खुली किताब जिंदगी मेरी
तूने हर पन्ना पढ़ा है
नया हर किस्सा
तेरे साथ गढ़ा है
लगता हूँ मैं गर फिर भी फरेबी
देदे चाहे जो सज़ा
ये गुन्हेगार तेरा, तेरे सामने खड़ा है।-
Decluttering.
Published writer in:
"लम्हों से लफ्जों तक"
And
"Carnations"
खुली किताब जिंदगी मेरी
तूने हर पन्ना पढ़ा है
नया हर किस्सा
तेरे साथ गढ़ा है
लगता हूँ मैं गर फिर भी फरेबी
देदे चाहे जो सज़ा
ये गुन्हेगार तेरा, तेरे सामने खड़ा है।-
क्या सच्चा क्या झूठा
क्या छाँव क्या ताप
सोते ही जग भूलूँ
उठूं तो भूलूँ ख्वाब-
अंदर ही अंदर
ना जाने तुझसे
कितना लड़ा हूँ
गलतियाँ गिनाने को तेरी
कई बार अड़ा हूँ
पर आया जो सामने तू मेरे
मुस्कुरा कर मैं
बस चुप खड़ा हूँ
-
क्या खूब तोड़ा है
माशूक ने मेरे
के पहले सिर्फ दिल उसका था
अब ज़र्रा ज़र्रा उसका है-