क्या वाकई हम खूबसूरत हैं???? सोच कर देखिए एक बार जरूर......
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**शिवमय सृष्टि**
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" जब भाषा मौन होकर अश्रु संवाद करने लगे,
कदाचित मेरे मत से उससे पवित्र प्रेम भला और कोई नहीं कर सकता.... "
अब स्वयं के स्वयं से हुए संवादों से पूछिए कि वाकई उन संवादों में कुछ गहराई या सच्चाई नजर आई हैं अब तक.......???-
हर गम...
हर दुःख....
हर उदासी....
हर उपेक्षा....
हर आहत को झेलना
आता है।
सच बोलूं
अब तो मुझे शब्दों से खेलना आता है.....।।
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आप सब विचार अवश्य करिएगा🙏😊
संबंध का आधार है 'प्रेम'
प्रेम का आधार है 'विश्वास'
विश्वास का आधार है 'व्यवहार'
व्यवहार का आधार क्या है?
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दिल में बार बार ख्याल आता है
जैसे किसी के प्यार में हम उसे
महसूस करते हैं प्यार करते है
वैसे क्या हम अपने आप से
मोहब्बत कर सकते है?
कुछ अंतहीन पलों को खुद
के साथ जी सकते है?
किसी शान्त जगह सुकून के
गुज़ार सकूँ
अपने हर बिखरे सपने को समेट
सकूँ
पंछियों के चहचहाहट में कोई
मधुर धुन सुन सकूँ
अपनी हर आती जाती साँस को
क़रीब से महसूस कर सकूँ
मैं तारों की छाँव में एक आशियाना
बना सकूँ
झरने की कल कल से मन को
उत्साहित कर सकूँ
मैं किसी खामोश स्थान पे अपनी
धड़कन सुन सकूँ
काश कभी मैं अपने आप से जी भर
कर प्रेम कर सकूँ
❤️❤️
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पुरुष का कंधा और स्त्री की गोद...✍️✍️
ये सिर्फ शरीर के हिस्से नहीं होते, ये वो ठिकाने होते हैं जहां टूटी हुई आत्माएं
थोड़ी देर के लिए सब कुछ भूल जाती हैं।
जब कोई स्त्री थक कर हार मानने को होती है,
और वो अपने प्रिय पुरुष के कंधे से सिर टिका देती है,
तो उसे शब्दों की नहीं, सिर्फ उसके साथ की ज़रूरत होती है।
वो कंधा उसके लिए ढाल बन जाता है।
और जब कोई पुरुष दुनिया से हारा हुआ लौटता है,
तो स्त्री की गोद उसके लिए मंदिर बन जाती है।
वहीं उसे वो सुकून मिलता है,
जो किसी और जगह मुमकिन नहीं होता।
कंधा और गोद...
ये दो जगहें इंसान के सबसे गहरे दर्द को चुपचाप समेट लेती हैं, बिना कोई सवाल किए।
यहीं पर दिल का बोझ हल्का होता है,
यहीं पर आंसू बहते हैं मगर आरोप नहीं लगते।
शायद इसलिए कहा गया है सच्चा रिश्ता वो होता है,
जहां बोलने की ज़रूरत ही ना पड़े। सिर्फ कंधा और गोद काफी हों....-
स्वर्ग के लिए कोई टिफिन सेवा शुरू नहीं हुई है,
माँ बाप को जीते जी सारे सुख देना ही वास्तविक पूजा है...!!
माँ -पिता की सेवा ही सबसे बड़ा परोपकार है 💐🙏🏻
बाकी राम जाने-
अभी ये पंक्ति पढ़ीकी,
जब बीच मे तीसरा आता है तो फर्क पड़ता है ।
चाहे रिश्ता कोई भी हो पंक्ति बहुत सही है उसे दोबारा पढा तो समझ आया कि
दो लोगो के बीच तीसरा केवल इंसान ही आये ये जरूरी नही होता, तीसरा ऐसा बहुत कुछ होता है जिससे फर्क पड़ता है या रिश्ता खराब होता है...
वो तीसरा गुस्सा हो सकता है, ईगो हो सकता, झूठ हो सकता, वो तीसरा चुप्पी भी हो सकती है, कुछ भी जो दो लोगो के बीच मन में भेद कर दे, जो दो लोगो की बाते बंद कर दे, जो लोगो को प्रेम की भावना से दूर कर दे तीसरा होता है...
कुछ लोग कई दिनों तक बात नही करते, सोचते है सब ठीक कर के बात करेंगे सामने वाला चाहे कोशिश में लगा है लेकिन इन्हें बस सब ठीक करना है फिर बात करना है जैसे ये भगवान है सब सही कर देंगे, उन्हें ज़रा भी अहसास नही होता कि ये ठीक नही हो रहा है बल्कि बिगड़ रहा है और बार बार यही करते रहोगे तो ये खत्म होने की तरफ है, एक दिन सब खत्म हो जाएगा फिर कहेंगे ठीक करने की कोशिश की लेकिन फिर भी साथ छोड़ दिया कोशिश गलत दिशा में करोगे तो सब उल्टा ही होगा न ये गलत कोशिश भी रिश्ते में तीसरा है ,
बहुत सी चीजे होती है जो कब तीसरा बनकर आ जाती रिश्तों में पता भी नही चलता...
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