"गद्दी" छिनी जा सकती है "बुद्धि" नहीं
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वो लाये थे तूफान से कश्ती निकाल कर
यहाँ सबने रखी बस अपनी गद्दी संभाल कर
Vo laye the toofan se kashti nikal kar
Yaha sabne rakhi bas apni gaddi sambhal kar-
महल छोड़ क्यों,
सड़कों पर आएगा।
भिकारी की गद्दी पर क्यों,
राजा का जी ललचाएगा।।-
सुनो !!
महज़ लकड़ी का एक फर्नीचर नहीं हो तुम
सियासत की दुनिया में सारे फसाद की जड़ हो तुम
डाइनिंग टेबल की हैड चेयर से लेकर सियासी गद्दी तक अपनों से अपनों को अपने लिए
लड़वाती अहम की सौदागर हो तुम-
हुंकार भरो।
दर्द है तो चिल्लाओ इतना कि सत्ता के गलियारे जाग उठें।
मदहोशी की नींद में सोएं , ये नींद के मारे जाग उठें।।
उठो बहुत पी चुके हलाहल जीवन का,अब मौत की बारी है।
पत्थरों की मोहब्बत में पड़े ये गली-मोहल्ले-ओसारे जाग उठें।।
नदी छोड़ बैठी है लकीर पुरानी,अब रास्ते नए तलाशती है।
हुंकार भरो जो तुम साथी दरिया -पर्वत ये सारे जाग उठें।।
हाथ में देकर हथियार कहते हैं ख़ुदा बचाओ अपने- अपने।
आग लगा सेंकते रोटी,ऐसों के दुर्दिन के सितारे जाग उठें।।
आवाज़ दे कहो कि 'जागो ओ तख्त- ओ- ताज के दीवानों'।
ख़ास उन दीवार-दर-दरीचों के मखमली किनारे जाग उठें।।-
गद्दी की लड़ाई तो सालों से है पर तब ईमान तो बाकी था
राजनीति बदनाम तो हमेशा से है ,पर कुछ सम्मान तो बाकी था
अब तो वाजिब है सबकुछ इस गद्दी के लिए,
क्योंकि कीमत न ईमान की है न इंसान की है-
हैं पथिक मेहमान हम, यह मान लेना चाहिए।
इस भरी दुपहर में थोड़ा, छाँव लेना चाहिए।।
इस जहाँ में खूब फैली है गरीबी भुखमरी।
चाहिए सरकार को, संज्ञान लेना चाहिए।।
ज़िन्दगी में जंग हो यदि, रोटी–कपड़ा के लिए।
छोड़कर आराम सारे, काम करना चाहिए।।
हों भले कपड़े फटे, खाली बदन बस ना रहें।
आदमी का कम से कम, सम्मान होना चाहिए।।
राजनेता खूब हों, पर नीति से शासन करें।
बैठ–कर गद्दी में ना, शैतान होना चाहिए।।
हक़ उसी को ही मिले, जो असल में हकदार है।
जी – हुज़ूरी से उगे चमचे न होना चाहिए।।
हो प्रशंसा आपके कामों की चारो ओर से।
चारो कोनों से यहाँ खुशियाँ बिखरना चाहिए।।-
राजा और राजकुमार गद्दी के लिए होते है बाकि शहीद तो सैनिक होते है ।
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बुद्धि तो हरेक के हिस्से में,
परवरदिगार देते ही है ।
परवरिश से वो तराशी जाती है ।।-