अनीता विजयवर्गीय   (अनीता....अनु)
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Joined 18 February 2019


Joined 18 February 2019

प्रेम संवाद चाहता है
और द्वेष विवाद,
है न !

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जिसकी खनक अंतर्मन से....
अंतर्मन तक सुनाई देती है!
किसी के आश्वासन पर निर्भर नहीं,
ना ही कोई इसे उपहार में दे सकता है,
यह तो है अन्तर निहित अनहद !

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लाडो 🤗❤️.....

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देखा तो नहीं उसे....
एक अहसास,एक खुश्बू है वो...
जब भी दिल महक उठा...
आस पास ही उसका आंचल लहराया है!
उसकी स्मित मुस्कान ने सबका दिल चुराया है!
वो है सहज,सरल और भोली...
पढ़ लेती है मन की बोली!
बिंदिया, झुमके और गजरे हैं
उसके दिल की सरगम ...
उसका यह सादा सा रूप मेरे
दिल को भाया है!
Happy Birthday dear Prasanna 🤗🥰🌹💐🎁💮🌸🌷🪷🌺🥀🫶💕❤️
Stay blessed

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दिल की जेब में तुम्हारा ख़्याल...
किसी फूल सा महकता है!

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इक गुलाबी सी सर्द शाम है ,
हाथ में एक कप चाय है,
और मैं हूँ।
खिड़कियों से धूप छनकर आ रही है,
bollywood unwind पर
मेरे favourite songs बज रहे हैं।
और मैं हूँ....

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कभी अपना दिल लिखना चाहूं तो
यही लिखूंगी कि yq वो जगह हुआ करती थी जहां हम सब मिला करते थे,
जैसे गांव की चौपाल होती है न,
या कालेज कैंटीन जहां चाय की चुस्कियों संग
हम सब गप्पे लड़ाते थे।
एक दूसरे से को पढ़ने,बात करने, मज़ाक करने में दिल खुश हो जाता था,
इक सुकून सा तारी हो जाता था,
एक अलग सी , प्यारी सी दुनियां बसा ली थी हमने।
आज के जमाने में जो खुशियां ढूंढे से नहीं मिलती वो सहज ही प्राप्य थी।
यहां पर कोई प्रतिस्पर्धा नहीं, कोई भेदभाव नहीं सभी एक-दूसरे का सम्मान करते थे और सहज हास्य की धारा बहती थी।
पता नहीं हमारी खुशियों को किसकी नज़र लगी और एक एक करके सभी ने yq से दूरी बना ली।
अब तो yq वीरान है, सभी अपनी उलझनों में उलझे हैं।
वो समय सच में बहुत याद आता है।

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ये सच है कि
अपनी दुनियां में खुश नहीं कोई...
हर कोई यहां परेशां है..
न जाने किस उलझन में अटकी सबकी जान है!



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हुआ मन आंगन चंदन है
प्राण-प्रतिष्ठा हो हृदय में मर्यादा की
राम चरित्र को शत् शत् वंदन है ।

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Yq दीदी ,
आप आजकल "writting Gyan"
क्यों नहीं लिखती ??
कृपया लिखें!

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