अनीता विजयवर्गीय   (अनीता....अनु)
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Joined 18 February 2019


Joined 18 February 2019

दिल की जेब में तुम्हारा ख़्याल...
किसी फूल सा महकता है!

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इक गुलाबी सी सर्द शाम है ,
हाथ में एक कप चाय है,
और मैं हूँ।
खिड़कियों से धूप छनकर आ रही है,
bollywood unwind पर
मेरे favourite songs बज रहे हैं।
और मैं हूँ....

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कभी अपना दिल लिखना चाहूं तो
यही लिखूंगी कि yq वो जगह हुआ करती थी जहां हम सब मिला करते थे,
जैसे गांव की चौपाल होती है न,
या कालेज कैंटीन जहां चाय की चुस्कियों संग
हम सब गप्पे लड़ाते थे।
एक दूसरे से को पढ़ने,बात करने, मज़ाक करने में दिल खुश हो जाता था,
इक सुकून सा तारी हो जाता था,
एक अलग सी , प्यारी सी दुनियां बसा ली थी हमने।
आज के जमाने में जो खुशियां ढूंढे से नहीं मिलती वो सहज ही प्राप्य थी।
यहां पर कोई प्रतिस्पर्धा नहीं, कोई भेदभाव नहीं सभी एक-दूसरे का सम्मान करते थे और सहज हास्य की धारा बहती थी।
पता नहीं हमारी खुशियों को किसकी नज़र लगी और एक एक करके सभी ने yq से दूरी बना ली।
अब तो yq वीरान है, सभी अपनी उलझनों में उलझे हैं।
वो समय सच में बहुत याद आता है।

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ये सच है कि
अपनी दुनियां में खुश नहीं कोई...
हर कोई यहां परेशां है..
न जाने किस उलझन में अटकी सबकी जान है!



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हुआ मन आंगन चंदन है
प्राण-प्रतिष्ठा हो हृदय में मर्यादा की
राम चरित्र को शत् शत् वंदन है ।

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Yq दीदी ,
आप आजकल "writting Gyan"
क्यों नहीं लिखती ??
कृपया लिखें!

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काश!
मन भी हल्का हो पाता!

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अपनी ही तन्हाई में
खो जाते हैं लम्हे..
व़क्त की गहरी खाई में
खो जाते हैं झरने...
रिश्तों की शुष्क तलाई में
खो जाता है बचपन...
काले अक्षरों की पढ़ाई में
खो जाता है जीवन..
ऋणों की भरपाई में!

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कितना कुछ बिखर गया है यहां-वहां...
वो पहले सी निश्छल हंसी...
वो उन्मुक्तता...
वो पंछियों सा चहचहाना!
सब खो गया है...
न जाने इस व़क्त को क्या हो गया है...
अदब के मरीज़ हैं सब यहां...
कोई दिल की बात कहता नहीं...
सारा मोहल्ला सभ्य हो गया है !

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मैंने चाय छोड़ दी है!!
यह बात कहने में मुझे बड़ा गर्व सा महसूस होता है आजकल..
किंतु चाय की महक आज़ भी मेरी आत्मा में बसी है।चाय मेरी आत्मा का भोजन है।चाय की तलब को conquer करते करते मैं हर‌ एक दिन को पीछे धकेलता हूँऔर चाहता हूं कि ये शाम ना बीते और एक कप चाय मिल जाए। बगैर चाय के शाम भी ढल ही जाती है और फिर से इंतजार शुरू होता है चाय की महक का जो सुबह के प्यालों में मुझे परोसी जायेगी।चाय न पीने का यह व्रत मुझे कठोर तो बना रहा है किंतु मेरा हृदय हमेशा से ही चाय की प्यालियों में डूबा रहा है।"चाय" प्रेम का एक सरल सा रूपांतरण है।जिसे भी प्रेम को सहेजना हो वो चाय पी ले बस।
किंतु तुम्हें क्या? तुम तो ब्लैक काफी पीती हो,वो भी कभी-कभी, तुम नहीं समझोगी!
ना ही चाय को और ना ही तुम्हारे प्रति मेरे अगाध प्रेम को !

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