Pramod Jain   (प्रमोद के प्रभाकर भारतीय)
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Joined 1 September 2018


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7 HOURS AGO

# 04-05-2025 # नव काव्य लेखन # मात्रिक छंद ( ) बत्तीस मात्रिक छंद #
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इक - दूजे को काट रहे हैं, इतनी नफ़रत बाँट रहे हैं।
किसके तलुए चाट रहे हैं, हिंदू - मु्स्लिम छाँट रहे है।।

छप्पन - छप्पन सारे करते, भूख, गरीबी से वो मरते।
नमो- नमो वो करते रहते, बात बात पर सारे हँसते।।

वो सोया भूत जगाते है, गुलशन में आग लगाते हैं।
ख़ून की नदियां बहाते हैं,धूर्त देशभक्त कहाते हैं।।
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7 HOURS AGO

# 04-05-2025 # कँटीले फूल #
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मैं कश्मीर नहीं जाऊँगा, तुम सभी देखते रहना।

मैं चौथी बार और आऊँगा, सब मोदी मोदी कहना।।
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7 HOURS AGO

# 04-05-2025 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # गप्पू # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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गप्पू करता लोकतंत्र का सम्मान तो सबकी आँखों का तारा होता।

लोकतंत्र होता पुष्पित-पल्लवित तो गप्पू संग जमाना सारा होता।

गणेश पूजन में तोड़ी मर्यादा सारी लोकतंत्र स्तब्ध रह गया -

लोकतंत्र होता गतिशील तो गप्पू नहीं किस्मत का मारा होता।
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YESTERDAY AT 11:24

# 03-05-2025 # कँटीले फूल #
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एक अकेला सब पर भारी।
एक अकेली उस पर भारी।।

अब आयेगी सबकी बारी।
सारे ही अब करो तैयारी।।
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YESTERDAY AT 11:10

# 03-05-2025 # नव काव्य लेखन # मात्रिक छंद ( ) राधेश्यामी छंद #
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चमचम करते सबके चेहरे, चमक ओट में ठगे लुटेरे।
सीधापन इतना दुखदायी,नज़र फिरी तो सभी ठगोरे।

अभिलाषा पूरी ना होती, पूरी होकर बढ़ती जाती।
अच्छे दिन की आशा में तो,ताकत सारी घटती जाती।

अच्छे काम करोगे तो ही,जय जयकार जगत में होगी।
काम बहुत ही बुरे करोगे,तब पहचान भगत में होगी।।
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YESTERDAY AT 10:39

# 03- 05 - 2025 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # सपना # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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तनहा रातों में सपने में आकर पायल - कंगन खनकाती -सी दिखती हो।

जीवनसाथी बनने को आतुर नयी नवेली दुल्हन सी शर्माती-सी दिखती हो।

मेरे सपने में आकर तनहा मन को घायल कर व्याकुल-सा कर जाती -

जीवनसाथी बनकर सपने में मेरे घर - आँगन में चहचहाती-सी दिखती हो।
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1 MAY AT 12:30

# 02-05-2025 # कँटीले फूल #
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जो रावण बन कर राज करेगा जनता उनको धिक्कारेगी।

जो राम राज्य की बात करेगा जनता उनको स्वीकारेगी।
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1 MAY AT 12:20

# 02-05-2025 # नव काव्य लेखन # मात्रिक छंद ( ) राधेश्यामी छंद #
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तन सुंदरता आधार बनी, मन सुंदरता छली गई।
दौलत की गरमाहट में, ख़ूबसूरती सब चली गई।।

रिश्तों का बाज़ार सजा है, अब यहाँ तमाशा होता है।
सब ठंडे मन से अब सोचो,सबकुछ पाकर यूँ रोता है।।

अपनी मस्ती में सब डूबे, सारे ही शोर मचाते हैं।
जब भी कोई संकट आता, अपना ही दर्द बताते हैं।।
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1 MAY AT 12:14

# 02-05-2025 #प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # सबक # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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बच्चों को बिना गलती के भी डाँट पड़ जाने पर विनय भाव नहीं खोना चाहिए।

बच्चों को अपने ऊपर डाँट पड़ने पर भी व्यथित होकर नहीं रोना चाहिए।

जीवन में माता, पिता व गुरु की डाँट ही बच्चों को सबक सिखाती है-

बच्चों को अपने ऊपर पड़ने वाली डाँट से आहत हो गुस्से में नहीं सोना चाहिए।
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30 APR AT 11:36

# कँटीले फूल # 01-05-2025 #
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पत्नी तकलीफ़ ही नहीं देती तकलीफ़ में साथ भी देती है।

सबकुछ सह कर भी पति-पत्नी के रिश्ते को सम्मान देती है।।
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