धैर्य का अंत, आक्रोश का आरंभ ।
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मन यूं ही ना खोलना, हर किसी के आगे
राज कुछ भी न रहेगा, खुल गये जो इसके धागे
बात का बतंगड़ होगा, जिसको जैसा लागे
सोचना फिर बोलना
यह नियम बनाना, बिना नागे-
जीवन सरल हो जाता है, अन्यथा पल-पल गरल हो जाता है
हर बाधा लघु हो जाती है, जब दोस्त का संबल मिल जाता है
हर परेशानी भाग जाती है, दोस्त जब पीठ पे धौल जमाता है-
वो सुकून की सीमा के पार है
वो जुनून की दस्तक का द्वार है
वो वजूद का ढोया भार है
वो रसूख की नाजुक धार है-
इससे पहले कि मैं खबर बन जाऊं
कुछ डरा करो उस दिन से
जब, मैं तुम्हारे बिना जीना शुरू कर जाऊं-
अंतरिक्ष के ग्रह नक्षत्रों का ज्ञान हो गया
आवागमन के साधनों का संधान हो गया
उत्तरदायित्वों की सीमा का विधान हो गया
इंतजार, इंतजार ना रहा
मन मंथन का गूढ़ विज्ञान हो गया-
लगता है, सबक अभी पूरा मिला नहीं है
लौटते वक्त का, दुनिया में कोई नामोनिशान नहीं है
वक्त काबू करना, किसी के बूते की बात नहीं है
जो वक्त बचा है, उसे ही जी ले
बीते वक्त में, मत अपनी औकात देख
तू आने वाले वक्त की सौगात देख-
यह तुम्हारा काम नहीं है।
गड़े मुर्दे उखाड़ना,
समझदारों का काम नहीं है।
अपने आज को सुलझा कर रखो,
सफलता का मंत्र यही है,
पद प्रतिष्ठा का तंत्र यही है।।-