दर्द सीने में दबाया रोज़ हमने
ग़म किया ऐसे सवाया रोज़ हमने
बुझ गई किंदील सारी ख़्व़ाहिशों की
अश्क़ आँखों से बहाया रोज़ हमने
ढ़ूँढ़े से मिलता नहीं नामो निशाँ भी
इस कदर खुद को मिटाया रोज़ हमने-
Thanx to all followers and reader
तन्हाई के आलम का 'प्रिया' हाल न पूछो
साया ख़ुदी का देखा तो डर जाएँगे इक दिन-
तन से पहले मन रँगो तो होली है
बात दिल की जो कहो तो होली है
लाल पीला हो गुलाबी या हरा
रंग अपने तुम रँगो तो होली है
दूर कर शिकवा गिला हो गुफ़्तगू
जब गले मेरे लगो तो होली है
सुर्ख़ रंगत इश्क़ की ऐसी चढ़े
नूर सा तन पर सजो तो होली है
ज़िन्दगी काँटों भरा जंगल कोई
संग साथी बन चलो तो होली है
बस तुम्हारी खुशबू से महकूँ सदा
धड़कनों में तुम घुलो तो होली है
बन के राधा मैं फिरूँ गोकुल में जब
तुम भी मोहन बन मिलो तो होली है-
न जाने क्यूँ लोग,
रुदन को निर्बलता
और मौन को कायरता ,
समझने की भूल कर बैठते हैं....
बल्कि
जब कभी वेदना,
अपनी पराकाष्ठा पर होती है ...
या तो वो आँखों से,
अश्रुओं के रूप में
द्रवित होकर बाहर निकलती है ...
या फिर ओढ़ लेती है
वह मौन का आवरण.....
वास्तव में मौन ..
स्वयं से किया गया संवाद है...
मुझे हमेशा लगता है
मौन हो या फिर रुदन ,
पुनःअग्रसर कर देता है..
सकारात्मक जीवन यात्रा की ओर ...!!!!!— % &-
रक्ख दिया जो आईने के सामने आईना
क्या आईने सा अक्स दिखाएगा आईना— % &-
ज़िक्र उसका ही रहा इश्क़ के अफ़्सानों में
नाम आया न कभी पर मेरे उन्वानों में
था बनाया बड़ी मेहनत से जो घर वालिद ने
आज शामिल हुआ तक़सीम के पैमानों में
ज़ाम से कम नहीं हैं आँखें भी उनकी साक़ी,
कोई कमबख़्त ही आए तिरे मयख़ानों में
इस कदर इश्क़ है मांझी को समंदर से अब
वस्ल की चाहतें खीचें उसे तूफ़ानों में
अब किसी बात का शिकवा न शिकायत है 'प्रिया'
अश्क़ सब ज़ब्त हुए आँखों के ज़िंदानो में — % &-
तुमको देखूँ या फिर तुमसे बात करूँ
उलझन में खुद को उलझाना देखा है— % &-
फ़साना अधूरा , कहानी अलग है
तेरे बिन मेरी ज़िन्दगानी अलग है
सबब आँसुओं के मिलेंगे कई, पर
ख़ुशी और ग़म का वो पानी अलग है
लबों की हँसी में छिपे राज़ मेरे
ये आदत अभी तूने जानी अलग है
जो हासिल नहीं बस गिला उसका करते
मिला रब से जो, मेहरबानी अलग है
बिना तेरे भी, ज़िन्दगी काट लेंगे
जो तू संग हो शादमानी अलग है
न मारा है पूरा , न ज़िन्दा ही छोड़ा
मेरे कातिलों की निशानी अलग है
हुआ प्यार राधा के जैसे उसे पर ,
वो मीरा सी लगती दिवानी अलग है
मुकम्मल कोई शेर कैसे ' प्रिया ' हो
जुदा मिसरा ऊला है सानी अलग है— % &-
बाद मर के भला हम किधर जाएँगें
बन के खुशबू फ़िज़ा में बिखर जाएँगें
याद जब भी करो मुस्कुरा के करो
अश्क़ सारे पलक पर ठहर जाएँगें— % &-