Madhur Garg   (~Madhur)
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Decluttering.

Published writer in:
"लम्हों से लफ्जों तक"
And
"Carnations"
Joined 16 February 2017


Decluttering.

Published writer in:
"लम्हों से लफ्जों तक"
And
"Carnations"
Joined 16 February 2017
10 AUG AT 22:48

खुली किताब जिंदगी मेरी
तूने हर पन्ना पढ़ा है
नया हर किस्सा
तेरे साथ गढ़ा है
लगता हूँ मैं गर फिर भी फरेबी
देदे चाहे जो सज़ा
ये गुन्हेगार तेरा, तेरे सामने खड़ा है।

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8 JUL AT 20:42

बातें करें, तो करें भी क्या
सच तुझे कहना नहीं,
झूठ मुझे सुनना नहीं।

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15 JUN AT 0:36

भाग जाते हो खटखटा कर
दरवाज़ा दिल का
ये बचपना तुम्हारा
गया नहीं

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13 JUN AT 22:46

क्या सच्चा क्या झूठा
क्या छाँव क्या ताप
सोते ही जग भूलूँ
उठूं तो भूलूँ ख्वाब

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11 JUN AT 0:23

बिखरा है तू
बिखरा हूँ मैं
आ समेटे एक दूसरे को
थोड़ा तू
थोड़ा मैं

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5 JUN AT 22:33

हर सफ़र
सफ़र नहीं होता
किसी की मंज़िल नहीं होती
किसी का हमसफ़र नही होता

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26 MAY AT 22:34

किसी ऐब से लगाव नहीं
लगाव मेरा ऐब ही

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21 MAY AT 0:13

अंदर ही अंदर
ना जाने तुझसे
कितना लड़ा हूँ
गलतियाँ गिनाने को तेरी
कई बार अड़ा हूँ
पर आया जो सामने तू मेरे
मुस्कुरा कर मैं
बस चुप खड़ा हूँ

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20 MAY AT 22:52

नज़रें भी अब मिलाते नहीं क्यों
नाराज़गी तो मगर बातों की थी

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18 MAY AT 0:33

क्या खूब तोड़ा है
माशूक ने मेरे
के पहले सिर्फ दिल उसका था
अब ज़र्रा ज़र्रा उसका है

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