QUOTES ON #गिरहें

#गिरहें quotes

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16 APR 2018 AT 0:49

खोलतें हैं
रोज़ बारहां...
मिल जाती हैं
रोज़ नई
कैसी हैं
ये उलझनें
जो सुलझती नहीं...

जाने कौनसी रस्सी से
बनी है ये
गिरहें जिन्दगी की
कि बदस्तूर जारी है
ख्वाहिशों का
टूटकर बिखरना
और एक ये है कि
खुलतीं ही नहीं....

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11 DEC 2020 AT 0:24

अक्सर इक उम्र निकल जाती है गिरह सुलझाने में
कुछ हादसे कभी कभी दोस्ती में ऐसे हो जाते हैं...

हिस्से में दर्द के सिवा कुछ हासिल नहीं होता
मुस्कुराहटें तुम्ही कहो उधार पर कभी ठहरती है..!

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13 APR 2019 AT 9:12

कुछ तो तरकीब मुझे भी आती
सुन जुलाहे कुछ मैं भी बुन पाती
तू कैसे बुन लेता है धागे वो रेशम के
वो कच्चे कुछ टुटे धागे सुन जुलाहे काश
मैं तुझसा बुन लेती
वो रिश्ते कुछ जाने कुछ अनजाने
सुन जुलाहे यह तरकीब तूने कहाँ से सिखी
टुटे धागो की सिरा को लगा गिर्हें
तुम बुन लेतो हो धागो को आपस में
सुन जुलाहे मुझे तरकीब तुझ सी ना आई कभी
अक्सर कोशिश में रही हर टुटे रिश्तो की
सिरा में गिर्हें लगा दूँ उन गिर्हें लगे धागों से ही रिश्तों के
ताने बानो को बुनती रही
उम्मीदो के बोझ से दामन चाक-दर-चाक रहा
गिरता रहा हर वो रिश्ता मिरे चाक गिरेबाँ से
हर पल कोशिशों में ही रही उन रिश्तों के रफ़ू में
तमाम उम्र रफ़ूगर ही रही रफ़ूगिरी करते करते
सुन जुलाहे तुझसा मुझे गिर्हें लगाना भी ना आया
सारी गिर्हें यूँ नजर आ जाती है मेरे हर रिश्तों में
वो मेरे रिश्तो में लगी गिर्हें...... 🌹Mits_सहर 🌹






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14 FEB 2022 AT 14:25

और एक दिन अपनी कविता से तुम्हे
मुक्त कर जाऊंगी ...— % &

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1 MAY 2020 AT 4:15

हारी सी एक ज़िन्दगी
फ़ीके फ़ीके से हैं रंग
मन की गिरहें खोल आज
उड़ रहा है पँछी मलंग

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31 JUL 2020 AT 21:47

... और मेरी तकलीफ़ से सबसे अधिक मुझे तकलीफ़ होती है.. ये बात जितनी सादी है उतनी ही गहरी!!!

(Rest in caption...)

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30 DEC 2020 AT 13:18

हर शख्श की गिरहें परत दर परत खोलता बहुत है
कड़वी बातों में व्यंग्य की मिश्री घोलता बहुत है
ढेरों राज छुपाये हुए है कहीं दिल के एक कोने में
मगर लोग यही कहते हैं "पंकज" बोलता बहुत है

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17 MAR 2019 AT 20:40

उलझने लगा है जो, गिरहों में जीवन,
मिलो तुम मुझे और सुलझा ही अब दो।

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ज़िंदगी बीतती जायेगी यूँ ही गिरहों के दरम्याँ,
तुम ख़ुद को करो बयाँ, हम ख़ुद को करें बयाँ।

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19 AUG 2017 AT 19:10

आंसू ऐसे मिले जिन्हें दिखा नही सकती
किस्मत ऐसी मिली जिसपर इतरा नही सकती
मुझे मिली है सज़ा तुझे चाहने की क्या ये सज़ा
कुछ कम नही हो सकती ।।

जिस सपने को साथ सजाया था
तेरे न होने पर आज उसे तोड़ नही सकती
जुबां तो मिली पर हम ज़ुबां न मिला
गैरों से हाल ए दिल मैं कह नही सकती ।।

जिंदगी की आब ए चश्म में वीरानी है
महफ़िल बिन तेरे सुन बेमानी है
कड़ी कड़ी बेनाम बिखरी कहानी है
गिरहों को फिर भी मैं सुलझा नही सकती ।।

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