संभल से मुर्शिदाबाद तक।
अतिक्रमण का आकार
धन, धरा, शील, शरीर, प्राण तक ।
खोज की लागत
आगजनी, राहजनी, शोक, निर्वासन।
खोज का परिणाम
गौरवान्वित भाल, समृद्ध प्रशाल, जन-गण निहाल।-
इस अनवरत मानव धारा में
तुम कितने पानी में हो?
इस मेरा-तेरा, दल-बल-छल की कारा में
तुम कब से कैद में हो?
आगे निकलने की दौड़ और होड़ में
तुम कितने दमखम से हो?
प्रेम, प्रतीक्षा, कर्म, कर्तव्य की उहापोह में
तुम अपना क्या पा लेते हो?-
इसे अधूरा मत छोड़ देना।
हर पन्ना लाजवाब है
यूं ही पलट कर आगे मत बढ़ जाना।
ये तुम्हारे लिए है, तुम्हारी ही है
इसे किसी और से बदल मत लेना।
-
जानते हैं दुश्वारियों से जूझते सभी।
करते हैं अपने बूते की छोटी-बड़ी आजमाइश भी
रंग लाएगी उनकी कोशिश कभी ना कभी।-
की पहचान सरल है।
बातों से फूल बरसेंगे
आंखों में बनता खंजर है।
समक्ष हों तो अनुपम सौहार्द दिखेगा,
अलग होते ही जिह्वा उगलती गरल है।
इस दोस्ती की दुश्मनी ही पहचान है
इस दुश्मनी का दोस्ती ही समाधान है।-
वहम में वजन कुछ नहीं है।
अब समझ आता है
वादे पूरे ना हों तो वजूद कुछ नहीं है ।।-
में अपना अक्स कुछ अलग समझ आता है
मुझे समझने समझाने के लिए
ना जाने क्यों इतना वक्त दिया जाता है
मैं अपने सफर का खुद जिम्मेदार बनूं
उससे पहले
मेरा जमीन आसमान तय कर दिया जाता है-
ये कंपीटिशन और बेरोज़गारी
ये कीमतें और बाजार
ये कंटेंट क्रियेटर और बदजुबानी
ये कसमें-वादे और बेरुखी-
खचाखच भरी बस का सफर मजेदार होता है
ट्रेन टिकट कंफर्म ना हो तो TTE से उद्धार होता है
नल से पानी ना आए तो भाग्य जिम्मेदार होता है
इसमें परेशानी कैसी? 🤔
ये सब मुस्कुराने के अवसर हैं।🙂
अच्छे कॉलेज और ब्रांच में एडमिशन नहीं हुआ
नौकरी की परीक्षा पास की पर कोर्ट केस हो गया
सच्चा प्यार बेरोज़गारी की भेंट चढ़ गया
इसमें परेशानी कैसी? 🤔
ये सब नियति का लिखा है 📝-