कौशल्या रघुनाथ कों लिये गोद खिलावे। सुंदर बदन निहारकें हँसि कंठ लगावे॥ पीत झगुलिया तन लसे पग नूपुर बाजे। चलन सिखावे राम कों कोटिक छबि लाजे॥ सीस सुभग कुलही बनी माथे बिंदु बिराजे। नील कंठ नख केहरी कर कंकन बाजे॥ बाल लीला रघुनाथ की यह सुने और गावे। तुलसीदास कों यह कृपा नित्य दरसन पावे॥ दशरथ नंदन राम, दया सागर राम, रघुकुल तिलक राम,सत्यधर्म पारायण राम, मुझ मे भी राम तुझ मे भी राम, जय श्री राम जय श्री राम
माया का ऐसा जाल है प्रेम कि ख़ुद उजड़कर भी इश्क फरमाने को मजबूर कर देता है, और हम स्त्रियां जिसके अंदर जरा सा भी निस्वार्थ प्रेम की भावना है, वो धोखे झूठे लोगो के प्रेम से निकल ही नही पाती हैं,
बेनाम रिश्तों को बनाए रखना अब और अधिक कठिन हो गया है क्योंकि बातचीत केवल लिख कर किया जाता है, बहस फोन कॉल बन जाती है, और भावनाएँ स्टेटस और पोस्ट बनकर ही सिमट गई हैं।