Vibha   (Vibha ( anu raj ))
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Joined 8 September 2018


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Joined 8 September 2018
16 APR AT 20:56

दादाजी
रोज सुबह उठ जाते प्यारे दादाजी
प्रभु को शीश झुकाते प्यारे दादाजी

नव उत्साह जगाते प्यारे दादाजी 
योगा भी सिखलाते प्यारे दादाजी

पढ़कर आते हम सब जब विद्यालय से 
घर पर हमें पढ़ाते प्यारे दादाजी

किसी विषय में जब कोई मुश्किल आए 
कठिन प्रश्न सुलझाते प्यारे दादाजी 

गूढ़ छुपे हैं पुस्तक में कितने सारे
विशेषता बतलाते प्यारे दादाजी

भोजन के पश्चात बिठाकर हम सब को
प्रेरक कथा सुनाते प्यारे दादाजी

गलती हो तो डांट लगाते हैं लेकिन 
अगले पल दुलराते प्यारे दादाजी 

खेलें सँग-सँग छुपन-छुपाई या कैरम
पल-पल स्नेह लुटाते प्यारे दादाजी

उम्र भले पचपन की है पर बचपन सा
हँसते और हँसाते प्यारे दादाजी

मित्रों जैसे रहते साथ हमारे वह
मन को बहुत लुभाते प्यारे दादाजी

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16 APR AT 11:55

फिर से पड़ी सुनाई घंटी
बच्चों के मन भायी घंटी

बंद पड़ी थी हफ्तों से यह
किसने आज बजाई घंटी

नई किताबें नए पैरहन
नए दोस्त मिलवाई घंटी

टन-टन-टन-टन-टन-टन बजकर
बच्चों को हरषाई घंटी

बहुत हुई मस्ती छुट्टी में
अब गुरुकुल बुलवाई घंटी

निश्चित करो समय पढ़ने का
यह भी तो सिखलाई घंटी

चलो पुनः बच्चों विद्यालय
दस्तक देने आई घंटी

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1 APR AT 17:04

छोटी - छोटी बात बड़ी हो जाती है
ग़म की हो तो रात बड़ी हो जाती है
ऐसे पल में काम लें हिम्मत से वरना
ज़ख्मों की औक़ात बड़ी हो जाती है

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1 APR AT 17:04

छोटी - छोटी बात बड़ी हो जाती है
ग़म की हो तो रात बड़ी हो जाती है
ऐसे पल में हिम्मत से लें काम वगरना
ज़ख्मों की औक़ात बड़ी हो जाती है

