कुछ तो तरकीब मुझे भी आती
सुन जुलाहे कुछ मैं भी बुन पाती
तू कैसे बुन लेता है धागे वो रेशम के
वो कच्चे कुछ टुटे धागे सुन जुलाहे काश
मैं तुझसा बुन लेती
वो रिश्ते कुछ जाने कुछ अनजाने
सुन जुलाहे यह तरकीब तूने कहाँ से सिखी
टुटे धागो की सिरा को लगा गिर्हें
तुम बुन लेतो हो धागो को आपस में
सुन जुलाहे मुझे तरकीब तुझ सी ना आई कभी
अक्सर कोशिश में रही हर टुटे रिश्तो की
सिरा में गिर्हें लगा दूँ उन गिर्हें लगे धागों से ही रिश्तों के
ताने बानो को बुनती रही
उम्मीदो के बोझ से दामन चाक-दर-चाक रहा
गिरता रहा हर वो रिश्ता मिरे चाक गिरेबाँ से
हर पल कोशिशों में ही रही उन रिश्तों के रफ़ू में
तमाम उम्र रफ़ूगर ही रही रफ़ूगिरी करते करते
सुन जुलाहे तुझसा मुझे गिर्हें लगाना भी ना आया
सारी गिर्हें यूँ नजर आ जाती है मेरे हर रिश्तों में
वो मेरे रिश्तो में लगी गिर्हें...... 🌹Mits_सहर 🌹
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