हम सब की अपनी-अपनी यात्राएं होती हैं,
अंतर्मन की यात्रा!
हम जानते है की हमें दूर तक संघर्ष किए जाना हैं,
उलझनें, निराशा, नाकामियों को छोड़ अंतर्मन की यात्रा पर चलते जाना है,
ठहराव भी जरूरी है,
निरंतर मन का जो पहिया चलते रहता है, इनका रुक जाना भी जरूरी है कभी,
थम जाना ऐसे की किसी वृक्ष के आखिरी पत्ते झर जाते हो इनके तन से,
पर इनका झड़ना अंत नहीं,
यह तो एक चक्र है,
जहां से फिर शुरू होती है एक नई यात्रा,
ठीक उसी वृक्ष के जैसे जिसने कभी अपने आखिरी पत्ते को भी खुद से दूर होते देखा हो,
पर एक आस ही उसकी उस चक्र को फिर से शुरू करती है,
उस यात्रा को जिसमें उसमें पुनः नए जीवन की, नए रंगों की शुरुआत होती,
जीवन यात्रा भी तो कुछ इस तरह ही है, हैं ना!!
मानो तो हां,
दुख, अलगाव, एकांती का चक्र भी इक बिंदु पर जाकर रुकता है,
और
फिर वहीं से शुरू होने लगती है,
सुख, मिलाप, उम्मीदों को रेखा.....
-