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23 MAR AT 22:14

हुई परीक्षा ख़त्म हमारी
अब आई मस्ती की बारी

विद्यालय को करके टाटा
कर लें थोड़ा सैर- सपाटा

पार्क और चिड़ियाघर घूमें
मिलकर हम मस्ती में झूमें

खेलें कूदें मौज़ मनाएँ
धमा-चौकड़ी खूब मचाएँ

होमवर्क से कर के कुट्टी
चलो मनाएँ जमकर छुट्टी

बैट बॉल हाथों में ले लें
या फिर लूडो कैरम खेलें

खूब लगाएँ छक्के चौके
बीत न जाएँ अच्छे मौके

छुट्टी का यह मौसम आया
झोली भरकर खुशियाँ लाया
_Vibha

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4 MAR AT 12:29

नज़र में समाया सबेरे सबेरे
हमें कौन भाया सबेरे सबेरे

अभी नींद ख़्वाबों में लिपटी हुई थी
उसे क्यों जगाया सबेरे सबेरे

लिए आई बाद-ए-सबा खुशबू तेरी
तो दिल गुनगुनाया सबेरे सबेरे

पड़ी शबनमी बूँद जब डालियों पर
तो गुल मुस्कुराया सबेरे सबेरे

फिजाएँ तरन्नुम में क्यों गा रही हैं
इन्हें कौन भाया सबेरे सबेरे

मुक़द्दर कहूँ या मैं संयोग इसको
वो ख़्वाबों में आया सबेरे सबेरे

हँसी की खनक से हुआ सब्ज़ ये दिल
कोई खिलखिलाया सबेरे सबेरे

ख़ुदा ने नवाज़ा किसे इस हुनर से
जो नग़मे सुनाया सबेरे सबेरे

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2 MAR AT 22:36

जब से छुट्टी का समाचार मिला बच्चों को
खुश हैं जैसे कोई उपहार मिला बच्चों को

आया तो और भी रविवार मगर पढ़ना था
खेलने के लिए इस बार मिला बच्चों को

पहले तो दोस्तों में दिन ये गुज़र जाता था
आज परिवार का भी प्यार मिला बच्चों को

कोई अभ्यास कोई पाठ नहीं बाकी है
अपनी मनमर्जी का संसार मिला बच्चों को

खुश तो ऐसे हुए हैं छुट्टियाँ पाकर बच्चे
जैसे खोया हुआ उपहार मिला बच्चों को

इम्तिहाँ खत्म हुए तो मिले फ़ुर्सत के पल
मौका छुट्टी का फिर इक बार मिला बच्चों को

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1 MAR AT 19:16

शोख़ चंचल कमाल है बचपन
सादगी से निहाल है बचपन

उम्र ये गुनगुनाती है जैसे
राग है सुर है ताल है बचपन

नर्म नाज़ुक हसीन मनमौजी
खुश-नज़र खुश ख़याल है बचपन

दूर चिंता से फ़िक्र से ग़म से
मस्त है मालामाल है बचपन

कोई सानी नहीं कहीं इसका
सुर्ख़-रू है जमाल है बचपन

मोड़ कितने हैं ज़िंदगी में पर
बारहा बे-मिसाल है बचपन

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1 MAR AT 13:50

बता मुझको अपने ठिकाने ऐ बचपन
सुनाने हैं दिल के फ़साने ऐ बचपन

वो मिट्टी की खुशबू वो पीपल की छैंया
गए अब कहाँ वो ज़माने ऐ बचपन

वो मनमर्ज़ियों शोखियों मस्तियों के
गए दिन कहाँ वो सुहाने ऐ बचपन

वो निश्छल हँसी, दिल की मासूमियत
खुशी के वो तोहफ़े ख़ज़ाने ऐ बचपन

बहाने से ही पर कभी पास आ तू
खनक बालपन की सुनाने ऐ बचपन

मैं बैठी हूँ फिर आज सागर किनारे
वही रेत का घर बनाने ऐ बचपन

बहुत याद आते हैं लम्हे पुराने
ज़रा बैठ सँग गुनगुनाने ऐ बचपन

सिवा फ़िक्र के कुछ नहीं है जरा में
तू लौटा दे लम्हे पुराने ऐ बचपन

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26 FEB AT 22:09

गुज़रते वक्त के पन्ने पलटकर देखती हूँ मैं
तो ग़म के साथ ख़ुशियों के भी मंज़र देखती हूँ मैं

कभी जब तुम नहीं होते हो मेरे पास जान-ए-जां
अकेली बैठकर एकटक तब अंबर देखती हूँ मैं

छुपाया है तेरी यादों को सीने में अगरचे पर
तसव्वुर में भी यादों के बवंडर देखती हूँ मैं

कहाँ मासूम होते अब हैं पहले की तरह बच्चे
बदलते युग में बच्चों में भी तेवर देखती हूँ मैं

सजाऊँ क्या मैं तन को सोने चाँदी और हीरे से
मृदुल व्यवहार से सुंदर न ज़ेवर देखती हूँ मैं

मचल उठता है नादाँ दिल ख़यालों के बवंडर में
लब-ए-साहिल तक आता जब बवंडर देखती हूँ मैं

समझ पाई नहीं अब तक 'विभा' उस शख़्स को जिसके
जुबाँ पर राम है हाथो में खंज़र देखती हूँ मैं

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