Madhu Jhunjhunwala   (मधु Jhunjhunwala "अमृता")
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Joined 19 August 2018


Joined 19 August 2018
21 APR AT 13:09


रुठे वक़्त की नाराज़गी को मनाएँ कैसे
अपनी बेबसी का आलम बताएँ कैसे...

बेमुरव्वत हमराह औ' शिक़स्ता ज़मीं
उजड़ा हुआ आशियां फिर बसाएँ‌ कैसे....

दरक़ते रिश्तों के बिखरते वज़ूद से
ये दिलों के दरों-दीवार सजाएँ कैसे..

हो गये हम ख़ुद से अजनबी इस कदर
ऐ जिन्दगी तुझसे त'आरुफ़ कराएँ कैसे..

मिला नहीं उजाला किसी भी उम्मीद को
हवाओं के बदले रुख़ से च़राग बचाएँ कैसे..

दफ़न करने को ज़मीं भी मयस्सर नहीं
ख़्वाहिशों का नया आशियां बनाएँ कैसे..

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12 APR AT 9:32

अमृत कलश छलका रही, अष्टभुजा से मात ।
कमल कमण्डल कर धरे, कृपा करे दिन रात ।।

कान्ति प्रभा है सूर्य सम, भरिये हृदय उजास ।
आदिशक्ति कल्याण कर, विनती करते दास।।

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11 APR AT 22:37

दिल के वीराने में इक तेरी कमी-सी है
हर लम्हा ज़िन्दगी सहमी-सहमी सी है

यादें गुज़री हैं आज गुज़िश्ता लम्हों से
हर मरहले पे दिखी आँखों में नमी-सी है

तुम्हारी प्यार भरी नज़रों की वो कशिश
ख्यालों में मेरे अब भी कहीं जमी सी है

तेरे ख़यालों से वाबस्ता है सांसें वरना
ग़म-ए-फुर्कत में धड़कने थमी सी है

शब-ए-तन्हाई में उम्र ढली क़तरा-क़तरा
वक़्त के सफ़्हे में लिखी सिर्फ ग़मी सी है

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10 APR AT 20:19

माह-ए-रमजान मुबारक
ये पुरनूर चाँदरात मुबारक
सितारे-सी रौशन हो ज़िन्दगी
दुआओं से भरी ईद मुबारक ।

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9 APR AT 20:21

हुई नवल सुभोर,
लालिमा है चहुँओर,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,
शुभ तिथि है पावन ।

सनातनी नववर्ष,
हर हृद में उत्कर्ष,
गूंज उठे शंख नाद,
मातु आई है आँगन ।

ललित ललाम रूप,
मैया लगती अनूप,
दमके सिंदूरी आभा,
नव दिन हो गायन।

कृपा दृष्टि हो भवानी,
अमृता है अनजानी,
अरदास करें अम्बे,
नयनों में ले सावन ।

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3 APR AT 21:25

नख शिख से सज रही सलोनी,भरे माँग सिंदूर ।
अधरों पर थी मौन ललाई, कर्ण स्वर्ण भरपूर ।।

रंग मेंहदी का डसता है, स्वप्न सभी बेरंग ।
चुभे खनकते स्वर्णिम कंगन, सजे नहीं है अंग।।

पढ़ी नहीं अर्पण की भाषा, रहा दर्प में चूर ।
डाल बेड़ियाँ आभूषण की, हुआ प्रेम से दूर।।

रही अधूरी प्रणय ऋचाएँ , रहे अधूरे गीत ।
छिपी पीर की टीस अधूरी, खुशी अधूरी मीत ।।

नीर विपुल कोरे नयनों में, रिक्त मिला घट प्रीत ।
छलता बन्धन ये ललना को, किन्तु निभाये रीत ।।

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21 MAR AT 16:50

शब्द ढले जब अनगढ़ मन के, भाव करेंगें नाद ।
लेकर आकार सुशोभन हो, भरे हृदय आह्लाद ।।

भावों की नद कल-कल बहती, चित्त शृंग को चीर।
कविताओं में ढल जाती है, अंतस की हर पीर ।।

छिपी हुए थे गहन तिमिर में, लाई प्रत्युष आस ।
मुखर हुआ कविता का सूरज, कलम मिटाये त्रास।।

होत पल्लवित बँजर भूमि पर, सिंचित होकर भाव।
लहराये कविताएँ मधुरिम, दुख-सुख लेकर चाव ।।

भाव सिंधु में उठती लहरें, मानक छोड़े तीर।
प्रेम डोर में रत्न पिरो दें, भरे नयन में नीर ।।

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20 MAR AT 22:57

काट दिए थे कानन सारे
नहीं दिखते हैं आँगन द्वारे
मौन हो गई नन्ही गौरेया
सूने हुए सब साँझ सकारे

पेड़ काटकर भवन बनाये
तिनके-तिनके थे बिखराये
उजड़े ठूँठ पर बैठी गौरेया
उदास मन को कहाँ धराये

बचपन की वो मेरी सहेली
फुदक -फुदक नाचे नवेली
फिर से आजा प्यारी गौरेया
बुला रही दानों भरी हथेली

मन की मुंडेर सूनी हो गई
मीठी कलोल कहीं खो गई
भोर की किरणें नन्ही गौरेया
तेरी चंचल स्मृतियाँ बो गई

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17 MAR AT 20:38

मैं बंजारण तेरी पुजारिन
ढूँढत है नयना गली-गली ।

थिरक रहे पग बाँधे पायल ,
व्याकुल मनवा होता घायल,
प्रेम अगन में बिरहन जली,
ढूँढत है नयना गली-गली...!

हो मगन मैं सुध-बुध भूली,
अंग छूवत यह चंचल धूलि,
प्रेम नगरिया अब लगे भली,
ढूँढत है नयना गली-गली ..!

मलयानिल संग महके मन,
छूकर आई यह प्रीत सघन,
खिल गई मन की बंद कली,
ढूँढत है नयना गली-गली..!

कोरी मन की मेरी चुनरिया,
रंग जा आकर रंगरेज पिया,
जीवन की अब ये साँझ ढली,
ढूँढत है नयना गली-गली...!

मधु Jhunjunwala ''अमृता''

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13 MAR AT 7:42

गगन धरा आरक्त है, देख छटा आदित्य।
प्रत्युष का प्राचीर में, बिखरा है लालित्य।।

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