QUOTES ON #गृहिणी

#गृहिणी quotes

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26 MAR 2021 AT 9:03

सुबह-सवेरे सूरज की किरणों संग
ऑंख-मिचौली सी होती है,
अलसाती है जब सबकी सुबह
चूल्हे की भाप से मुॅंह धोती है।

श्रम के असंख्य स्वेद-कणों से
अपने घर का ऑंगन चमकाती है,
तिनका-तिनका जोड़ यत्न से
भविष्य के सुखद स्वपन पिरोती है।

घड़ी की सुइयों संग चलती जिंदगी
समय की पाबंद होती है,
विषम परिस्थितियों से वो डरकर
तनिक भी धैर्य ना खोती है।

कम हो चाहे चावल के दाने पर
पूरे परिवार का पेट वो भरती है,
बचे-खुचे पर निर्वाह करके
परिवार की तृप्ति में तृप्त होती है।
शेष कैप्शन में पढ़ें....... निशि..🍁🍁

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"ये औरतें"
न जाने किस रहगुजर की तलाश
आंँखों में नज़र आती है,
ये औरतें हर दौर में
खुबसूरत नज़र आती हैं,
दिल की आलमारी में
समेट कर रख लेती हैं
चंद ख्वाहिशें, अरमां और चाहतें.....
फिर भी अहसास की दौलत
सब पर लुटाती हैं,
ये औरतें हैं न जनाब
बहुत दिलदार नज़र आती हैं।
क्रमशः


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23 FEB 2022 AT 15:35

बिस्तर के सलवट में पाई मैंने मेरी एक ग़ज़ल
चुरा लिया लेकर अँगड़ाई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

अरुणोदय की बेला में जब धरा सजी किरणों से तब
चंचल पुरवाई से लाई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

गर्म मसाला, जीरा, धनिया, लौंग, इलायची, सौंफ़ ले
गर्म कढ़ाई में तड़काई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

थोड़े मोयन,अजवायन ले गूँथ लिया जब आटे को
बेल पराठे में सरकाई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

ख़त्म हुई कुछ आज मिठाई तो शीरी थे बचे हुए
उन शीरी से लेकर आई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

बूँद बनी टोटे से टपकी भावों की अठखेली तो
बर्तन धोते वक्त बनाई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

फ़ुर्सत में जब करने बैठी उघड़े रिश्तों की तुरपाई
तब धागे से करी सिलाई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

पूरे करने काम सभी जब क़दम बढ़े थे तेजी से
तब भी पायल से छनकाई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

महक उठी वो ग़ज़ल हमारी गजरे के सौरभ से ही
जब जूड़े में आज सजाई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

नारी हूँ मैं एक घरेलू, वक्त न मेरे पास मगर
कंगन, चूड़ी में खनकाई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

कब पढ़ती,कब कहतीं गज़लें,रहता मुझको ध्यान नहीं
लेकिन पल-पल चुनती आई मैंने मेरी एक ग़ज़ल //

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18 FEB 2021 AT 0:46

चंचल मन, हृदय में ठहराव समेटे, आंगन में हर रोज सहेजती है तुलसी मानो जिसकी मूर्तरूप वह स्वयं हो!

वो होती है फूलों की बगियां की खुशबू लिए, कांटों को खुद में छुपाए सबकी नजरों से दूर!

वो बंधी रहती है कर्तव्यों के डोर से, भूलकर अपनी सभी अठखेलियों को कहीं!

वो लिखती है प्रेम की परिभाषा अपने अंतर्मन के कलम से, नितदिन झलकती हो आंखों की चमक से यूंहीं!

वो करती है श्रृंगार सादगी के गहनों से, कि सुंदरता की कल्पना‌ उसके व्यक्तित्व में समाहित हो कोई!

वो चलती है जिम्मेदारियों का बोझ कांधे पर लिए, सिकन की रेखा का ना तनिक छाप लिए कभी!

हां, वो कहलाती है एक गृहिणी, उमंग, तरंग, गगन के सार लिए भ्रमण किए संपूर्ण पृथ्वी को अपने बसेरे के चार छोर से कहीं!!

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"बदचलन फूल" की आत्मकथा

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31 MAY 2019 AT 12:56

મહિલા માટે આવો સુંદર શબ્દ વિશ્વ ની એક પણ ભાષા પાસે નથી.
ગૃહિણી.
સાવ સરળ લાગતા આ શબ્દનો અર્થ છે.
આખું ગૃહ(ઘર) જેનું ઋણી છે. તે✍

एक महिला को गृहिणी बोला जाता हे।
दुनिया मे ये शब्द कोइ ओर भाषा मे नही मिलता।
सरल लगता ये शब्द का अर्थ हे
पुरा घर जिसका ऋणी हे वो गृहिणी✌

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14 JUL 2022 AT 21:47

(लेख अनुशीर्षक में)

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7 SEP 2019 AT 16:11

#sunona

आदमियों के बस की बात नहीं ये
हाउस वाइफ हूँ मज़ाक नहीं ये..!!

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25 OCT 2021 AT 19:19

#Housewife_गृहिणी

अनुशीर्षक में जरूर पढ़ें 🤗🙏🙏

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9 FEB 2021 AT 19:12

मैंने चुना

(अनुशीर्षक में पढ़िए)

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