न तो टली वबा न नफ़रती मरज़ गया,
हाले वतन को देख दिल लरज़-लरज़ गया,
न काम आया धर्म न नेता ने थामा हाथ,
श्मशान तक भी दोस्त कोई बेगरज़ गया,
एक-दूसरे के साथ खड़े हम ही रह गये,
उसको पड़ी थी वोट की वो ख़ुदग़रज़ गया,
जो रहनुमा बना रहा पिछड़ों का रात दिन,
पूछे कोई के अब कहाँ उसका फ़रज़ गया?
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