Pramod Jain   (प्रमोद के प्रभाकर भारतीय)
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Joined 1 September 2018


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18 HOURS AGO

# 18-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # मोहब्बत # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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मोहब्बत की दरिया के सैलाब में इतना बहे जा रहे हो।

रूप और सौंदर्य की लाली को माशूका कहे जा रहे हो।

मोहब्बत की नदिया में डूबकर भी साहिल तक आना है-

साहिल तक आने के लिए तमाम ज़ुर्म सहे जा रहे हो।
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16 APR AT 23:19

# 17-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # नयन जल # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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मन का मैल धोने के लिए नयन जल ही काम आता है।

नयन जल के प्रभाव से अहंकार तिरोहित हो भाग जाता है।

मन को सत्यम् शिवम् सुंदरम् के अधीन कर आँखें खोलिये-

मन की आँख खुल जाने पर स्वर्ग-सा मंज़र नज़र आता है।
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15 APR AT 19:09

# 16-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # प्यार # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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लुटता रहा तुम्हारे प्यार में पर मुझे प्यार नहीं मिला।

घुटता रहा दिल प्यार में पर क्या यही प्यार का सिला।

क्यों हो इस कदर ख़फ़ा मुझसे यह बात तो बतला दो-

उठता रहा धुआँ पर कभी प्यार का फूल नहीं खिला।
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14 APR AT 19:51

# 15-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # दर्द # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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कितना दर्द छिपा है दिल में तुम अब कब मानोगे।

दर्द किसी का दिल में अपने तुम अब कब जानोगे।

अपना दर्द मिटाने को तो हर कोई जीता है दुनिया में -

दर्द पराया कम करने की मन में तुम अब कब ठानोगे।
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13 APR AT 19:46

# 14-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # मुकाम # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे
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राह में फूल बिछे हो या फिर शूल बस चलते जाना है।

खोने न पाये कभी हौसला बस आगे बढ़ते जाना है।

हौसलों से आगे बढ़ने वालों ने ही मुकाम बनाया है-

मुकाम अपना बना कर इतिहास नया गढ़ते जाना है।
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12 APR AT 20:17

# 13-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # आलोक # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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लोक के लिए आलोक की दुआ करना ही संवेदना है।

अपने सुख के लिए तृष्णा की उड़ान भरना ही वेदना है।

सद् विचारों का आलोक जनमानस को चैतन्य करता है-

अपने जीवन को आलोकित किये बिना मरना ही अंतर्वेदना है।
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11 APR AT 19:26

# 12-04-2024 #प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # मोहब्बत # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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भावनाओं के सागर में मोहब्बत की कश्ती चल रही है।

उन्माद की ज़द में अब मोहब्बत की बस्ती जल रही है।

मोहब्बत की बस्ती में आग लगा बैठे सियासत के सौदागर-

सियासत की ज़द में फ़िरक़ापरस्तों की हस्ती पल रही है।
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10 APR AT 15:58

# 11-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # प्यार # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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जुल्फों की छाँव में बैठकर दिन में रात हो गयी।

प्यार में खोकर किसी के बहुत बड़ी बात हो गयी।

किसी के प्यार में दीवानगी का जादू छल गया-

प्यार में इक़रारे-गुनाहे-इश्क में शह व मात हो गयी।
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9 APR AT 17:37

# 10-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # गरीब # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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गरीबों की फूस की झोंपड़ियों को औने-पौने दाम में हथियाने का काम हो रहा है।

फूस की झोंपडियों को कंकरीट के जंगल में तब्दील करने में कारपोरेट्स का नाम हो रहा है।

कारपोरेट्स अब बिल्डर बन कर शहर को छोड़ कर गाँवों की ओर रुख़ करने लगे हैं-

गाँव के गरीबों को आवास व अर्थ के लालच में गगनचुंबी इमारतों का काम हो रहा है।
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8 APR AT 18:05

# 09-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # अकेला # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे
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अपनी ही अदा के साथ सदा अकेला ही चलता चला गया।

मेरा अकेला चलना भी बहुत लोगों को खलता चला गया।

अपनी ही धुन में चलता रहा मैं मगर अपनी पहचान बना कर -

भीड़ का हिस्सा होनेके बजाय भीड़ से हट कर चलता चला गया।
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