कोरी मन की चूनरी , रंगी प्रिय के रंग ।
छोड़ जगत की चाकरी, चल दूँ साजन संग।।
अंतस तक भीगी पिया, प्रीत रंग में आज ।
आनन बिखरी लालिमा, पंथ निहारें लाज ।।-
भर ममता के मोती, चैन से अबोध सोती,
स्वप्न मधुर संजोती ,
माँ की पाकर झलक ।
निधि यह अनमोल, लुटाती अमृत घोल,
झट चूमती कपोल,
ये ममता की ललक ।
नन्हीं हथेली का स्पर्श, ज्यों अंतस छू ले अर्श,
कन्हैया से होते दर्श,
माँ निहारे अपलक ।
आँचल में भर प्यार, बहाती है पय धार,
जीती मधु सब हार,
बसे चाहे वो फलक ।-
हर एहसास शब्दों में उतर जाए जरूरी तो नहीं
अनकहे लफ्ज़ कोई सुन सके ये जरूरी तो नहीं
पिघलता रहा मौन रात भर लफ्ज़ बुनती रही तन्हाई-
जेब में पड़े सिक्के
वक़्त पर चले ही नहीं
खोटे थे शायद ....रिश्तों की तरह-
दो पल की ज़िंदगी और
दिल ढूँढ़े चार पल का सुकून
ज़रूरतों की बंदगी में
हासिल कहाँ पल भर का सुकून !-
आज पिघलने दे सर्द एहसास की ज़मीं को
हमने अरसे से छुपा रखी है आँखों की नमी को-
जब सिंदूर सुर्ख दमकेगा ।
मृदु यादों से मन महकेगा ।।
पायल की झंकार रुलाती ।
कंगन की यह खनक बुलाती ।।
तुम आओ तो हृद बरसेगा ।
मृदु यादों से मन महकेगा ।।
लगे विरह में लम्बी रातें ।
नहीं भूलती प्रियतम बातें ।।
तृषित हृदय ये फिर तरसेगा ।
मृदु यादों से मन महकेगा ।।
सिंदूरी मन भीगी पलकें ।
कैसे सुलझे बिखरी अलकें।।
नीरस अंतस फिर छलकेगा ।
मृदु यादों से मन महकेगा ।।
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१) गाँव के अँधियारे की
दीपशिखा
आज कहीं तहखाने में
बंद मृतप्राय पड़ी है।
२) झाड़ कर धूल
चमका रहे थे नेता
किन्तु
बुझी हो बत्ती तो
कैसे रोशन करेगी
घर लालटेन...!
३) आज भी कृशकाय की
झोंपड़ी की रातों को
आँखें देती है
ये डिबरी सी लालटेन..!-
नीरस मेघ
सुलगती वसुधा
प्यासी सरिता
छलती धूप
नित्य बरसकर
भरे न कूप-