बिखर के बिस्तर पर खुद ही, उसने स्वाद चखा स्व-यौवन का
हथेलियों के पहरे भी शरमा गए, यूँ बोझ बढ़ा जब जोबन का-
Writing is just my hobby..✍
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|3 August |..�... read more
दिल का सारा हाल अपने इकलौते दोस्त को सुना दिया
आईने के सामने खड़ा हुआ और सारा दर्द बता दिया-
गम ने साथ नहीं छोड़ा छुट्टी के दिन भी
इस इतवार की इससे ज्यादा तौहीन क्या होगी
#IND V/s AUS
2023 World Cup-
बचपन से हम topper थे
Board exams देने गए तब तबियत खराब हो गयी
IND V/s AUS
2023 world cup-
आज भी चिड़ाते है कुछ लोग मुझे उसका नाम लेकर
जिस शख्स के दिमाग में मेरा नाम कभी था ही नहीं
कैसे समझाऊँ मैं उन नादानों को उनकी नादानियाँ
वो हाल पूछते हैं उसका जिससे मैं कभी मिला ही नहीं-
शर्म भी शर्म से डूब मरे, वो काम किया इन नीचों ने
झांक रही है नैतिकता सर झुकाये कहीं दरीचों से,
रोती है मणिपुर की कलियाँ हो निर्वस्त्र चौराहों पर
सोता है माली बगीचे का, जूं नहीं रेंगती दरबारों पर
मानवता ने निज मुख म्लान किया,देखा जब अपना उपहास
क्या यही है भारत की गरिमा,जिस पर मैं करती थी नाज
उस पर भी ये भरी भीड़ में खेले ममत्वीय उरोजों से
चीत्कार उठा मानवता की घायल आत्मा की खरोंचों से
पराजित हुआ द्वापर का दुःशासन, त्रेता के रावण ने भी हाथ जोड़ लिए
कलियुग के शैतान जब उतरे, इनको भी पीछे छोड़ दिये
नग्न सिर्फ दो बाला नहीं,पूरे देश के कपड़े उतरे हैं
हुंकार उठाये व्यथित ह्रदय, झुके हुए हर चेहरे हैं
पतन निश्चय है, अटल सत्य है, इतिहास स्वयं को दोहराता है
प्रत्येक दुशासन चीर हरण कर अपना मस्तक चिरवाता है
प्रश्न यही है दरबारों से, ये आखिर होना ही क्यूँ था
पूर्वोत्तर की पावन धरती पर कलंक लगना ही क्यूँ था
शर्म करो सरकारों अब सिर्फ भाषण से काम नहीं चलता
झूठे गुस्से और वादे के शासन से काम नहीं चलता
धृतराष्ट्र ना बनो खुली आँखों के,निकलो सत्ता की दुकानों से
चुप ना रहो कुछ तो सीखो इतिहास के काले पन्नों से
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आईने की तरह होते हैं, टूट कर बिखर जाते हैं
बहुत रोते हैं वो लोग, जो दूसरों को हँसाते हैं-
एक ख्वाहिश थी जो पूरी होनी थी, रह गयी
एक दबी चीख जो होंठों से खुलनी थी, रह गयी
चंद लम्हों की उमर ढलने पर समझ आएगा यारों
एक ज़िन्दगी थी, जो खुल कर जीनी थी, रह गयी
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रज रज के ढूंढा उसकी आँखों के किनोरों पर
आँसू का कोई कतरा कहीं मिला भी तो नहीं
बिन उसके प्यार के तो फिर भी जी लेते हम
गम तो ये है कि उसे मुझसे कोई गिला भी तो नहीं-
तेरे चूल्हे की आग में अब सुलगन का एहसास लेने दे
ये तड़प सिर्फ तेरी नजरों की हलचल से नहीं मिटेगी
सेंकने थे बदन मुझे अब तेरे अलाव जैसे यौवन पर
क्यूँकि इस बार की सर्दी सिर्फ कम्बल से नहीं मिटेगी-