मैं बंजारण तेरी पुजारिन
ढूँढत है नयना गली-गली ।
थिरक रहे पग बाँधे पायल ,
व्याकुल मनवा होता घायल,
प्रेम अगन में बिरहन जली,
ढूँढत है नयना गली-गली...!
हो मगन मैं सुध-बुध भूली,
अंग छूवत यह चंचल धूलि,
प्रेम नगरिया अब लगे भली,
ढूँढत है नयना गली-गली ..!
मलयानिल संग महके मन,
छूकर आई यह प्रीत सघन,
खिल गई मन की बंद कली,
ढूँढत है नयना गली-गली..!
कोरी मन की मेरी चुनरिया,
रंग जा आकर रंगरेज पिया,
जीवन की अब ये साँझ ढली,
ढूँढत है नयना गली-गली...!
मधु Jhunjunwala ''अमृता''
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