कभी अपना दिल लिखना चाहूं तो
यही लिखूंगी कि yq वो जगह हुआ करती थी जहां हम सब मिला करते थे,
जैसे गांव की चौपाल होती है न,
या कालेज कैंटीन जहां चाय की चुस्कियों संग
हम सब गप्पे लड़ाते थे।
एक दूसरे से को पढ़ने,बात करने, मज़ाक करने में दिल खुश हो जाता था,
इक सुकून सा तारी हो जाता था,
एक अलग सी , प्यारी सी दुनियां बसा ली थी हमने।
आज के जमाने में जो खुशियां ढूंढे से नहीं मिलती वो सहज ही प्राप्य थी।
यहां पर कोई प्रतिस्पर्धा नहीं, कोई भेदभाव नहीं सभी एक-दूसरे का सम्मान करते थे और सहज हास्य की धारा बहती थी।
पता नहीं हमारी खुशियों को किसकी नज़र लगी और एक एक करके सभी ने yq से दूरी बना ली।
अब तो yq वीरान है, सभी अपनी उलझनों में उलझे हैं।
वो समय सच में बहुत याद आता है।
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