Vibha   (Vibha ( anu raj ))
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Joined 8 September 2018


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Joined 8 September 2018
30 AUG AT 20:05

मुखौटे का सबब सब जानती हूँ
तेरी बातों का मतलब जानती हूँ

दिखाई दे रही हैं ख़ुश्क लेकिन
ये आँखें हैं लबालब जानती हूँ

करूँ कैसे भरोसा आँख मूँदे
तुम्हारे सारे मंसब जानती हूँ

मुहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं है
ख़ुदाया तेरा मज़हब जानती हूँ

किसी दिन झिलमिलाएँगे यक़ीनन
मेरी बरक़त के कौकब जानती हूँ

नहीं मालूम था पहले मुझे, अब
बदलना है कहाँ कब जानती हूँ

हुए हैं सुर्ख़ मेरा नाम सुनकर
तुम्हारे आरिज़-ओ-लब जानती हूँ

'विभा' ये ज़िंदगी भी है जमूरा
दिखाएगी ये करतब जानती हूँ

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20 AUG AT 12:29

गुजरा हुआ मौसम भी कभी लौट के आए 
चंचल हसीं कुछ शोख़  घड़ी लौट के आए 

रहने लगा है ग़मज़दा दिल बारहा मेरा
मुस्कान लबों पर ज़रा सी लौट के आए 

अल्हड़ थी जो मदमस्त थी बेफ़िक्र जहां से
ऐ काश! वो मासूम हँसी लौट के आए 

क़िस्मत में जियादा नहीं खुशियाँ हैं मेरे पर
खुशकिस्मती थोड़ी ही सही लौट के आए 

इतनी सी खुशी तो मिले यारब मेरे हक़ में 
फिर से नहीं ऑंखों में नमी लौट के आए 

देखे हैं बहुत ज़िंदगी में मुफ़लिसी के दिन
ईश्वर करें वो दिन न कभी लौट के आए

दिल को सुकून दे 'विभा' होठों को दे हँसी
ऐसा कोई लम्हा या सदी लौट के आए

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15 AUG AT 16:47

गिज़ा की फ़िक्र में सारी ढिठाई छोड़ देते हैं
ग़रीबी में कई बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं

मुहब्बत की कोई भाषा उन्हें मालूम कैसे हो
जो पढ़ते ग्रंथ पर अक्षर अढ़ाई छोड़ देते हैं

अगरचे वो पढ़ाते हैं वफ़ा का पाठ ही सबको
मगर बारी हो अपनी तो वफ़ाई छोड़ देते हैं

यकीं करते हैं जब भी हम किसी पर बंद ऑंखों से
वही रिश्ते जमीं पर दिल की काई छोड़ देते हैं

सुनाते हैं जो उल्फ़त की ग़ज़ल खुशियों के आलम में
वो दौर-ए-ग़म में क्यों नग़मा-सराई छोड़ देते हैं

मुक़द्दर का कोई कौकब कहाँ से झिलमिलाएगा
सियाह-ए-बख़्त से ही जब लड़ाई छोड़ देते हैं

कुछ ऐसे भी हैं दीवाने 'विभा' इस अंजुमन में जो
ग़ज़ल दिल से लगाते हैं रुबाई छोड़ देते हैं

