Madhur Garg   (~Madhur)
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Decluttering.

Published writer in:
"लम्हों से लफ्जों तक"
And
"Carnations"
Joined 16 February 2017


Decluttering.

Published writer in:
"लम्हों से लफ्जों तक"
And
"Carnations"
Joined 16 February 2017
YESTERDAY AT 1:25

गुफ़्तगू उससे करता रहा
बात चलती रही
वक्त निकलता रहा
सुबह हुई तो होश आया
खुद से ही रात भर बोलता रहा

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30 APR AT 0:36

पृथ्वी का उद्धार करो...
(In caption)

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29 APR AT 0:06

वो पूछकर सो गई
जगे हो क्या
मैं हाँ बोलकर जगा रहा
पूरी रात

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11 APR AT 20:24

मुझे जलता देख तू खुश हुआ
ना रोये तू कभी
चल ये वादा भी पूरा हुआ

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9 APR AT 22:49

वो पल मैने
फ़िर से जिया
कभी जिसे तेरे साथ था जिया
फ़िर तेरे साथ जीने का था वादा किया

एक पल को उस पल मे लगा ऐसा
के था सब उस पल जैसा
वही खाना
वही गाना
कहानी का हमारी
वो किससा पुराना

एक पल में फ़िर से
ज़िंदगी जी वो मैंने
रोज़ तेरे साथ जीने की
सोची थी जो मैंने

अचानक! भरम सा टूटा
हकीकत में सपना टूटा
देखा तो ना था कुछ पहले जैसा
ना जिंदगी
ना जगह
ना तू
ना मैं ।।

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19 MAR AT 22:03

गिरती टेहनी झड़ते पत्ते
तिल- तिल टूटता सबर है
इंतज़ार करता बरखा का
सूखता एक शजर है

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18 MAR AT 22:41

बगान मे थे फूल और भी कई
वो गुल-ए-हज़ारा और था
तस्वीरों से क्या बयाँ होगा
वो खूबसूरत नज़ारा और था।

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20 FEB AT 23:28

आसान नहीं,
ले सके कोई जगह तुम्हारी।
आओगे जब भी,
खाली मिलेगी।

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27 DEC 2024 AT 14:12

चंचल चित्त
मन बागी
पथ प्रेमी
मैं यायावर
कभी अनुरागी
कभी वैरागी

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24 AUG 2022 AT 21:30

ऐसे बसे आकर वो मुझमें,
के मेरा अक्स भी मेरा ना रहा।

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