ये ख़्वाब, ये ख़्वाहिशें, ये तमन्नाएं ऊंची ऊंची
आती है बोसे लिये जाती हैं।
मुफ़लिसी का आलम ये के बटुवे में दुबकी हुई कटी फटी हरी पत्ती मुँह बनाती है, आँखे दिखाती है।।
*बोसा-चुम्बन
13/02/25
-
Rituraj Bawiskar
(ऋतुराज.)
756 Followers · 312 Following
चंद लफ्जो में बयां करते हैं एहसास अपने,
हमे लफ्जो की माला पिरोना नहीं आता.
क्या करे आदत से म... read more
हमे लफ्जो की माला पिरोना नहीं आता.
क्या करे आदत से म... read more
Joined 9 September 2018
13 FEB AT 10:40
9 DEC 2024 AT 0:10
बताया था ना कर…फिर तूने वो खता कर ली।
महबूबा की इबादत और जमाने से अदावत कर ली।।-
29 NOV 2024 AT 23:55
वो
मिला भी
तो कुछ ऐसे
अहसान उतार रहा हो
कुछ पुरानी मुलाकातों के जैसे ।।।
-