की होती थी,
वो तो जड़ चेतन से ही कट गये।

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