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13 AUG AT 13:37

पाँव पीछे मत हटाना कोई बाधा देखकर
ख़ुद-ब-ख़ुद हट जाएँगी बाधाएँ जज़्बा देखकर

कैसे कह दूँ बालपन जिंदा नहीं मुझमें मेरा
अब भी मेरा मन मचलता है खिलौना देखकर

जा रही है गर्त में कुछ इस कदर इंसानियत
छोड़ती माँ-बाप को औलाद बूढ़ा देखकर

क्या हसीं था बालपन और बालपन की मस्तियाँ
याद फिर बचपन की आई आज झूला देखकर

दिल मे जिंदा हो ज़रा सी भी अगर इंसानियत
मत डराएँ तितलियों को भी अकेला देखकर

हो गया आभास उसके प्रेम के अस्तित्व का
वस्ल की ख़्वाहिश को लहरों पर मचलता देखकर

रंग लाई है सुख़न में तेरी मेहनत ऐ 'विभा'
दिल हुआ सरसब्ज़ ग़ज़लों का असासा देखकर

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1 AUG AT 9:37

गुड़िया बोली आज फिर, मेरे प्यारे डैड ।
नहीं चाहिए नोटबुक, ला दो आई पैड ।।
ला दो आई पैड, बहुत भारी है बस्ता ।
अब मत देखो दाम, मिले महँगा या सस्ता ।।
मेरी नन्हीं जान, दिला देता यह डिबिया ।
मगर तुम्हारी उम्र, अभी छोटी है गुड़िया ।।

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31 JUL AT 12:29

चिन्नी चिड़िया ने किया, चुनमुन को ई मेल ।
चलो घूमने मॉल में, लगा हुआ है सेल ।।
लगा हुआ है सेल, नहीं होगी बर्बादी ।
लेंगे महँगा ब्रांड, लगेगी क़ीमत आधी ।।
टॉफ़ी चोको चिप्स, खिलौने लेगी मिन्नी ।
लेकर डेबिट कार्ड, चहकती चल दी चिन्नी ।।

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30 JUL AT 19:01

गगन छोड़ सूरज चला, दूर क्षितिज के पार ।
चुपके से संध्या चली,   करने को अभिसार ।।

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24 JUL AT 15:30

दर्द के नग़मे यहाँ भी गुनगुनाने के लिए
आ गए हम रौनक-ए-महफ़िल बढ़ाने के लिए

मेरे हमदम हमसफ़र अब आ भी जाओ बाम पर 
आ गए हैं चाँद-तारे झिलमिलाने के लिए

कोई भी तदबीर या चाराग़री बतलाइए
जह्न-ओ-दिल से दाग ज़ख़्मों का मिटाने के लिए

कौन समझेगा हमारे ज़ब्त की अज़मत यहाँ
खाए कितने ज़ख़्म रिश्तों को निभाने के लिए

गर मुहबत से मुहब्बत हो गई है आपको
हर घड़ी तैयार रहना ज़ख़्म खाने के लिए

इक नज़र बस देख लेने से मुरस्सा हो गयीं
शुक्रिया दिल से तेरा ग़ज़लें सजाने के लिए

ज़ीस्त की जद्दोजहद से रोज लड़ती है 'विभा'
रोटियाँ दो वक्त की घर रोज लाने के लिए

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17 JUL AT 20:31

नज़र मिलाकर मुझे लुभाए
बिन बोले सब कुछ कह जाए
कहे कहो मत ए जी, ओ जी 🤗
ऐ सखि ! साजन ? नहीं, इमोजी !!

बात-बात में करे इशारा
कहे इशारे में वह सारा
बेहद बुरी फंसी मैं लो जी 😝
ऐ सखि ! साजन ? नहीं इमोजी !!

कभी हँसाए कभी रुलाए
कभी हवा में प्यार उड़ाए
पुनः सताने आया लो जी 🤩
ऐ सखि ! साजन ? नहीं इमोजी !!

तरह तरह से मुँह बनाए
बात इशारों में बतलाए
कहे भाव तुम खुद समझो जी 🤐
ऐ सखि ! साजन ? नहीं इमोजी !!

वो चाहे तो मुझे रिझाए
वरना मुझको आँख दिखाए
उसकी तो मत बात करो जी 😏
ऐ सखि ! साजन ? नहीं इमोजी !!
_Vibha

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16 JUL AT 10:02

लिखा धरा ने आज फिर, प्रिय बादल को पत्र ।
खुशियों की वर्षा करे, यत्र-तत्र-सर्वत्र ।।

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