Shashank Tripathi निहार   (शशांक त्रिपाठी)
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Joined 18 January 2020


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बदलेंगे मियां आप भी दिन-ओ-रात बदलेंगे
सज़दे में किसी के अपने ख्यालात बदलेंगे

भातिं हैं अभी आपको मेरी सारी ही बातें
रफ़्ता रफ़्ता ही सही, आप हर बात बदलेंगे

चाहा है जो टूट कर, अब चाह कर ना टूटना
दिलों के इस खेल में आपके जज़्बात बदलेंगे

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मैं रात का मुसाफ़िर, ख़ुद से ही लड़ा हूँ
बिन पैरों तले जमीं भी, मैं सीधा खड़ा हूं

है कोई नहीं इस जहाँ में, जो मेरी सुध ले
मैं इश्क का सताया, यूं बेसुध पड़ा हूँ

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ना जाने क्यों, वो लड़की मुझसे प्यार करती है
मेरी कहानियों, मेरी बातों पर ऐतबार करती है

ये बिखरा हुआ मेरा दिल अब कहीं लगता नहीं
और इक वो जो हर घड़ी मेरा इंतज़ार करती है

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ना जाने इश्क़ की ये कैसी शाम है
बड़ी जतन से लगा मुझपे इल्जाम है

मैंने कोशिशें कीं सब सही करने को
फ़िर भी मेरी हर कोशिश नाकाम है

ये तेरा चेहरा और उसपे ये ग़ुस्सा
इसपर ये दिल कुर्बान सरे-आम है

तुझे शायद इस बात की खबर नहीं
मेरी ये ज़िंदगी सिर्फ तेरे ही नाम है

रूह से रूह तक का है तेरा मेरा रिश्ता
तेरे नाम से गूँजता दिल का दर-ओ-बाम है

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Sometimes it's hard to explain
what's going on in your head...

When...

You don't even understand it
yourself..!!— % &

-



यादों की क़ैद से रिहाई चाहिए
मुझे अब फक़त तन्हाई चाहिए

अपने गर रुसवा हो चुके हैं मुझसे
जिंदगी से भी फिर रुसवाई चाहिए

जानता हूं, वहशी सा क्या ढूंढ रहा हूं
दरअसल मुझे मेरी परछाई चाहिए

किसे ख़बर कितनी चोटें खाए बैठा हूं
मुझे तो अपनी मौत पर बधाई चाहिए

अच्छा है कि बहुत बुरा हूं मैं "निहार"
इस जहां में किसको अच्छाई चाहिए

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सफ़र-ए-ज़िंदगी में क्या देखना बाकी है
पुराने ख्वाबों में कुछ नया देखना बाकी है

मोहब्बत में बेवफाई के किस्से खूब सुनें
किसी को इश्क़ में फना देखना बाकी है

गर किसी से जुदा होकर कोई मरता नहीं
तो यादों में खुद को जिंदा देखना बाकी है

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नासूर से मेरे जख्मों को सीने नहीं देता
मेरा साकी मुझे जाम भी पीने नहीं देता

मुमकिन है मैं उससे फिर कभी ना मिलूं
और बस यही मुझे ख्याल जीने नहीं देता

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इश्क के बारे में चाहे कुछ भी सोचे कोई
मगर मुझे इश्क में डूबने से ना रोके कोई

ज्यादा से ज्यादा टूट कर बिखर जाऊंगा
ऐसे बिखरूंगा कि फिर ना बिखरे कोई

उसे जीतने के तरकीब तो हजार थे मगर
उसे हराकर जीते भी तो कैसे जीते कोई

अब तो मेरे कूचे से वो गुजरती भी नहीं
दरीचे से गर देखे भी तो क्या देखे कोई

डरता हूं उसपर कुछ भी लिखने से "निहार"
मेरी लिखावट में ना उसको पढ़ ले कोई

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क्या कहा, हमें याद कर रहे हो..??
मिलने की फरियाद कर रहे हो..??

सब ठीक तो है तुम्हारी जिंदगी में
फिर क्यों इसे बर्बाद कर रहे हो..??

तुम्हारी ये उलझनें हैं किसकी जानिब
अच्छा है जो खुद से सवाल कर रहे हो..??

मेरी मानो, हकीकत नहीं इसमें कुछ भी
निहार तुम ख्वाबों की बात कर रहे हो..??

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