कम होते हैं जो प्रेम करते हैं
उससे भी कम निर्वहन कर पाते हैं प्रेम।
पढ़े-लिखे कविताएँ भर लिखते हैं प्रेम की
भोले और नासमझ ही समझ पाते हैं प्रेम
प्रेम को वर्ण-अक्षर-शब्द नहीं लगते
इसलिए तो बे जबान भी पढ़ पाते हैं प्रेम।
परचून की दुकान-सा हरेक मोड़ पर
मिल नहीं पाता है प्रेम,
इसलिए तो प्रेम 'प्रेम' कहलाता है
परचून की दुकान नहीं कहलाता है प्रेम। — % &-
और कहीं पर गीता है,
कहीं-कहीं क़ुरआन भी है,
छोटी - सी ... read more
तेरे माथे पे ये आँचल बहोत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल का एक परचम बना लेती तो अच्छा था।
-मजाज़
घरों के तो चिराग़ों को संभाला है बहोत तूने
तू एक लौ अपने दिल में भी जला लेती तो अच्छा था।-
अगर जाऊँगी तो किधर जाऊँगी मैं,
तुझे ढूँढती दर-ब-दर जाऊँगी मैं,
मेरे हमसफ़र तू मेरी ज़िन्दगी है,
जो खोया कभी तू तो मर जाऊँगी मैं।
तेरा साथ है जो समेटे हुए है,
बिछड़ जाऊँगी तो बिखर जाऊँगी मैं।
मेरी मौत तेरे लिए ज़िन्दगी है,
चल इस बात पर आज मर जाऊँगी मैं।
मुकम्मल नहीं ये कहानी तो क्या ग़म,
मुकम्मल मुहब्बत तो कर जाऊँगी मैं।
मिटा तो मैं दूँ तेरी हर याद दिल से,
मगर अपनी नज़रों से गिर जाऊँगी मैं।-
मेरे दिल की जो हालत है, ये सब तेरी बदौलत है
दफ़ा होती नहीं दिल से, मुझे बस ये शिकायत है।
मुहब्बत तुझसे नफ़रत है।
ख़ुदाया क्या मुसीबत है, के रातो-दिन क़यामत है
बहुत सोचा के जी लेंगे, मगर मरने की नौबत है।
मुहब्बत तुझसे नफ़रत है।
तेरी पहले की आदत है, हरेक दिल से अदावत है
जो दिल से इश्क़ करता है, उसी की जान आफ़त है।
मुहब्बत तुझसे नफ़रत है।
मैं जीती हूँ तो तोहमत है, जो मर जाऊँ तो शोहरत है
तलातुम-दर्द-रुसवाई, यही तेरी हक़ीक़त है।
मुहब्बत तुझसे नफ़रत है।-
हम लोग हैं भारत के!
गिरे भी हैं टूटे भी हैं
फिर संभले हैं
फिर आगे बढ़े हैं,
न संघर्ष निगल सका हमें
न इतिहास मिटा पाया है,
वक़्त की लहरों से
सदा टकराते
हम लोग हैं भारत के!-
मैं एक पत्थर मेरी ख़ता क्या
ख़ुदा बनाया क़ुसूर तेरा।
न मोजज़ा मैं न मैं करिश्मा
ये मोजज़ा है ज़रूर तेरा।
तू ही दुआ है तू ही असर है
तुझे चढ़ा है फ़ितूर तेरा।
मुझे सँवारा मुझे सजाया
मुझे मिटाया ग़ुरूर तेरा।
तू जीत जाए या हार जाए
या सीख जाए शऊर तेरा।-
ख़ुद की आँखों को तो इक ज़र्रा रुला देता है,
ग़ैर की आँख का आँसू भी मगर पानी है।-
जब मैं चुप थी
वे कहते थे तुम डरपोक हो,
जब मैं बेबाक हुई
वे कहने लगे तुम में शर्म नहीं है,
जब मैंने नज़र झुका ली
उन्होंने कहा तुम्हें दुनिया देखना चाहिए,
जब मैंने संसार के सच को समझा
उन्होंने कहा तुमको सच कहना चाहिए,
जब मैं सच कहती हूँ
वे कहते हैं ये झूठ है,
मैं फिर सच कह रही हूँ
वे फिर कहेंगे सब झूठ है।।।-
माँ चाहती थी मैं कुर्सी पर ही बैठूँ,
किन्तु छुटपन में मुझे तो केवल
लालसा थी उत्तंग विभिन्न कुर्सियाँ
बनाने की भर की...
छुटपन था,
तब कहाँ पता था कुर्सी का व्यवहार!
कुर्सियाँ अच्छी लगती थीं तब,
किन्तु अब समझती हूँ मैं कुर्सियों का स्वभाव...
इसलिए अब मुझे कुर्सियाँ पसंद नहीं!
चार पायों की ये कुर्सियाँ
व्यक्ति को बहुत नीचे गिरा देती हैं!-
चल पड़ा झूठ का बाज़ार, होशियार रहो,
बिक गए हैं कई अख़बार, होशियार रहो,
बात सुनकर कोई सच्ची - झूठी
ख़ून सिर पर न हो सवार, होशियार रहो,
लड़े थे तुम उजड़ गया था चमन
इससे पहले भी कई बार, होशियार रहो,
ख़ुद तो आपस में बुलबुलों न लड़ो
न रूठ जाए फिर बहार, होशियार रहो,
अब भी कहती हूँ के संभल जाओ
अब भी करती हूँ होशियार, होशियार रहो।-