पहले जब
कुछ भी लिखती थी
कितने ख़्याल उतर आते थे
लफ़्ज़ों के भंडार
ज़ेहन में भर जाते थे।
जब से सीखा थोड़ा-थोड़ा
नाप-तोलना
और रेख़्ता तकतीअ करना
ऊला, सानी,
लफ़्ज़ों को ठिकाने लगाना।
अब अक्सर
इन रदीफ़, काफ़ियों के चक्कर में
लफ्ज़ ज़ेहन से गुम जाते हैं
ख़्याल आना ही भूल गए हैं।
और लिखना
ही छूट गया है।-
Leena Dariyal
(लीना 'सत्यम')
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मंजिले मिली फिर भी मुसाफिर थे मुसाफिर हैं😊😊♥️♥️
Joined 18 November 2017
6 HOURS AGO
14 JUN AT 13:24
उम्मीदों के जुगनू चमकने लगे हैं
उजाले से हरसू झलकने लगे हैं
तेरी याद का एक झोंका जो आया
सभी गुल चमन के महकने लगे हैं-
29 MAY AT 22:40
जो शाखें छांव देती हैं उन्हें तुम काट देते हो
मैं कैसे मान लूं तुम अब चमन में गुल खिलाओगे-
22 MAY AT 10:05
ये तो उनकी नज़र का कमाल है
किसमें क्या उन्हें नज़र आ जाए
ये दिल बड़ा ही बैचेन सा क्यों है
काश उनकी कोई ख़बर आ जाए-