तुझ से ही जीवन सार पिया ।
तुझ पर ये तन-मन वार दिया ।।
स्वप्न सजे इन नैनन में अब।
बैन सुनाये निशा मधुर जब।।
जोड़े तुमसे हर तार जिया ।
तुझ पर ये तन-मन वार दिया ।।
रजनीगंधा महक रही है ।
चन्द्र चन्द्रिका चमक रही है ।।
झुकती पलकों ने प्यार किया ।
तुझ पर ये तन-मन वार दिया ।।
मन वीणा के सुर हैं झंकृत ।
प्रीति बहे नदिया सम संसृत ।।
संग चले पग-पग धार लिया।
तुझ पर ये तन-मन वार दिया।।-
उषा की किरणें आईं, देने को बधाई लाई
खुशी की लालिमा छाई,
उजाले रहे सदा।
शारदे लेखन बसे, शब्द भाव में बरसे,
साहित्य सितारा बने,
दुआ में कहे सदा।
प्रेम भरे घन छाएँ, हरि कृपा बरसाएँ,
सुखमय हो जीवन,
आनन्द लहें सदा।
आदित्य सी उजली हो, किस्मत ये निखरी हो,
मधु माँगे कान्हा जी से,
श्री धारा बहे सदा।
मधु झुनझुनवाला-
आँखों से झरता कौन, सबसे अधिक मौन,
वेदना के अश्रु थाम, प्रीति बाँधे बावरा।
प्रतीक्षा के पल बीते, रात-दिन हुए रीते,
स्मृतियों के कानन में, मौन लेता आसरा।
प्रेम कली चुन रही, स्वप्न मृदु बुन रही,
धीरे-धीरे मौन का भी, विस्तार ले दायरा ।
क्लान्त उर्मियाँ है शान्त, नैनन से झरा कान्त,
मौन हृदय है मधु, देख रहा माजरा ।-
हृदय किशोरी श्याम बसे हैं,
श्याम हृदय में राधा ।
पलकें करके बंद खड़े द्वय,
नहीं प्रेम में बाधा ।।-
सीखा रही है ज़िन्दगी भी हर रोज
खोल देती है एक नया chapter
उलझनों का ....थामना होगा कौन सा सिरा
....बता रही है ज़िन्दगी
रिश्तों की गणित में घटाकर के द्वेष
जोड़ना प्रेम को और
गुणा करते ही जाना प्यार
......समझा रही है ज़िन्दगी
मोल लो प्यार से मुस्कुराहटें
रीत रहा वक्त और बीत रही उम्र
यह सच..... बता रही हैं ज़िन्दगी
मुश्किल से मिलते हैं दोस्त
एक रूठे तो दूसरा मना ले
अहम की दीवार गिराना
प्रेम की राह....दिखा रही है ज़िन्दगी
कल की सुबह किसने देखी
भूलकर शिकवे सभी
लगना गले..... अमृता
ज़िन्दगी जीना सिखा रही है ज़िन्दगी....!!-
फासले मोहब्बत के असर होने लगे हैं
ख़ामोश थे दिल अब खबर होने लगे हैं
बहुत दूर तक चला बनके हमराह कोई
आज रिश्ते बेरुखी की नज़र होने लगे हैं
चाहतों ने बनाया था एक आशियाना
न जाने क्यों तन्हाई में बसर होने लगे हैं
गुनगुनाने लगी थी ज़िन्दगी मोहब्बत में
आँसू समन्दर से अब असर होने लगे हैं
वक़्त बेवफा था या कशिश कुछ कम थी
दरम्यान हमारे दिल मधु बे-घर होने लगे हैं
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प्रथम नमन करूँ, श्रद्धा संग दीप भरूँ,
प्रीति लेप चौकी धरूँ, प्रथमेश आइये।
भादो मास शुभ योग,मोदक है रुचि भोग,
दुःख-शोक मिटे रोग, गणपति ध्याइये ।
शिव-गिरिजा सुवन, प्रथम हो सुमिरन,
सजे सबके भुवन, आशीष दे जाइये।
एकदन्त दयानिधि,वेद लिखें श्रुति विधि,
छंदाचार्य करें सिद्धि, गुण मधु गाइये ।-
झरने लगे नयनों से स्वप्न यह आज क्योंकर
विश्वास की चौखट पर प्रीति भरा दीप धर
ढलती शाम की लौ दीप आस का जला गयी
बीतेगी यह अँधियारी भोर का पता बता गयी-
बरसने दे इन आँखों को धुन्ध थोड़ी छँट जाए
धुंधुली हुई तस्वीरें फिर आईने सी नज़र आए-
श्याम पिया का रंग चढ़ा सखि, भूली भव के रंग ।
श्वास-श्वास मम हुई कृष्ण मय, हृदय हुआ नि:संग ।।
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