भावनाओं का दरिया बहता है अंखियों से कभी ये अश्रु बन झरता है तो कभी मुस्कान बन खुशियों सा महकता है कभी क्रोध बन ये ज्वाला सा धधकता है तो कभी सुकून शांति बन कुछ गुनगुनाता है ये भावनाओं का दरिया अंखियों से ही बहुत कुछ कहता है
जहां में आ के हर मंज़र नहीं देखा तो क्या देखा गुलों पर ख़ार का ज़ेवर नहीं देखा तो क्या देखा है दुनिया दर्द-ए-सर गर तो इसे भी सह के देखेंगे हबीबों को लिए पत्थर नहीं देखा तो क्या देखा