गुफ़्तगू उससे करता रहा
बात चलती रही
वक्त निकलता रहा
सुबह हुई तो होश आया
खुद से ही रात भर बोलता रहा-
Madhur Garg
(~Madhur)
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Decluttering.
Published writer in:
"लम्हों से लफ्जों तक"
And
"Carnations"
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"लम्हों से लफ्जों तक"
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"Carnations"
Joined 16 February 2017
YESTERDAY AT 1:25
9 APR AT 22:49
वो पल मैने
फ़िर से जिया
कभी जिसे तेरे साथ था जिया
फ़िर तेरे साथ जीने का था वादा किया
एक पल को उस पल मे लगा ऐसा
के था सब उस पल जैसा
वही खाना
वही गाना
कहानी का हमारी
वो किससा पुराना
एक पल में फ़िर से
ज़िंदगी जी वो मैंने
रोज़ तेरे साथ जीने की
सोची थी जो मैंने
अचानक! भरम सा टूटा
हकीकत में सपना टूटा
देखा तो ना था कुछ पहले जैसा
ना जिंदगी
ना जगह
ना तू
ना मैं ।।-
19 MAR AT 22:03
गिरती टेहनी झड़ते पत्ते
तिल- तिल टूटता सबर है
इंतज़ार करता बरखा का
सूखता एक शजर है-
18 MAR AT 22:41
बगान मे थे फूल और भी कई
वो गुल-ए-हज़ारा और था
तस्वीरों से क्या बयाँ होगा
वो खूबसूरत नज़ारा और था।-